दरअसल गौरी लंकेश की निर्मम हत्या के बाद सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा जो टिप्पणियां की गई हैं उनसे साफ होता है कि इन ताकतों की सोच कितनी घटिया है। जिनकी इस तरह की टिप्पणियां आईं उनमें से कुछ ऐसे लोग भी हैं जो सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जुड़े हैं। ऐसे ही एक टिप्पणीकार हैं दधीच।

मैं यहां पर कुछ ऐसी ही टिप्पणियांे का उल्लेख कर रहा हूं। ये सारी टिप्पणियां कुछ समाचारपत्रों में छपी हैं। दीपक रेगे के अनुसार ‘‘इस तरह के सभी लोगों को उस समय तक मारते रहना चाहिए जब तक कि वह विचार जिसका वे प्रतिनिधित्व करते हैं, पूरी तरह से न मर जाए।’’ जनार्दन सिंह लिखते हैं ‘‘गौरी लंकेश की हत्या का इतना शोर क्यों? वह राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलग्न तथा कथित धर्मनिरपेक्ष कार्यकर्ता थी। उसने हमेशा हिन्दू देवी-देवताओं और हिन्दुत्व को बदनाम करने का प्रयास किया है। उसे तो ऐसी मौत मिलना ही थी। वास्तव में वह एक आतंकवादी थी जिसे एक देशभक्त सिपाही ने मारा है। निंदा की बात है कि कर्नाटक सरकार ने उन्हें राजकीय सम्मान दिया।’’

एक और टिप्पणी में कहा गया ‘‘अच्छा पीछा छूटा। वह हमेशा के लिए चली गई। धरती माता पर एक भार कम हुआ। यह एक उदाहरण है कि जैसा बोओगे वैसा पाओगे।’’एक और टिप्पणी में कहा गया ‘‘जिसने यह साहसी कृत्य किया है वह बधाई का पात्र है। ऐसे गौरवशाली काम के लिए मेरी सेवाएं हाज़िर हैं।’’एक टिप्पणी तो इतनी शर्मनाक है जिसमें कहा गया है कि ‘‘एक कुतिया मर गई और उसके पिल्ले चिल्ला रहे हैं।’’इन टिप्पणियों से साफ होता है कि दक्षिणपंथी हिन्दुत्व ताकतें किस हद तक गौरी लंकेश से घृणा करती थीं।

‘‘आज हम किससे लड़ने जा रहे हैं?’’ गौरी लंकेश की पत्रकार दोस्त जब सुबह उन्हें फोन करती थीं तो अक्सर यही सवाल पूछती थीं, ‘‘आपकी शिकायत किससे है?’’ लंकेश अक्सर अपने संपादक से पूछती थीं कि उनके अख़बार ने उन मुद्दों को लेकर मजबूत रूख क्यों नहीं अपनाया जो उनके दिल के करीब है। ‘‘अगर आप प्रभावी लोग ठोस कदम नहीं उठा सकते तो हम इसे कैसे करेंगे?’’ गौरी लंकेश एक निर्भीक आवाज़ थीं, जिसे ख़ामोश कर दिया गया।

दक्षिण भारत के जिस शहर बंेगलुरू में वह रहती थीं वहीं से वो अपने नाम से ही एक साप्ताहिक टेब्लाॅयड निकालती थीं। यह टेब्लाॅयड कन्नड़ भाषा में निकलता है जो उन्हें पिता से विरासत में मिला था। इसे वह पाठकों के चंदे से चलाती थीं। यह कर्नाटक की संस्कृति पर आधारित एक एक्टिविस्ट टेब्लाॅयड है जिसमें विज्ञापन नहीं छपता है। लंकेश की पहचान एक मजबूत वामपंथी विचारक के रूप में थी। उनका विचार संपादकीय में भी साफ दिखता था। लंकेश दक्षिणपंथी हिन्दुवादी विचारधारा पर जमकर बरसती थीं। उनका मानना था कि धार्मिक और बहुसंख्यकवाद की राजनीति भारत को तोड़ देगी।

जब जाने-माने विचारक विद्वान मलेशप्पा कलबुर्गी की उनके घर पर गोली मारकर हत्या की गई तब से ही उन्हें भी दक्षिणपंथी हिन्दू समूहों से धमकी मिल रही थी। लंकेश ने अपने एक दोस्त से कहा था, ‘‘मुझे इनसे डर नहीं लगता है। अगर मुझे वे वैश्या भी कहते हैं तब भी मुझे फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन मैं देश को लेकर चिंतित रहती हूं। ये लोग इस देश को तोड़ देंगे। एक और वजह से लंकेश निशाने पर रहती थीं। वो माओवादी विद्रोहियों से खुली सहानुभूति रखती थीं। माओवादी भारत सरकार से लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं। दूसरी तरफ लंकेश माओवादियों को मुख्यधारा में लाने में लगी थीं। इसके साथ ही उन्होंने दलितों को अधिकार दिलाने के लिए भी अभियान चलाया जिन्हें अछूत समझा जाता है।

