वैसे तो दक्षिण भारत में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना भी ऐसे राज्य हैं जहां भाजपा की मौजूदगी नाममात्र की ही है, लेकिन केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के बाद भाजपा के लिए केरल ही फिलहाल सियासी तौर पर अहम है, जहां वामपंथ से अपनी वैचारिक दुश्मनी के चलते वह अपना आधार खडा करना चाहती है। उसकी इसी चाहत के चलते राज्य में सत्ता पर काबिज भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी माकपा और संघ के बीच लंबे अरसे से खूनी संघर्ष चल रहा है, जिसमें हाल के वर्षों में तेजी आई है। केरल क्राइम ब्यूरो के आंकडे बताते हैं कि पिछल दस वर्षों के दौरान राज्य में लगभग 100 राजनीतिक हत्याएं हो चुकी हैं। इनमें से ज्यादातर घटनाएं उत्तरी केरल के मालाबार इलाके के कन्नूर जिले में हुई हैं।
राजनीतिक हिंसक संघर्ष की घटनाएं सिर्फ संघ और माकपा के बीच तक ही सीमित नहीं है। इस तरह की घटनाएं संघ और कांग्रेस के बीच भी होती रहती हैं और माकपा तथा कांग्रेस की सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के बीच भी। लेकिन ऐसी घटनाओं में मारे जाने वालों में ज्यादातर कार्यकर्ता संघ-भाजपा और माकपा के ही होते हैं। चूंकि मुख्यधारा के मीडिया, खासकर टीवी चैनलों का झुकाव अन्यान्य कारणों से भाजपा और संघ की तरफ है, लिहाजा प्रचारित यही होता है कि राजनीतिक हिंसा के सर्वाधिक भाजपा और संघ के कार्यकर्ता ही होते हैं। इसी वजह से संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा बम बनाए जाने या मंदिरों से बरामद होने वाले हथियारों के जखीरें की खबरें भी मीडिया में ज्यादा जगह नहीं बना पातीं।
दरअसल केरल का सामाजिक परिदृश्य देश के बाकी हिस्सों से बिल्कुल जुदा है। इस तटवर्ती सूबे में हिंदुओं की आबादी करीब 52 फीसदी है। इसके अलावा 27 फीसदी मुस्लिम और 18 फीसदी ईसाई आबादी है। केरल में राजनीतिक मुकाबला वामपंथी और कांग्रेस नीत गठबंधन के बीच रहता है, लेकिन हिंसक संघर्ष वामपंथी मोर्चा, खासकर माकपा और संघ परिवार के बीच होता है। देश के अन्य सूबों की तरह यहां की राजनीति भी जाति और संप्रदाय के दायरों में बंटी हुई है। केरल में वामपंथी पार्टियों का मुख्य जनाधार हिंदुओं के बीच है जबकि कांग्रेस का ईसाई और मुस्लिम समुदाय में। यही वजह है कि भाजपा और संघ परिवार का सीधा संघर्ष यहां माकपा से होता है और यही राजनीतिक संघर्ष अक्सर हिंसात्मक संघर्ष में तब्दील हो जाता है, जिसके चलते कभी संघ-भाजपा के कार्यकर्ता मारे जाते हैं तो कभी माकपा के कार्यकर्ता। हालांकि भाजपा अभी तक केरल की राजनीति में अपना मुकाम बनाने में कामयाब नहीं हो सकी है लेकिन पिछले कुछ वर्षों के दौरान बदले राजनीतिक वातावरण में अन्य राज्यों के साथ ही केरल में भी उसके वोटों के ग्राफ में बढोतरी हुई है। पिछले लोकसभा चुनाव के पहले तक केरल में भाजपा का वोट प्रतिशत 6.4 था जो लोकसभा चुनाव में बढकर 10.45 प्रतिशत हो गया था। 2016 के विधानसभा चुनाव में लगभग इतने ही प्रतिशत वोटों के साथ भाजपा ने विधानसभा में पहली बार अपना खाता खोला और वह एक सीट जीतने में कामयाब रही। भाजपा की यह कामयाबी ही माकपा और वामपंथी गठबंधन की बेचैनी की मुख्य वजह है।
