वैसे यशवंत सिन्हा ने कोई नई बात नहीं कही। वे वही बात कह रहे हैं, जो अनेक अर्थशास्त्री और विपक्षी पार्टियों के नेता पिछले कई महीनों से कह रहे हैं। वे देश की अर्थव्यवस्था की बुरी दशा का जिक्र कर रहे हैं। नोटबंदी पर बहुत कुछ पहले भी कहा गया है। जीएसटी लागू होने के पहले से ही यह कहा जा रहा है कि इसके कारण अर्थव्यवस्था को झटका लग सकता है और उद्योग धंधे प्रभावित हो सकते हैं।

लेकिन भाजपा के एक नेता का उसी सुर मे सुर मिलाना खास मायने रखता है। विपक्षी पार्टियां तो सरकार की आलोचना करती ही रहती हैं। आलोचना करना उनका धर्म मान लिया गया है। वे सही क्या, गलत आलोचना भी करती हैं और तिल का ताड़ भी बना देती हैं। इसलिए किसी सत्तारूढ़ पार्टी के लिए विपक्षी हमलों का सामना करना आसान होता है। उनके आरोपों को वे राजनीति प्रेरित करार देते हैं।

पर जब हमला अपने ही करें, तो उसका जवाब देना कठिन हो जाता है। इस बार हमला अपने घर के अंदर से हुआ है। हमला करने वाला भी कोई साधारण व्यक्ति नहीं है, बल्कि वह व्यक्ति है, जो कभी देश का वित्तमंत्री रह चुका है। गौरतलब हो कि यशवंत सिन्हा अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में ही नहीं, बल्कि चन्द्रशेखर की सरकार में भी वित्तमंत्री रह चुके हैं। वे 1991 का दौर भी वित्तमंत्री के दौर में देख चुके हैं, जब विश्व बाजार में भारत की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई थी। तब उस समय सरकार ने देश की प्रतिष्ठा बचाने के लिए अपने भंडार में पड़े सोने को गिरवी रख दिया था। उस समय मात्र 4 अरब डाॅलर ही विदेशी मुद्रा भंडार में बचा हुआ था। यदि सोने को गिरवी नहीं किया जाता, तो अंतरराष्ट्रीय बाजार मे अपनी देनदारियो को पूरा करने में भारत डिफाॅल्ट करने लगता।

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी यशवंत सिन्हा वित्तमंत्री थे। उसकी हैसियत से वे कई बार केन्द्र सरकार का बजट पेश कर चुके हैं। जाहिर है, उन्हें देश की अर्थव्यवस्था और सरकार के राजकोषीय हालातों की समझ एक किसी विद्वान अर्थशास्त्री से भी ज्यादा है। इसलिए जब वे कहते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था नाजुक मोड़ पर है और इसके लिए केन्द्र की सरकार जिम्मेदार है, तो इससे बड़ा और मारक हमला सरकार पर हो ही नहीं सकता। अपने हमले में वे विपक्ष से भी दो कदम आगे बढ़ गए हैं और सरकार द्वारा विकास के पेश किए गए आंकड़ों पर ही सवाल खड़ा कर रहे हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार विकास दर दो प्रतिशत घटकर 5 दशमलव 7 प्रतिशत हो गई है। वित्तमंत्री रह चुके यशवंत सिन्हा कहते हैं कि वास्तव में यह उससे भी दो फीसदी कम है। वे विकास नापने केन्द्र सरकार के पैमाने पर ही सवाल खड़ा कर रहे हैं।

जीएसटी देश की कर व्यवस्था में अब तक का किया गया सबसे बड़ा सुधार है। इसके कारण अर्थव्यवस्था और बाजार में उथल पुथल होना स्वाभाविक था, लेकिन उसके समय को लेकर यशवंत सिन्हा को आपत्ति है। उनका कहना है कि जब नोटबंदी के कारण अर्थव्यवस्था चरमराई हुई थी, तो वैसे समय में ही इसे लागू करना कहां की समझदारी थी। वे जीएसटी के वर्तमान स्वरूप को भी दोषपूर्ण बता रहे हैं।

हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। हिमाचल प्रदेश में इस समय तो कांग्रेस की सरकार है और भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने की पूरी संभावना है, लेकिन गुजरात में पिछले कई चुनाव भारतीय जनता पार्टी लगातार जीत चुकी है और एक बार फिर सत्ता में आना उसके लिए बहुत बड़ी चुनौती है। भाजपा के लिए वहां सिर्फ सत्ता में आना ही नहीं, बल्कि भारी जीत दर्ज करना भी जरूरी है, क्यांेंकि देश का प्रधानमंत्री भी गुजरात के ही हैं।

अहमद पटेल की राज्यसभा चुनाव में हुई जीत के बाद वहां कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं। पटेल आंदोलन ने भी भाजपा के लिए शमां बिगाड़ रखा है। अनुसूचित जातियों के समर्थन को लेकर भी भाजपा सशंकित है। आज भारतीय जनता पार्टी आर्थिक हालात को लेकर ही सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रही है। नरेन्द्र मोदी का यूएसपी आर्थिक विकास ही रहा है। यही कारण है कि कांग्रेस ने गुजरात में विकास को ही सबसे बड़ा मुद्दा बना रखा है और उसका पंच लाईन है, ‘‘विकास पागल हो गया है’’।

वैसी परिस्थिति में भाजपा के अंदर से ही कोई विकास को चुनौती देने लगे, तो पार्टी की स्थिति जरूर खराब हो जाएगी। इसलिए यशवंत सिन्हा द्वारा ऐसे समय में मोदी सरकार पर हमला किया गया है, जब उसको ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो सकता है।

श्री सिन्हा के हमले पर वित्त मंत्री अरुण जेटली की प्रतिक्रिया निराशाजनक है। उनके द्वारा उठाए गए सवालों का उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है, उल्टे श्री सिन्हा की मंशा पर ही सवाल खड़ा कर दिया है कि वे सरकार में कोई पोस्टिंग चाहते हैं और उसमें विफल रहने पर वे अपनी भड़ा स निकाल रहे हैं। वित्त मंत्री का यह जवाबी हमला सही हो सकता है, लेकिन यशवंत सिन्हा के सवालों का यह सही जवाब नहीं हैं।

वरूण गांधी के बाद अब यशवंत सिन्हा का यह लेख पार्टी नेतृत्व और मोदी के खिलाफ बगावत की शुरूआत है। आने वाले दिनों में वे लोग और हमले कर सकते हैं, जिन्हें सत्ता प्रतिष्ठान में जगह नहीं दी गई है। जाहिर है, प्रधानमंत्री मोदी को अब विरोधी पार्टियों के नेताओं के साथ साथ अपनी पार्टी के विरोधी नेताओं का भी सामना करना होगा। (संवाद)