यह तो अब तक किसी से छिपा नहीं कि इन सब अप्रिय घटनाओं के लिए विश्वविद्यालय का प्रशासन जिम्मेदार है। योगी सरकार द्वारा गठित जांच कमिटी की रिपोर्ट में भी यही कहा गया है। विश्वविद्यालय के कुलपति कोई त्रिपाठी जी हैं, जिनकी नियुक्ति एचआरडी मंत्री के रूप में स्मृति ईरानी के कार्यकाल में हुई थी। कहा जाता है कि भाजपा के संघ प्रभारी कृष्ण गोपाल शर्मा की पैरवी पर ही उनकी नियुक्ति की गई थी। उस समय मंत्रालय श्री शर्मा के इशारे पर ही चला करता था। बहरहाल, कुलपति त्रिपाठी की नियुक्ति श्री शर्मा ने ही करवाई थी और कुलपति आरएसएस के वरिष्ठ लोगों में से एक हैं। मीडिया सर्किल में चर्चा है कि श्री त्रिपाठी संघ को दिए गए अपने योगदान के एवज में देश के उपराष्ट्रपति बनना चाहते थे, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी यह इच्छा पूरी नहीं की। उसके बाद वे प्रधानमंत्री के खिलाफ हो गए हैं। उनकी नाराजगी से ही बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में स्थिति ने आज विस्फोटक रूप ले लिया है।

घटना की शुरुआत कुछ लंपट तत्वो द्वारा एक छात्रा से हुई छेड़छाड़ से शुरू हुई। इस तरह की छेड़छाड़ की घटनाएं वहां आए दिन होती ही रहती है। योगी सरकार का एंटी रोमियो स्क्वाॅड का कहीं अता पता नहीं है। उस घटना के बाद छात्राएं उन लंपट तत्वों के खिलाफ कार्रवाई चाहती थीं, लेकिन कार्रवाई हो नहीं रही थी। इसके कारण छात्राओं में असंतोष बढ़ना स्वाभाविक था। वे कार्रवाई की मांग को लेकर घरने पर बैठ गईं। यह भी स्वाभाविक था और इसमें कुछ भी गलत नहीं था। अपनी आवाज को तेज करने के लिए गांधी का दिया गया यह अस्त्र है, जिसे सत्याग्रह कहा जाता है।

यहां तक तो सबकुछ ठीक था, लेकिन उसके आगे ठीक नहीं हुआ। कुलपति से मिलने की मांग धरना पर बैठी छात्राएं कर रही थीं। कुलपति विश्वविद्यालय का अभिभावक होता है। वह विश्वविद्यालय परिवार का पति यानी स्वामी होता है। लेकिन कुलपति त्रिपाठी ने उन छात्राओं से मिलने से ही इनकार कर दिया। विश्वविद्यालय का कुलपति छेडछाड़ की शिकार लड़की से मिलने से इनकार कर दे, यह सुनने में अजीब लगता है, लेकिन वहां ऐसा ही हुआ।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्रधानमंत्री मोदी का बनारस दौरा पहले से ही तय था। उन्हें विश्वविद्यालय में भी बौद्धिकों के साथ बैठक करनी थी। लेकिन उनके बनारस पहुंचने के पहले ही विश्वविद्यालय का वातावरण गर्म हो रहा था और उस गर्म वातावरण को ठंढा करने की जिम्मेदारी जिस व्यक्ति पर थी, वह उसे गर्म ही रखना चाहता था। प्रधानमंत्री की बनारस यात्रा के दौरान स्थिति सामान्य और खुशनुमा बनाए रखने के लिए कुलपति को सारे प्रयास करने चाहिए थे, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। पीड़ित लड़कियों से मिलना उनकी जिम्मेदारी बनती थी, लेकिन उन्होंने उनसे मिलने से ही इनकार कर दिया।

आखिर कुलपति ने वैसा क्यों किया? उन्होंने इसके बारे मे सफाई दी है, लेकिन उनकी सफाई बेहद ही बेतुकी है। वे कह रहे हैं कि महामना मालवीय की मूर्ति पर कालिख पोत दी गई थी, इसलिए उन्होंने गुस्से में धरना दे रही लड़कियों से मिलने से इनकार कर दिया। क्या कालिख लड़कियों ने ही पोती थी या किसी और ने? क्या कुलपति के पास ऐसा कोई प्रमाण है, जिससे वह कह सकें कि छेड़छाड़ से पीड़ित लड़कियों ने ही मूर्ति पर कालिख पोती थी। यह बेहद ही बेहूदा कारण है। सच तो यह है कि कुलपति होने के नाते श्री त्रिपाठी को उन लड़कियों से भी मिलने से गुरेज नहीं रखना चाहिए जो उनके चेहरे पर कालिख पोत दे, लेकिन उनके पास सच कहने का ताकत नहीं है कि वे लड़कियो से क्यों नहीं मिले, इसलिए सफाई में एक ऐसा झूठ बोल रहे हैं, जिसपर कोई विश्वास नहीं कर सकता।

सच तो यही है कि कुलपति मोदी की बनारस यात्रा के रंग में भंग डालना चाहते थे और वैसा करने में वे सफल भी रहे। प्रधानमंत्रियों की बौद्धिकों के साथ तय बैठक नहीं हो पाई और उन्हें बनारस के अंदर अपना रास्ता तक बदलना पड़ा, क्योंकि सुरक्षा कारणों से वे उस जगह से नहीं गुजर सकते थे, जहां लड़कियां धरना दे रही थीं

मोदी की बनारस यात्रा का स्वाद तो श्री त्रिपाठी ने बिगाड़ ही दिया है, इसके बाद देश भर के छात्रों के बीच मोदी विरोधी भावना पैदा करने का काम भी वे कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से अनेक विश्वविद्यालयों के छात्र संघों के चुनाव हुए हैं और वहां भारतीय जनता पार्टी की छात्र ईकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद हार चुकी है। इससे पता चल रहा है कि जिन युवकों पर नरेन्द्र मोदी का नशा चढ़कर बोलता था, वे लगातार उनके खिलाफ होते जा रहे हैं। बनारस की यह घटना उस प्रवृति को और मजबूत करेगी।

श्री त्रिपाठी संघ के अंदर बहुत ऊंचा रुतबा रखते हैं। संघ के अंदर भी अलग अलग कारणों से मोदी के अंदर विरोध होता रहा है, लेकिन सत्ता के लिए वे मोदी के पीछे लामबंद होने के लिए मजबूर हैं, पर लोकसभा चुनाव नजदीक आते आते वे मोदी से ज्यादा से ज्यादा हासिल करने की कोशिश में उनके लिए परेशानियां खड़ी कर रहे हैं। बनारस की यह घटनाए तो शुरुआत मात्र है। आने वाले दिनों में संघ के विक्षुब्ध तत्वों की ओर से मोदी के लिए चुनौतियां और भी बड़ी होने वाली हैं। (संवाद)