पटेलों के अंादोलन और राज्यसभा चुनावों में अहमद पटेल को हराने के लिए हुए घमासान में हुई पराजय से राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा की संभावनाओं को लेकर पनप रही आशंका का अंदाजा होता है। मोदी का नाम विकास से इस तरह जुड गया है कि वह और कोई मुद्दा उठा भी नहीं सकते हैं। वैसे भी, प्रधानमंत्री पद पर बैठकर वह कोई क्षेत्रीय नारा नहीं दे सकते। जाहिर है, भाजपा को सŸाा की पटरी पर बनाए रखने के लिए बुलेट ट्रेन जैसे मुद्दे जरूरी हैं। लिहाजा मोदी ने इसके शिलान्यास का समय राज्य के चुनाव के ठीक पहले रखा और इसके चालू होने की तारीख भी 2023 से खिसका कर 15 अगस्त, 2022 कर दी।
बुलेट टेªन सिर्फ मोदी की मदद नहीं कर रहा है, बल्कि जापान में प्रधानमंत्री शिंजो अबे को भी राजनीतिक लाभ देने वाला है। अबे को इसका श्रेय जाएगा कि उन्होंने बाजार में नहीं बिक रही एक मंहगी टेक्नोलौजी को अच्छे दाम बेच लिया। मोदी अहमदाबाद, सूरत और बडोदरा से मुंबई का चक्कर लगाने वाले हजारों गुजराती व्यापारियों को रिझाने का काम कर रहे हैं तो अबे भी अपने मुल्क मेें अपनी वाह-वाही लूटने में लगे हैं।
टोक्यो के अखबार ‘जापान टाइम्स’ ने अपनी खबर की पहली पंक्ति में इस बात का जिक्र किया है कि किस तरह जापान ने तेज गति रेल की टेक्नोलौजी बेचने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के यहंा सालों पैरवी की, लेकिन अंत में उसे पहली बार उसे भारत जैसा ‘‘अन्तरराष्ट्रीय ग्राहक’’ मिला।
पुल पर टिकी पटरियांे और समुंदर के भीतर सुरंग होकर पर चलने वाली 506 किलोमीटर की यह यात्रा 12 स्टेशनों से गुजरेगी और इसकी लाइन की साईज ऐसी होगी जिस पर दूसरी रेल नहीं चल सकेंगी। इस रेल का किराया आम लोगों या मध्य वर्ग के बजट के बाहर होगा। इस परियोजना के विŸाीय पहलुओं के अध्ययन करने वाली फ्रंेच नेशनल रेल कंपनी परियोजना की वित्तीय सफलता पर संदेह जाहिर किया था।
देश में बुलेट टेªन चलाने की योजना को अमली जाना पहनाने की कोशिश काफी पहले से चल रही है और पहली बार डा. मनमोहन सिंह की सरकार ने 2009 के रेल बजट में इसके अध्ययन का प्रावधान किया था।
तेजगति रेल के बारे में मनमोहन सरकार में तीव्र मतभेद थे। मनमोहन सरकार अपने आखिरी दिनों में इस सपने को रेल की अपनी ताकत से पूरा करने के पक्ष में थी और इंतजार करना चाहती थी। कांग्रेस सरकार के अंतिम रेल मंत्री मलिकार्जुन खड़गे ने हाई स्पीड रेल कारपोरेशन की शुरूआत करते हुए 28 अक्टूबर, 2013 को साफ कर दिया था कि इस रेल की राह में अनगिनत दिक्कतें हैं।
लेकिन अंत में जापान ने बाजी पलट दी। ऐसा लगता है कि चीन के साथ खराब होते संबंधों का फायदा जापान ने उठाया। ‘मई, 2013 में जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जापान यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने उन्हें मना लिया कि इस मुंबई-अहमदाबाद गलियारे में तेज गति रेल की संभावना के अध्ययन का काम उनके देश को अलग से दे दिया जाए। प्रधानमंत्री इसके लिए राजी हो गए। जापान इंटरनेशनल कोआपरेशन एजेंसी (जाइका) को यह काम सौंप दिया गया और उससे कहा गया कि वह जुलाई, 2015 तक रिपोर्ट दे दे।