संघ परिवार का दावा है कि हिंसा के सर्वाधिक शिकार उसके कार्यकर्ता हुए हैं। अपने इसी दावे को पुख्ता करने के लिए पिछले कुछ दिनों से संघ परिवार कन्नूर जिले को राष्ट्रीय बहस के केंद्र में लाने की भरपूर कोशिश कर रहा है। इस सिलसिले में दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस में संघ परिवार के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने कन्नूर में मारे गए संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं की विचलित कर देने वाली तस्वीरें होर्डिंग्स के तौर पर लगाई हैं। सुर्खियां बटोरने वाले एक कुख्यात भाषण में संघ के एक प्रचारक ने देश के इस दक्षिणी राज्य में दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी कार्यकर्ताओं की हत्याओं का बदला लेने वाले को इनाम के तौर पर बडी राशि देने का ऐलान भी किया।
ऐसे पोस्टर-होर्डिंग्स और भाषणों के जरिये संघ परिवार के सदस्यों ने खुद को क्रूर, हिंदुओं को तबाह कर देने वाले और ‘देशद्रोही’ वामपंथियों के बेगुनाह और लाचार शिकार के तौर पर पेश करने की कोशिश की है। इन टिप्पणियों में इस बात का कहीं जिक्र नहीं है कि माकपा और संघ-भाजपा के बीच लंबे अरसे से जारी संघर्ष में दोनों तरफ के युवा हिंसा का शिकार हुए हैं। दोनों तरफ के कार्यकर्ताओं की जानें गई हैं। कोई भी पक्ष आरोप से बरी नहीं किया जा सकता।
दो परस्पर विरोधी विचार वाली राजनीतिक जमातों के बीच जारी यह हिंसक टकराव महज इसलिए गौरतलब और चिंताजनक नहीं है कि यह लंबे अरसे से चला आ रहा है और न ही इसलिए कि इसमें दोनों पक्ष बराबर के भागीदार और जिम्मेदार हैं। यह टकराव इसलिए गौरतलब है कि यह हमारी हमारी राजनीति के बेहद स्याह, बेहद क्रूर और बेहद अमानवीय चेहरे को सामने लाता है। यह टकराव बताता है कि प्रतिस्पर्धात्मक लोकतांत्रिक राजनीति किस तरह बहुसंख्यकवाद की ओर मुड़ सकता है। यह टकराव हमें बताता है कि इस तरह की हिंसक राजनीति किस तरह वंचित और हाशिये के समुदायों से आने वाले युवाओं के जीवन को अपने शिकंजे में ले सकती है। (संवाद)
केरल में हिंसक टकराव के बीच राजनीतिक जमीन की तलाश
यह हमारी अमानवीय चेहरे को सामने लाता है
अनिल जैन - 2017-10-11 13:24
भारतीय जनता पार्टी अपने ‘मिशन साउथ’ को पूरा करने के लिए मैदान में उतर चुकी है। दक्षिण भारत में वामपंथी दुर्ग कहा जाने वाला केरल उसका नया सियासी अखाडा है, जहां पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से लेकर हिंदुत्व का नया अखिल भारतीय पोस्टर ब्वॉय बनने को बेताब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कई केंद्रीय मंत्री सडक पर उतर चुके हैं। राज्य में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच पिछले दशकों से जारी खूनी संघर्ष का शोर अब दिल्ली में भी सुनाई देने लगा है। भाजपा का मंसूबा इस संघर्ष में हो रही संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं की हत्याओं के मुद्दे को गरमा कर अगले विधानसभा चुनाव तक केरल की सत्ता पर काबिज होने या कम से कम मुख्य विरोधी दल के रूप में अपनी पहचान बनाने का है।