लेकिन नीतीश के दल के किसी भी व्यक्ति को मंत्री नहीं बनाया गया। मंत्री बनाना तो दूर की बात थी, किसी को शपथग्रहण समारोह में एक दर्शक और साक्षी की भूमिका के लिए भी आमंत्रित नहीं किया गया, जबकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा होने के नाते शिष्टाचारवश वे आमंत्रित किए जाने की उम्मीद तो करते ही थे। दुखड़ा रोते हुए मुख्य महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि उनके दल को शपथग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए बुलाया ही नहीं गया। जब नहीं बुलाए जाने का कारण पूछा गया, तो उन्होंने दुखी मन से कहा कि इसका जवाब तो भाजपा ही दे सकती है या राष्ट्रपति भवन बता सकता है।
मंत्री नहीं बनाए जाने पर नीतीश कुमार ने सफाई दी कि उनकी इस मामले में कभी किसी से बात ही नहीं हुई थी। उनके कहने का मतलब कि उन्होंने मंत्री पद की मांग ही नहीं की थी, लेकिन सवाल यह उठता है कि जब कोई मांग ही नहीं थी, तो मीडिया में बार बार खबरें छापने के बावजूद उसका खंडन क्यों नहीं किया गया? जिन सांसदों के नाम मंत्री के तौर पर मीडिया में उछाले जा रहे थे, उन्होंने इसका खंडन क्यों नहीं किया कि पार्टी सरकार में शामिल नहीं होने जा रही है? शपथग्रहण समारोह के एक दिन पहले केसी त्यागी ने कहा कि मंत्री बनाए जाने का निमंत्रण अभी तक किसी को नहीं दिया गया है और सारे सांसद दिल्ली में मौजूद हैं। उनके कहने का मतलब यह था कि सभी सांसद मंत्री बनने के लिए दिल्ली में मौजूद हैं, ताकि बुलाए जाने पर वे बहुत ही छोटी अवधि की सूचना पर राष्ट्रपति भवन में पहुंच जायं।
उन सांसदों के घरों का नजारा भी देखने लायक था। जनता दल(यू) के नेता और कार्यकत्र्ता करीब 4 सांसदों के घरों पर भीड़ लगाए हुए थे और भावी मंत्रीजी को माला भी पहना रहे थे। शपथग्रहण पाने वाले मंत्रियों की संख्या दो से बढ़ कर तीन हो गई थी और रामचन्द्र प्रसाद को तो रेल का काबिना मंत्री तक घोषित कर दिया गया था। इन सरगर्मियों के बीच पटना में नीतीश कुमार ने बताया कि अभी मंत्री बनाने का कोई प्रस्ताव नहीं आया है और जब आएगा तो इस पर विचार क्रिया जाएगा। यानी मतलब साफ है कि नीतीश कुमार अंतिम समय तक मंत्री पद के शपथग्रहण के लिए आमंत्रण काक इंतजार करते रहे और उनके सांसद मंत्री बनने के लिए दिल्ली में जमे रहे। लेकिन न तो आमंत्रण आया और न ही किसी जद(यू) सांसद ने मंत्री पद की शपथ ली।
जद(यू) को केन्द्र सरकार में शामिल नहीं करना नीतीश कुमार के लिए एक बड़ा सदमा है आने वाले दिनो में उन पर आने वाले खतरे का संकेत भी है। जिस दिन नीतीश ने इस्तीफा देने के अगले दिन भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री पद का शपथग्रहण किया था, उसी दिन से चर्चा शुरू हो गई थी कि उनके दल के दो व्यक्ति को केन्द्र में मंत्री बनाया जाएगा। यह भी चर्चा थी कि उन दो मंत्रियों में शरद यादव नहीं होंगे। कहा तो यहां तक जा रहा था कि भाजपा तो चाहती है कि शरद यादव मंत्री बनें, पर नीतीश उन्हें मंत्री पद पर नहीं देखना चाहते। शरद यादव की बगावत के पीछे इसी को मूल कारण माना जा रहा था। लेकिन यहां तो दो क्या, एक मंत्री भी नीतीश के दल का नहीं बना।
