दूसरा कारण यह था कि यहां चुनाव दल बदल के कारण हो रहा था। आम आदमी पार्टी के विधायक ने अपनी पार्टी से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली थी और वह व्यक्ति इस उपचुनाव में भाजपा का उम्मीदवार था। तीसरा कारण यह था कि कुछ महीने पहले ही दिल्ली में नगर निगम के चुनाव हुए थे, जिसमें भारतीय जनता पार्टी को शानदार सफलता मिली थी। चैथा कारण यह था कि चुनाव वीवीपीएटी युक्त इवीएम मशीन से हो रहा था, जबकि पिछला नगर निगम चुनाव बिना वीवीपीएट के ही हुआ था। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी का दाव था कि नगर निगम का चुनाव भाजपा ने इवीएम में गड़बड़ी कराकर जीती थी।

इस चुनाव में आम आदमी पार्टी की भारी मतों से जीत हुई। दूसरे स्थान पर भारतीय जनता पार्टी रही, लेकिन मतगणना के अंतिम चरणों के पहले वह लगातार तीसरे स्थान पर थी। उस दौरान भारतीय जनता पार्टी तो हार को निश्चित मान ही रही थी, उसके नेता कामना कर रहे थे कि पार्टी का उम्मीदवार तीसरे स्थान से दूसरे पर आ जाए, तो इज्जत बच जाए, क्योंकि यदि पार्टी का उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रह जाता, तो पार्टी की भारी फजीहत होती। बहरहाल, 29 चरणों में हुई मतगणना के अंतिम तीन चरणों में भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार तीसरे से दूसरे स्थान पर पहुंचा और दिल्ली में अपने अपने घरों और कार्यालयों में बैठे भाजपा नेताओं ने राहत की सांस ली, हालांकि उसका उम्मीदवार 24 हजार से भी ज्यादा मतों से हार चुका था। उसके उम्मीदवार को लगभग 36 हजार वोट मिले, जबकि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को लगभग 60 हजार मत मिले।

आखिर कुछ ही महीनों में दिल्ली की जनता का मिजाज कैसे बदल गया? बवाना विधानसभा क्षेत्र में नगर निगम के 6 वार्ड हैं और उनमें से 4 वार्डों में पिछले दिनों भाजपा की जीत हुई थी। एकाएक ऐसा क्या हो गया कि हवा भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ हो गई और वह कांग्रेस के साथ दूसरे स्थान पर आने के लिए संघर्ष करती दिखाई पड़ी?

तो इसका एक कारण तो इवीएम मशीन के साथ वीवीपीएटी मशीन का युक्त होना बताया जा रहा है। निर्वाचन आयोग के तमाम दावों के बावजूद ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है, जो यह मानते हैं कि भाजपा ने पिछला चुनाव इवीएम मशीन में गड़बड़ियां कराकर जीता था। उस चुनाव के पहले मुख्यमंत्री अरंिवंद केजरीवाल ने वीवीपीएटी के इस्तेमाल के साथ चुनाव कराने की मांग की थी। निर्वाचन आयोग के पास दिल्ली मे चुनाव करवाने के लिए पर्याप्त वीवीपीएटी मशीनें भी थीं, लेकिन उसने आम आदमी पार्टी की मांग स्वीकार नहीं की और बिना कोई ठोस कारण बताए यह कहते हुए वीवीपीएटी का इस्तेमाल करने से मना कर दिया कि इवीएम मशीनों से हुए मतदान में धांधली की ही नजी जा सकती। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया, लेकिन हाई कोर्ट ने भी यह कहते हुए उस मांग को खारिज कर दी कि समय इतना कम है कि अब वीवीपीएटी का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

इसलिए इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की करारी हार से यह संदेश लोगों के बीच जा रहा है कि कहीं न कहीं इवीएम का योगदान भारतीय जनता पार्टी की जीत में रहा है। इस बार चूंकि इवीएम के साथ वीवीपीएटी भी था अैर मतदाता यह देख सकते थे कि जिस उम्मीदवार को उन्होंने वोट दिया है, वोट उसे मिला या नहीं, इसलिए इस बार धांधली नहीं हो सकी और छेडछाड़ के द्वारा भाजपा के उम्मीदवारों को हराया नहीं जा सका।

यदि यह मान भी लिया जाय कि भाजपा की पिछली जीत इवीएम मशीनों के कारण नहीं हुई थी, बल्कि वास्तव में जनता ने उसे अपना समर्थन दिया था, तो इस चुनाव के नतीजे से यह तो पता चलता ही है कि भारतीय जनता पार्टी को हराना कठिन नहीं है। इस समय भारतीय जनता पार्टी का स्वर्णिम काल चल रहा है और वह न केवल चुनाव जीत रही है, बल्कि कहीं कहीं तो हारने के बावजूद अपनी सरकारें बना लेती है, क्योंकि विपक्षी कांग्रेस बहुत कमजोर हो गई है। कांग्रेस न केवल अधिकांश राज्यों में चुनाव हार रही है, बल्कि यदि किसी राज्य में उसका प्रदर्शन भारतीय जनता पार्टी से बेहतर भी रहा हो और त्रिशंकु विधानसभा आए, तो वह भाजपा के हाथों पिट जाती है, क्योंकि उसका नेतृत्व बहुत कमजोर है और उसके पास ऐसे नेताओं की फौज है, जो पार्टी के हितों को नहीं, बल्कि अपने हितों को साधने में व्यस्त रहते हैं।

कांग्रेस ही नहीं, बल्कि बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में भाजपा को हराने वाली क्षेत्रीय पार्टियां भी कमजोर हो गई हैं। भ्रष्टाचार और परिवारवाद के कारण उन लोगों ने अपने समर्थकों की विश्वसनीयता भी खो दी है। इन सबके कारण भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीतने मे आगे हो गई है। उसके पास संसाधन भी अन्य पार्टियों की अपेक्षा बहुत ज्यादा है और संघ के स्वयंसेवकों की एक बड़ी फौज भी उसके साथ है, जो उसकी जीत को और आसान कर सकते हैं।

ऐसी परिस्थिति में यह लग रहा है कि आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद उसकी सरकार बनना तय है। लेकिन दिल्ली के बवाना का उपचुनाव यह संदेश देता है कि भाजपा भले संसाधनों के मामले मे बहुत मजबूत हो, लेकिन वह अपराजेय नहीं। जनता में उसका समर्थन सकारात्मक कारणों से नहीं है, बल्कि जनता अभी भी उसके खिलाफ है, लेकिन उसके पास उससे बेहतर विकल्प नहीं है। पर यदि विकल्प मिले, तो वे भाजपा को हराने के लिए वोट दे सकते हैं। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल भाजपा के खिलाफ एक विकल्प हैं, इसलि यहां भाजपा हारी। यदि मजबूत और विश्वसनीय विकल्प अन्य जगहों पर उभरे, जिस पर भ्रष्टाचार का दाग नहीं हो, तो वहां भाजपा को अब भी हराया जा सकता है। (संवाद)