गुजरात तो प्रधानमंत्री का गृह प्रदेश है, इसलिए वहां के लिए वे कुछ ज्यादा ही महत्वपूण हैं, लेकिन बात एकतरफा नहीं है। मोदी गुजरात भाजपा के लिए जीतना महत्वपूर्ण हैं, उतना ही महत्वपूर्ण गुजरात का चुनाव मोदी के लिए महत्वपूर्ण है। वे 2001 से 2014 तक वहां के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और इस बीच हुए सभी विधानसभा चुनावों में उनके नेतृत्व में ही भारतीय जनता पार्टी जीती है। इस बार वे वहां के मुख्यमंत्री नहीं हैं और चुनाव के बाद भी वे मुख्यमंत्री नहीं होंगे। जाहिर है, मतदाताओं के सामने इस बार दूसरे किस्म का विकल्प है। इस बार गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी हैं और इसके कारण जीत के बाद भाजपा के मुख्यमंत्री बनने के उम्मीदवार वह ही हैं।

2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने आनंदीबेन पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में पाटीदारों द्वारा ओबीसी विरोधी आंदोलन हुए। वे पाटीदार खुद के लिए ओबीसी आरक्षण की मांग कर रहे थे और उसके कारण प्रदेश के ओबीसी भी आंदोलित होने की ओर बढ़ रहे थे। पाटीदार आंदोलन कई बार हिंसक भी हो गया। आनंदी पटेल पर उस आंदोलन के प्रति नरम रुख रखने का आरोप लगा। कहते हैं कि पाटीदार आंदोलन पर नियंत्रण तभी हो सका था, जब अमित शाह ने वहां के प्रशासन को सीधे निर्देश देना शुरू कर दिया था। प्रशासन की सख्ती के कारण ही आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल पर देशद्रोह का मुकदमा भी दर्ज किया गया। वे महीनों जेल में रहे और जेल से बाहर रहते हुए भी उन्हें महीनों गुजरात से बाहर रहना पड़ा था।

बाद में आनंदी बेन पटेल को हटा भी दिया गया और उनकी जगह विजय रुपानी वहां के मुख्यमंत्री बनाए गए। वे जैन समुदाय के हैं और आरक्षण की मांग पूरी न होने से नाराज पाटीदार समुदाय अपनी जीति के मुख्यमंत्री को हटाए जाने से और भी नाराज हो गए हैं। इसके कारण भारतीय जनता पार्टी के सामने एक नई समस्या आ गई है और वह समस्या पाटीदारों द्वारा पार्टी से भागने की है। वैसे नरेन्द्र मोदी केशुभाई पटेल के विरोध के बावजूद चुनाव जीत जाया करते थे। केशुभाई ने तो अलग पार्टी बनाकर चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वे मोदी और भाजपा को जीतने से रोक नहीं पाए थे। पाटीदारों का एक बड़ा हिस्सा तब भी भाजपा के खिलाफ हो जाया करता था, लेकिन इस बार खतरा है कि जो थोड़ा बहुत पाटीदारों के वोट पहले मिला करते थे, वे भी शायद इस बार नहीं मिल पाए।

पाटीदारों के अलावा व्यापारी वर्ग की नाराजगी का सामना भी भाजपा कर रही है। नोटबंदी के कारण व्यापारियों का भारी नुकसान हुआ था। जीएसटी के कारण उनकी समस्याएं विकराल रूप धारण कर रही हैं। हालंकि जीएसटी में कुछ बदलाव लाकर उनकी यह समस्या समाप्त करने की कोशिश की गई है, लेकिन व्यापारियों के लिए जीएसटी अपने आपमें समस्या है। संक्रांति काल में यह समस्या स्वाभाविक भी है, लेकिन इसके कारण भारतीय जनता पार्टी के सामने चुनाव हारने का खतरा भी पैदा हो गया है। जाहिर है, नरेन्द्र मोदी की अतिरिक्त प्रयास करने पड़ रहे हैं, जो उनके गुजरात के बार बार दौरे में देखा जा सकता है।

दलित और आदिवासियों में भी भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ माहौल बनने लगा है। दलितों पर अत्याचार की खबरें लगातार आती रहती हैं। पिछले साल कथित गौरक्षकों द्वारा दलितों पर अत्याचार का मामला सामने आया था। इस बार एक दलित युवक द्वारा स्टाइलिश मूछ रखे जाने पर पाटीदार युवकों ने उसे पीटा। इसके कारण भी दलितों के बीच सरकार और भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ रोष है। भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी दलितों को रिझाने के लिए भीम राव अंबेडकर का महिमा मंडन करते रहे हैं, लेकिन उसका लाभ पार्टी को मिलता दिखाई नहीं दे रहा है।

भाजपा की एक बहुत बड़ी समस्या वहां लंबे अरसे से चल रही उसकी सरकार है। जाहिर है, सत्ताविरोधी भावना इस बार ज्यादा मजबूत होगी। उसकी मुख्य विरोधी पार्टी कांग्रेस है। राष्ट्रीय स्तर पर उसकी स्थिति ठीक नहीं है, लेकिन गुजरात के स्तर पर वह इस बार एकजुट होकर भाजपा को टक्क्र दे रही है और राहुल गांधी खुद आगे बढ़कर चुनाव अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। वैसी हालत में भारतीय जनता पार्टी सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी के करिश्मे पर ही अपनी जीत के लिए निर्भर है।

यही कारण है कि नरेन्द्र मोदी किसी तरह का खतरा नहीं लेना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में शानदार जीत के कारण भारतीय जनता पार्टी के हौसले बुलंद हैं। उनके विरोधियों के हौसले पस्त हैं और वे 2019 के लिए हारती हुई लड़ाई लड़ते दिख रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी इस माहौल में बदलाव नही चाहेगी। वह गुजरात मे न केवल बहुमत चाहेगी, बल्कि एक बड़ा बहुमत चाहेगी। आगामी चुनाव मे उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ही है। उसके हौसले को पस्त रखना भारतीय जनता पार्टी की रणनीति का हिस्सा है। गुजरात चुनाव में यदि कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया, तो यह भारतीय जनता पार्टी के लिए अशुभ होगा। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी उत्तर प्रदेश जैसी जीत गुजरात में दुहराने के लिए ही इतना जोर लगा रहे हैं। (संवाद)