नीतीश के लिए यह एक बड़ा झटका इसलिए भी था कि उनके समर्थक यह उम्मीद कर रहे थे कि उन्हें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का संयोजक बनाया जाएगा और इस तरह राष्ट्रीय राजनीति में उनका कद बहुत ऊंचा हो जाएगा। गौरतलब हो कि 2013 के पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक शरद यादव थे। उनके पहले यह पद जाॅर्ज फर्नांडीज के पास था। इसलिए नीतीश कुमार को इस पद बैठाए जाने के कयास लगाए जा रहे थे। पर उन्हें तो शपथग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित तक नहीं किया गया, फिर यह कैसे संभव है कि नरेन्द्र मोदी उन्हें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठनबंधन का संयोजक मनोनित करें।
लगता है कि नरेन्द्र मोदी नीतीश द्वारा किए गए उस अपमान को नहीं भूल पाएं हैं, जब नीतीश ने अपने आवास पर भाजपा नेताओं को दिए गए भोज में उन्हें ( मोदीजी) को आने पर पाबंदी लगा दी थी और बाद में मोदी के मसले पर वह भोज ही स्थगित हो गया था। इस बार जब बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा करने प्रधानमंत्री पटना गए, तो नीतीश ने उन्हे अपने आवास पर खाने को आमंत्रित किया था, लेकिन मोदी ने उनके आमंत्रण को ठुकरा दिया। नीतीश ने तब गुजरात द्वारा बाढ़ पीड़ितों के लिए दी गई सहायता राशि लौटा कर भी नरेन्द्र मोदी का अपमान किया था।
जब पिछली बार नीतीश कुमार भाजपा के साथ थे, तो गठबंधन में वे अपनी चला लेते थे। अटल और आडवाणी का उन्हे वरदहस्त प्राप्त था और भाजपा नेताओं को चुप कराकर वे दोनों शीर्षस्थ नेता नीतीश की बात मान लेते थे, भले वह भाजपा के हित के खिलाफ ही क्यों न हो। पर अब स्थिति बदल गई है। अब भाजपा के शीर्ष पर मोदी और अमित शाह हैं और उसके साथ नीतीश द्वारा किए अपमान की स्मृति भी है। इसलिए नीतीश कुमार आने वाले समय में कभी भी खतरे में फंस सकते हैं। उसकी घंटी बज चुकी है। (संवाद)
मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार: नीतीश के लिए खतरे की घंटी
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-09-05 13:06
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली में अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया और उधर पटना में कयासों का बाजार गर्म हो गया है। मीडिया में अटकलबाजी चल रही थी कि नीतीश कुमार के दल से कम से कम दो सांसद मंत्री बनाए जाएंगे। नीतीश के सबसे ज्यादा विश्वस्त रामचन्द्र प्रसाद का नाम तो तय माना जा रहा था और दूसरे नाम के लिए करीब आधा दर्जन सांसदों के नाम बारी बारी से आ रहे थे। कभी हरिवंश का नाम आ रहा था, तो कभी वशिष्ठ नारायण का नाम लिया जा रहा था। कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर का नाम कुछ ज्यादा लोग ले रहे थे। भ्रष्टाचार के मामले में मुकदमे का सामना कर रहे अनिल सहनी भी एक संभावित मंत्री के तौर पर जाने जा रहे थे। और यदि दूसरे मंत्री के रूप में सबसे ज्यादा नाम किसी का लिया जा रहा था, तो वे थे संतोष कुशवाहा। एक सातवां नाम भी था और वह था नीतीश के दल के मुख्य महासचिव केसी त्यागी का। मीडिया में तो उनका नाम नहीं था, लेकिन उनके समर्थक दावे के साथ उनके मंत्री बनने की बात कर रहे थे।