वैसे यह फाॅर्मूला बिहार तक सीमित नहीं है। दक्षिण के सभी राज्यों में अन्य पिछड़े वर्ग की जातियों का इस तरह से उपवर्गीकरण किया गया है और उन सभी उपवर्गों के अलग अलग से आरक्षण का प्रतिशत तय कर दिया गया है। इसके कारण पिछड़ेपन के अलग अलग स्तर पर रह रही जातियां अपने समान स्तर की जातियों से ही प्रतिस्पर्धा करती हैं। इस तरह एक मेकैनिज्म तैयार कर दिया गया है, जिसका उद्देश्य मजबूत जातियों की प्रतिस्पर्धा से कमजोर जातियों को बचाना है।
मंडल आयोग में श्री नायक एक सदस्य थे। उन्होंने भी अपनी सिफारिश में कहा था कि अन्य पिछड़े वर्गो की जातियों में भी काफी विषमताएं हैं। इसलिए खतरा यह है कि आरक्षण का लाभ कुछ संपन्न जातियां ही न हड़प जाएं, इसलिए उनको दलित पिछड़ा वर्ग और पिछड़ा वर्ग में उपवर्गीकृत किया जाना चाहिए, ताकि कमजोर जातियों को भी आरक्षण का लाभ मिल सके।
जब सुप्रीम कोर्ट में मंडल आयोग पर सुनवाई चल रही थी, तो मधुलिमये ने भी उसमे ंहस्तक्षेप किया था। उन्होंने मंडल आयोग को लागू करने की वकालत की थी और अदालत से मांग की थी कि अन्य पिछड़े वर्गाें को दो उपभागो में बांटकर दोनो के लिए अलग अलग से आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में तो मधुलिमये की बात नहीं मानी थी, लेकिन सरकार को सुझाव दिया था कि इस तरह का वर्गीकरण से उसे करना चाहिए।
मुसमलानों की दशा के बारे में जानकारी प्राप्त कर उनके कल्याण के लिए सिफारिश करने के लिए बनी सच्चर कमिटी ने भी अन्य पिछड़े वर्ग को दो भागों में उपविभाजित करने की बात कही थी। कमिटी का कहना था कि दलित मुस्लिम जातियां ओबीसी हैं और भारी पिछड़ेपन के कारण वह संपन्न ओबीसी जातियों से मुकाबला नहीं कर पातीं। इसलिए या तो दलित मुस्लिमों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाय या ओबीसी को ही दो भागों में विभाजित कर दिया जाय। ऐसा करने पर सभी दलित मुस्लिम अति पिछड़े वर्ग मंे आ जाएंगे और अपने समान स्तर पर विकसित या पिछड़ी अन्य जातियों से प्रतिस्पर्धा कर आरक्षण का लाभ प्राप्त कर सकेगे।
पिछले कई सालों से ओबीसी की कमजोर जातियां इस तरह की मांग करती आ रही हैं। सच कहा जाय, तो आरक्षण का लाभ कुछ दबंग ओबीसी जातियों के लोगों को ही मिला है। उनका ही राजनैतिक सशक्तिकरण हुआ है। ज्यादातर विधायक और सांसद उनके ही लोग बनते हैं। मंत्री भी ज्यादातर लोग उनमें से ही बनते रहे हैं और यदि आरक्षण का भी बहुत बड़ा हिस्सा उनके पास ही चला जाय, तो फिर सामाजिक न्याय का लक्ष्य ही पराजित हो जाता है। चूंकि ओबीसी राजनीति पर दबंग पिछड़ी जातियों का दबदबा रहा है, इसलिए ओबीसी के उपवर्गीकरण की मांग को दबा दिया गया। यह बहुत पहले किया जाना था, लेकिन इसकी जरूरत ही महसूस नहीं की गई।
जब ओबीसी की कमजोर जातियों ने दबंग जातियों का पिछलग्गू बनने से इनकार कर दिया और उनका एक बड़ा वर्ग भारतीय जनता पार्टी को वोट करने लगा, तो भाजपा की जीत होने लगी। आज केन्द्र में मोदी की सरकार बनने का सबसे बड़ा कारण कमजोर ओबीसी जातियों को नरेन्द्र मोदी को मिल रहा समर्थन ही है। इसके कारण ही भाजपा उत्तर प्रदेश मे लोकसभा और विधानसभा में भारी बहुमत से जीती। यदि बिहार विधानसभा चुनाव के पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण को लेकर अस्पष्ट बात नहीं कही होती, तो वहां भी बहुमत भाजपा को ही मिलता। लेकिन अब कर्पूरी ठाकुर फाॅर्मूले को मजबूत करने की राजनीति करने वाले नीतीश भी भाजपा के खेमे में हैं।
