पिछले दिनों समूह- 20 के देशों का भी शिखर सम्मेलन हुआ था। उसमें भी भारत के प्रधानमंत्री और चीन के राष्ट्रपति शिरकत कर रहे थे, लेकिन सीमा पर तनाव के कारण दोनों के बीच बातचीत द्विपक्षीय बातचीत नहीं हो पाई थी। दोनों में से किसी ने भी इस तरह की बातचीत की कोई पहल नहीं की थी। लेकिन ब्रिक्स सम्मेलन के पहले डोकलम में चल रहा गतिरोध समाप्त हो गया है और चीन के अधिकारी यह संकेत दे रहे हैं कि दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को बढ़ाने को वे बहुत महत्व देते हैं।

सच तो यह है कि डोकलम में तनाव समाप्त होने का कारण ही ब्रिक्स में होने वाला शिखर सम्मेलन और चीन की भारत के साथ आर्थिक संबंध मजबूत करने की विवशता है। चीनी कंपनियों के लिए भारत में व्यापार की बड़ी संभावनाएं हैं। भारत के साथ अपने व्यापार का चीन और विस्तार करना चाहता और यही कारण है कि लंबे समय तक वह भारत के साथ सीमा पर तनाव नहीं बनाए रखना चाहेगा।

भारत के लिए यह एक अच्छी बात है। यही कारण है कि जब डोकलम गतिरोध के बीच अनेक लोग चीन के आयात पर रोक लगाने की मांग कर रहे थे, तो मोदी सरकार ने उन सबकी अनसुनी कर दी थी। भारत के नीति निर्माताओं को यह पक्का विश्वास था कि चीन तनाव को एक सीमा से बाहर नहीं बढ़ा सकता है, भले ही वहां का सरकारी मीडिया चाहे जितना भड़काऊ बातें कर रहा हो। भारत को यकीन था कि चीन की सरकार भारत के साथ टकराव लेने के विकल्प का इस्तेमाल नहीं करेगी।

यही कारण है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ब्रिक्स के सम्मेलन के दौरान मजबूत स्थिति में रहेंगे। डोकलम गतिरोध के दौरान भारत ने बयानबाजी में संयम का परिचय दिया था और चीन ने भी अपने पांव पीछे खींच लिए। अब दोनों देशों के बीच बेहतर संबंध के लिए जमीन तैयार हो गई है। भारत के प्रधानमंत्री ब्रिक्स देशों के बीच बेहतर संबंध बनाने और संबंधों को और व्यापम आयाम देने के लिए बाज बेहतर स्थिति में हैं। ब्राजील के राष्ट्रपति इस समय संकट में हैं और वहां की संसद में उन पर पर भ्रष्टाचार का आरोप लग रहा है। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जुमा अभी अभी अविश्वास प्रस्ताव को पराजित करने में किसी तरह सफल हुए हैं। उनकी विश्वसनीयता अभी भी बहुत कम है। ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में इस समय आर्थिक संकट भी चल रहा है।

चीन के राष्ट्रपति को भी इस साल के अंतिम महीनों में अपनी कम्युनिस्ट पार्टी का सामना करना है। उसके पहले वे ब्रिक्स को सफलता की ओर ले जाकर अपने आपको साबित करना चाहेंगे। रूस के राष्ट्रपति यूक्राइन के मसले पर यूरोप मे अभी भी अलग थलग पड़े हुए हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के साथ उनका समीकरण अभी तक नहीं बन पाया है।

जाहिर है, ब्रिक्स के अधिकांश देश आज बेहतर स्थिति मे नहीं है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही इसकी सफलता के लिए नेतृत्वकारी भूमिका निभानी होगी। उन्होंने सहयोग को उस दिशा में ले जाने का प्रयास करना होगा, जहां जाकर सभी देखों की अर्थव्यवस्था को इसका लाभ मिल सके। आज सहयोग को ज्यादा व्यापक बनाने की जरूरत है और भारत के प्रधानमंत्री उस दिशा में प्रयास जरूर करेंगे।(संवाद)