लंकेश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी हिन्दू राष्ट्रवादी बीजेपी को बिल्कुल पसंद नहीं करती थीं। वो अपने फेसबुक पोस्ट में अक्सर प्रधानमंत्री मोदी का नाम लेती थीं। हाल ही की फेसबुक पोस्ट में लंकेश ने पीएम मोदी की आलोचना की थी। वो हमेशा भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि को लेकर मुखर रहती थीं।

लंकेश का अखबार अपनी विषय-वस्तु को लेकर हमेशा चर्चा में रहता था। कई बार तो लंकेश की स्टोरी से उनके ही दोस्तों को असुविधाजनक स्थिति का सामना करना पड़ा। लंकेश ने कभी अपनी प्रतिबद्धता से समझौता नहीं किया। वह अपने ट्विटर अकाउंट पर खुद को ‘जर्नलिस्ट-एक्टिविस्ट’ बताती थीं।

इसमें कोई हैरान करने वाली बात नहीं है कि उनके अखबार पर मानहानि के मुकदमे का अंबार था। पिछले साल एक मानहानि के मुकदमें में उन्हें दोषी करार दिया गया था। हालांकि इन सबका असर लंकेश पर नहीं पड़ा। लंकेश पत्रिका के प्रसार और राजस्व में लगातार गिरावट के बावजूद उसकी धार बनी रही। उसने टकराना बंद नहीं किया।

गौरी लंकेश को पत्रकारीय साहस उनके पिता पी. लंकेश से विरासत में मिला था। वह कर्नाटक में एक सांस्कृतिक हस्ती के रूप में जाने जाते थे। पी. लंकेश एक जीवंत और भारी प्रसार वाला टेब्लाॅयड निकालते थे। उन्होंने कई ऐसे उपन्यास भी लिखे हैं जिन्हें पुरस्कार मिले। इसके साथ ही लंकेश ने फिल्में भी बनाईं। इतनी सारी खूबियों के कारण उनका व्यक्तित्व सीमाओं से परे था। इसके साथ ही वो एक निडर एक्टिविस्ट थे। गौरी लंकेश अपने मां बाप की तीन संतानों में सबसे बड़ी थीं। उन्होंने शुरू में ही पत्रकारिता में जाने का फैसला कर लिया था। उन्होंने दिल्ली से पत्रकारिता की पढ़ाई की थी।

लंकेश ने एक अग्रणी अखबार के साथ काम किया था। जब 2000 में गौरी लंकेश के पिता का निधन हुआ तो वो 20 साल पुराना अखबार चलाने को लेकर अनिच्छुक थीं। हालांकि जब उन्होंने अखबार को संभाला तो पूरी तरह से राजनीतिक हो गईं और उन्होंने उग्र राजनीतिक रूख अपनाया। दोस्तों के बीच गौरी लंकेश की पहचान एक जुझारू और लोगों से गर्मजोशी से मिलने वाले व्यक्ति के रूप में थी। हाल के महीनों में लंकेश ने प्रेस की स्वतंत्रता पर बढ़ते हमले पर लिखा था। इसके साथ ही उन्होंने स्थानीय राजनीति और बंेगलुरू में महिलाओं की असुरक्षा को लेकर भी लिखा था।

वरिष्ठ पत्रकार और चर्चित कन्नड़ टैब्लाॅइड ‘लंकेश पत्रिके’ की संपादक गौरी लंकेश को शायद संभावित मौत की आहट पिछले हफ्ते ही हो गई थी। इस डर को लेकर गौरी ने अपनी मां और बहन कविता लंकेश से चर्चा भी की थी। गौरी का कहना था कि कुछ दिनों से संदिग्ध लोग उसके घर के आसपास घूम रहे हैं। लेकिन गौरी ने इस बारे में पुलिस को कोई जानकारी नहीं दी।

कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने भी कहा कि गौरी को कभी जान से मारने की धमकी नहीं मिली थी। वह अक्सर पुलिस के बड़े अधिकारियों से मिलती थी, लेकिन उनने भी पुलिस से खतरे को लेकर कभी कोई शिकायत नहीं की। गौरी की बहन कविता लंकेश ने पुलिस को दिए बयान में कहा, ‘‘एक हफ्ते पहले ही गौरी बानाशंकरी स्थित मेरे घर बीमार मां को देखने आई थी। उस वक्त गौरी अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित थी। उसने कहा था कि कुछ संदिग्ध उसके घर के आसपास घूमते रहते हैं। मैंने और मां ने इस बारे में उसे पुलिस से बात करने की सलाह दी। लेकिन गौरी ने कहा कि यदि अगली बार ऐसे लोग उसे दिखेंगे तो वह ज़रूर पुलिस से शिकायत करेगी।’’ लेकिन कौन जानता था कि अगले कुछ दिनों में गौरी जिंदा भी नहीं रहेगी। मंगलवार रात गौरी लंकेश को राज राजेश्वरी नगर स्थित आवास पर अज्ञात हमलावरों ने गोली मार दी। (संवाद)