लगता है कि भारतीय जनता पार्टी को इस बात का अहसास हो गया है कि उसकी जीत ओबीसी की कमजोर जातियों के समर्थन से हुई है और उस समर्थन को बनाए रखने के लिए उसकी सरकार ने ओबीसी के उपवर्गीकरण का फैसला किया है ताकि मौन ओबीसी की एक मौन मांग को वह पूरी कर सके। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ( जो अब अस्तित्व में नहीं है) ने भी ओबीसी को दो या तीन भाग में विभाजित करने की मांग की थी।
यह फैसला सामाजिक न्याय के दर्शन के अनुकूल है। इससे समाज के कमजोर वर्गो को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सकेगा, लेकिन समस्या यह है आरक्षण पर ईमानदारी से अमल हो ही नहीं पाता, जिसके कारण सीटें ही नहीं भर पाती। दिल्ली विश्वविद्यालय मे स्नातक में प्रवेश प्रक्रिया को पूरा कर लिया गया है, लेकिन यदि पता लगाया जाय, तो मालूम होगा कि अभी भी आरक्षित वर्गो के छात्रों की काफी सीटें खाली हैं।
उपवर्गीकरण करना अच्छी बात है, लेकिन समस्या यह है कि सरकार के पास इसके लिए पूरे आंकड़े ही नहीं हैं। जातियों के पिछड़ेपन का स्तर जानने के लिए उनके बारे में जानकारी भी चाहिए। एक सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना यूपीए सरकार के दौरान कराई गई थी, लेकिन उसका आंकड़ा अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। कहते हैं कि वह जनगणना सही तरीके से हुई ही नहीं और सिर्फ खानापूर्ति हुई है। इसलिए खतरा है कि उपवर्गीकरण के बाद उपविभाजन को ही कोर्ट में चुनौती दी जाय और मामला अधर में लटक जाय।
लेकिन एक बात तय है और वह यह है कि मोदी सरकार का यह निर्णय जाति की राजनीति का एक नया दौर शुरू कर देगा। ओबीसी जातियों में विभाजन तो पहले से ही है, लेकिन इसके कारण वह विभाजन औपचारिक रूप प्राप्त कर लेगा। (संवाद)
सामाजिक न्याय या राजनीति का एक नया दौर?
केन्द्र में भी अब कर्पूरी फाॅर्मूला
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-08-25 11:31
मोदी सरकार ने संविधान के आर्टिकल 340 के तहत एक पिछड़ा वर्ग आयोग गठित करने का फैसला किया है, जो पिछड़ा वर्ग की केन्द्रीय सूची की जातियों को तीन उपवर्ग में विभाजित करेगा और तीनों उपवर्गों के लिए अलग अलग से आरक्षण का प्रतिशत तय किया जाएगा। बिहार में ही इस ओबीसी आरक्षण का कर्पूरी फाॅर्मूला कहते हैं। कर्पूरी ठाकुर के फाॅर्मूले के तहत अन्य पिछड़ा वर्ग को पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग में विभाजित किया गया है और दोनों वर्गो के लिए अलग अलग आरक्षण दिया जाता है। यह व्यवस्था वहां 1978 से चल रही है। पिछड़े वर्गों की जातियों को दो उपवर्गों में विभाजन मुंगेरीलाल आयोग ने किया था। इसलिए कायदे से उसे मुंगेरीलाल फाॅर्मूला कहा जाना चाहिए, पर चूंकि उसे लागू कर्पूरी ठाकुर की सरकार ने किया था, इसलिए उसे कर्पूरी फाॅर्मूला कहा जाता है।