लोकतंत्र के जागरूक स्तम्भ न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका एवं पत्रकारिता जब अपने अपने दायित्व को ईमानदारी से निभाए तो आमजन को राहत एवं सुकून अवश्य मिलता है। इतिहास गवाह है कि जब विधायिका एवं कार्यपालिका सत्ता मद में चूर होकर अपने दायित्व को भूल जाता है तो उसे सचेत कराने का कार्य लोकतंत्र की स्वतंत्र संस्था न्यायपालिका एवं पत्रकारिता करती है। आमजन भी जब सर्वाधिक परेशान हो जाता है तो न्यायपालिका का ही दरवाजा खटखटाता हैए देर - सबेर राहत अवश्य मिलती है। देश में मुस्लिम समुदाय के भीतर तीन तलाक का मसला वर्षो से जटिल एवं महिलावर्ग के लिये कष्टदायी बना हुआ है। जिससे मुस्लिम समुदाय में कई घर बर्बाद हो गये , कई महिलाएं बेघर हो गई । कई बच्चे अनाथ हो गये । इसके विरोध में कई बार आवाज उठी पर पर मुस्लिम समुदाय की औरतों पर तीन तलाक की तेज धार चलती ही रही है। इस बार उत्तर प्रदेश के चुनाव में इस समस्या पर जो राजनीतिक रंग चढ़ा, इस परवान ने फिलहाल तीन तलाक पर सर्वोच्य न्यायालय के आये ऐतिहासिक फैसले से तीन तलाक से पीड़ित समुदाय को राहत अवश दे दी है। न्यायपालिका ने फिलहाल जनहितकारी फैसला देकर अपनी सकरात्मक भूमिका तो निभा दी अब इस दिशा में विधायिका को अपना कर्Ÿाव्य को निभाना है।
सर्वोच्य न्यायालय ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार करते हुए तत्काल बंद करने एवं विधायिका को इस दिशा में कानून बनाकर सदा सदा के लिये प्रतिबंध लगाने संबंधित राय देकर जनहित का कार्य किया है जिसका सभी ने स्वागत किया है। सर्वोच्य न्यायालय के इस ऐतिहासिक फैसले से मुस्लिम समुदाय की महिलाओं में सर्वाधिक खुशी देखी जा सकती है। इस फैसले को लेकर राजनीतिक हलचलें भी शुरू हो गई है। इस समस्या के विरोध में भाजपा ने उ.प्र. विधानसभा चुनाव के दौरान जो आवाज उठाई , चुनाव के दौरान उसे इसका राजनीतिक लाभ भी मिला । उ. प्र. चुनाव में पहली बार मुस्लिम महिलाओं ने खुलकर भाजपा का साथ दिया, जिसने उ.प्र. के राजनीतिक समीकरण को ही बदल दिया । चुनाव उपरान्त तीन तालाक पर आये सर्वोच्य न्यायालय के इस फैसले ने भाजपा को इस अवसर को सही ढंग से अपने पक्ष में लाने का सुनहला अवसर दे दिया है। केन्द्र में भाजपा की सरकार है । राज्य सभा एवं लोकसभा में फिलहाल भाजपा का बहुमत भी है। वैसे भी वोट की राजनीति के चलते तीन तलाक बंद करने के संबंध में केन्द्र सरकार द्वारा लाये गये विधेयक का कोई भी राजनीतिक दल विरोध नहीं करेगा , ऐसा माना जा रहा है। इस तरह के हालात में इस सामाजिक कुरीतियों को रोकने एवं लगाम लगाने का इससे बेहतर अवसर हाथ नहीं आयेगा।
सर्वोच्य न्यायालय के तीन तलाक को असंवैधानिक करार देने के बाद केन्द्र सरकार द्वारा इस दिशा में लाया गया विधेयक निश्चित रूप से उन हजारों पीड़ित महिलाओं के घर बसाने में राहत पहुंचायेगा जिनके घर इस नियम के चलते उजड जाया करते थे । अब जरा सी बात पर कोई किसी महिला को बेसहारा नहीं कर पायेगा। निश्चित रूप से इस दिशा में सर्वोचय न्यायालय का यह कदम सराहनीय एवं जनहित में है। सभी राजनीतिक दलों को मिलकर इसे कानून का दर्जा दिलाने का सकरात्मक प्रयास करना चाहिए जिससे भविष्य में इस नियम के चलते किसी महिला का घर उजड़ न सके । कोई बच्चा बेसहारा न हो सके ।
वैसे इस देश में स्वहित की राजनीति सर्वाधिक होती रही है। कोई राजनीतिक लाभ न उठा सके इसका विशेष ध्यान यहां दिया जाता है। आज तक इसी देश में महिला आरक्षण का विधेयक अप्रसंगिक बना हुआ है। कहीं इसी तरह तीन तालाक का विधेयक भी अप्रासांगिक न बन जाय , इस बात का संदेह आज की सस्ती राजनीति में अवश्य बना हुआ है। फिर भी उम्मीद है कि इस विधेयक के साथ महिला आरक्षण विधेयक जैसी स्थिति नहीं हो पायेगी। हिन्दू धर्म में महिलाओं को सती प्रथा से मुक्ति दिलाने हेतु जिस तरीके से सती प्रथा बंद करने के कानून भारतीय संविधान में बने, ठीक इसी तरह मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति दिलाने हेतु भारतीय संविधान में कानून बने। इस दिशा में देश के सर्वोच्य न्यायालय ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार कर तत्काल बंद करने एवं इस दिशा में शीघ्र से शीघ्र कानून बनाये जाने का संदेश देकर सराहनीय पहल किया है। अब सरकार को इस दिशा में सकरात्मक कदम उठाने की जरूरत है। जिससे एक देश , एक संविधान , सभी के लिये एक जैसा कानून का परिदृृश्य उजागर हो सके। (संवाद)
एक देश और एक संविधान
फिर सभी के लिये भी कानून भी एक हो!
डाॅ. भरत मिश्र प्राची - 2017-08-26 11:51
देश आजाद तो हो गया पर सामाजिक समरसता के मामले में हम आज भी परतंत्र है। जिसका ताजा उदाहरण मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक का मामला अभी भी मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड के गिरफ्त में है। इस समुदाय में इस नियम के खिलाफ आवाज उठती रही , प्रभावित महिलाओं की चीख पुकार गूंजती रही पर कोई सुनने वाला नहीं था। पीड़ित महिला को तुच्छ मुवावजा देकर इस समुदाय में धर्म की आड़ में पुरुष वर्ग की मनमानी चलती रही। जबकि इसी समुदाय में भारत को छोड़ विदेश के अधिकांश देश तीन तलाक के बंधन से मुक्त है। पूर्व में हिन्दू धर्म की महिलाएं भी सती प्रथा से पीड़ित रही । भारतीय संविधान में सती प्रथा बंद करने के कानून बने और आज इस वर्ग की महिलाएं इस प्रथा से मुक्त है। इसी तरह मुस्लिम समुदाय में वर्षो से धर्म की आड़ में चल रहे तीन तलाक बंद करने के कानून शीघ्र से शीघ्र से भारतीय संविधान में आना चाहिए जिससे मुस्लिम वर्ग की पीडित महिलाओं को इस असमाजिक बंधन से मुक्ति मिल सके । जब हमारा देश एक है, संविधान एक है सभी धर्मो के लिये एक कानून क्यों नहीं ? इस पर मंथन होना चाहिए ।