यह सच है कि अखिलेश को अध्यक्ष बनने पर अपने पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल का आशीर्वाद मिला, लेकिन यह भी सच है कि दोनों में से कोई भी उस सम्मेलन में उपस्थित नहीं थे, जिस सम्मेलन में उन्हें अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया।

समाजवादी पार्टी की स्थापना 1992 में हुई थी और उसके बाद यह पहला मौका है कि उसके राष्ट्रीय अधिवेशन में इसके संस्थापक मुलायम सिंह यादव उपस्थित नहीं हुए। अब यह अखिलेश यादव पर निर्भर करता है कि वे मुलायम सिंह यादव को अपनी पार्टी के संरक्षक की भूमिका में रखें और उन्हें उचित सम्मान दें।

अखिलेश के सामने उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव भी एक चुनौती के रूप में खड़े हैं। कभी वे ही अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव की तरफ से पार्टी का संचालन किया करते थे। इटावा और उसके आसपास शिवपाल के समर्थकों की अच्छी खासी संख्या है। उन्हें अपने साथ बनाए रखना अखिलेश के लिए एक बड़ी चुनौती भरा काम होगा।

इस समय तो शिवपाल के नजीदीकी लोगों को पार्टी के अंदर भी घुसने की इजाजत नहीं दी जाती।

हालांकि अखिलेश यादव ने आगरा अधिवेशन के बाद कहा कि उनकी पार्टी का कांग्रेस के साथ गठबंधन अभी भी जारी है, लेकिन यह भी सच है कि उनका राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ कोई संपर्क नहीं बना हुआ है।

कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी व अन्य छोटी पार्टियां इंतजार कर रही हैं कि अखिलेश भारतीय जनता पार्टी से मुकाबला करने के लिए उनसे बातचीत करने की पहल करें। अखिलेश यादव को वामपंथी पार्टियों से भी बातचीत करनी होगी।

अखिलेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती 2019 का लोकसभा चुनाव है। उस चुनाव में अखिलेश ही पार्टी के मुख्य चेहरा हो सकते हैं। उनके सामने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी होंगे। विधानसभा मे 325 सीटें जीतने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी वहां चुप नहीं बैठी हुई है और वह लगातार जमीन पर सक्रिय है। उनके नेता लोगों से लगातार संपर्क साधे हुए हैं और उसके कार्यकत्र्ता भी लगातार सक्रियता बनाए हुए हैं।

योगी आदित्यनाथ हिन्दुत्ववादी ताकतों का चेहरा बने हुए हैं और उन्हें जो काम सौंपा गया है, उसे बखूबी कर रहे हैं। संघ परिवार राम मंदिर के मसले को उठा रहा है। हालांकि उसका तरीका इस बार कुछ अलग है। दिवाली के दिन योगी और उनकी सरकार के सारे मंत्री अयोध्या में होंगे। कहा जाता है कि दिवाली के दिन ही अपना बनवास पूरा कर राम अयोध्या लौटे थे।

उस दिन अयोध्या शहर को पूरी तरह प्रकाशमय किया जाएगा। वहां के सारे मंदिरों को सुसज्जित किया जाएगा। उस अवसर पर अयोध्या के विकास के लिए अरबों रुपये की योजनाओं की घोषणा भी की जाएगी।

अयोध्या में प्रति दिन पत्थरों से भरे ट्रक पहुंच रहे हैं। वे ट्रक राम मंदिर के निर्माण के लिए पहुंच रहे है। कहा जा रहा है कि दिवाली के दिन शिया वक्फ बोर्ड घोषणा करेगा कि राम जन्म भूमि मंदिर के लिए वह जमीन पर अपना दाव छोड़ता है।

2019 के लोकसभा चुनाव में हिन्दुत्व का मुद्दा अखिलेश के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगा। एक अन्य चुनौती पार्टी को अन्य प्रदेशों में विस्तार देने की होगी, ताकि वे राष्ट्रीय अध्यक्ष होने की अपनी भूमिका को न्यायसंगत बना सकें। (संवाद)