जाइका ने जनवरी, 2014 मंे अपना काम शुरू कर दिया था । उसी समय जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे भारत-यात्रा पर आए तो डा. मनमोहन सिंह ने यह साफ कर दिया था कि इस बारे में भारत का फैसला अधोसंरचनात्मक ढ़ांचे की देश की प्राथमिकता, विŸाीय संसाधन और परियोजना के व्यापारिक लाभ-हानि पर निर्भर करेगा। लेकिन सरकार बदल गई और मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि वह हर हाल में वह बुलेट ट्रेन की परियोजना को आगे बढ़ाएगी।
मजेदार तो यह है कि विŸाीय शर्तो को पूरी तरह तय करने के पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी यात्रा के दौरान इस आशय का समझौता कर लिया था कि जापान ही भारत में तेज गति रेल बनाएगा। जापान से 80 प्रतिशत मिले कर्ज के अलावा जो खर्च लगेगा गुजरात सरकार, महाराष्ट्र सरकार और केंद्र सरकार उठाएगी। जापान को 78 हजार करोड़ रूपए का कर्ज देना था। लेकिन लागत में सुधार हो गया और यह एक लाख 20 हजार करोड़ रूपए कर दिया गया। जापान 88 हजार करोड़ रूपए दे रहा है।
लेकिन इस परियोजना के साथ जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण अर्धसत्य यह है कि इस कर्ज पर ब्याज की दर बहुत कम, 0.1 प्रतिशत है। ऊपर से देखने पर यह काफी सस्ता लगता हे, लेकिन सच्चाई कुछ और है। दुनिया के सबसे खराब कर्जों में से है येन में लिया गया कर्ज। इस कर्ज को येन में उस समय की कीमत में अदा करना होगा। अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों ने हिसाब लगाया है कि बीस साल बाद भारत को 88 हजार करोड़ रूपयों की जगह एक लाख पचास हजार करोड़ रूपए अदा करने होंगे तथा इस हिसाब से, पचास साल बाद अदा की जाने वाली राशि काफी अधिक होगी। कर्ज चुकाने का काम 15 साल बाद शुरू होगा और इसका असर उस समय की अर्थ-व्यवस्था पर पड़ेगा।
सरकार को यह देखना चाहिए था कि हाई स्पीड रेल की शिंकांसेन टेक्नोलौजी को 2007 में ताहवान में भी लगाया गया है। भारत से पहले इसी एक देश ने यह टेक्नोलौजी खरीदी है। यह वहंा बुरी तरह फ्लाप हुई और घाटे में चल रही है। मोदी की इस बुलेट टे्न की यात्रा ने देश को उस औपनिवेशिक दौर में पहंुचा दिया है, जब रेल बनाने वाली कंपनियों को पांच प्रतिशत मुनाफे की गारंटी दी जाती थी। ब्रिटिश भारत की सरकार के खजाने से यह पैसा जाता था जो देश के किसानों और सामान्य जनता से वसूले गए टैक्स से चुकाया जाता था। भारत की आजादी की लड़ाई में रेल के जरिए की गई इस लूट पर काफी बहस की गई थी यह 184 साल बाद बिना किसी व्यापारिक जोखिम की कमाई का वही नजारा हमारे सामने है! यह कैसी राजनीति है? (संवाद)
बुलेट ट्रेनः पटरी से उतरी राजनीति
हम औपनिवेशी दौर में तो नहीं पहुंच गए हैं?
अनिल सिन्हा - 2017-09-26 10:13
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 सितंबर, 2017 को अहमदाबाद-मंुबई बुलेट ट्रेन परियोजना की आधारशिला रखते समय ये संकेत दिए कि बुलेट ट्रेन गुजरात विधान सभा चुुनावों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा होगा। उन्होने काफी उत्साह से भरा भाषण दिया और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे से अपनी दोस्ती का बढा-चढा कर ब्यौरा दिया। विकास के जिस गुजरात माॅडल को भुना कर वह दिल्ली की गद्दी पर बैठ गए हैं, उसमें अब नया जोड़ने के लिए कुछ नहीं हैै। यह एक रूकी हुई कहानी बन चुकी है।