जाहिर है, गुजरात की तारीखें इसलिए नहीं घोषित नहीं की गई, क्योंकि वहां निर्वाचन आयोग सरकार को लोकलुभावन घोषणा करने का समय देना चाहती है। यह स्थिति अच्छी नहीं है। इसका मतलब है कि निर्वाचन आयोग एक तरह से सत्तारूढ़ पार्टी को चुनाव प्रचार के दौरान फायदा पहुंचाने की कोशिश कर रही है। अगले कुछ दिनों में प्रधानमंत्री गुजरात का दौरा करने वाले हैं और वे वहां कुछ घोषणाएं कर सकते हैं। शायद उसके बाद ही गुजरात के चुनाव की तारीखों की घोषणा की जाय। यदि ऐसा होता है, तो निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर एक बार फिर सवाल खड़ा होगा। ईवीएम मशीनों को लेकर निर्वाचन आयोग पहले ही अनेक पार्टियों की आलोचना का शिकार होता रहा है। गुजरात विधानसभा की तारीखों की घोषणा में विलंब करके आयोग ने विपक्ष को एक मौका और भी दे दिया है।

फिलहान हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। वहां कांग्रेस सत्ता में है और वह दुबारा सत्ता हासिल करने की कोशिश में लगी हुई है। वहां पिछले कई चुनावांे से एक ट्रेंड बना हुआ है कि बारी बारी से कांग्रेस और भाजपा की सरकार बनती रही है। जाहिर है इस बार बारी भाजपा की लगती है। वैसे भी भारतीय जनता पार्टी एक के बाद एक चुनाव जीतती जा रही है। खासकर जहां उसका कांग्रेस से मुकाबला होता है, वहां बाजी उसी के हाथ लगती है। पंजाब को हम एक अपवाद कह सकते हैं, जहां कांग्रेस की भारी जीत हुई, लेकिन वहां कांग्रेस के सामने मुख्य ताकत भाजपा नहीं थी, बल्कि शिरोमणि अकाली दल था। इसलिए वहां की लड़ाई को कांग्रेस बनाम भाजपा कहना सही नहीं होगा।

तो हिमाचल प्रदेश में एक बार फिर कांग्रेस और भाजपा आमने सामने है और कांग्रेस ने वर्तमान मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को ही अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाकर पेश किया है। उन पर भ्रष्टाचार का एक मामला चल रहा है। उनके खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल हो चुका है और वे अभी जमानत पर हैं। जाहिर है, भारतीय जनता पार्टी भ्रष्टाचार के मामले को मुख्य मुद्दा बना रही है। पिछले दिनों वहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सभा हुई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि यहां की सरकार ही जमानत पर है। उन्होंने सोनिया गांधी, राहुल गांधी और हिमाचल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के जमानत पर होने के तथ्यों को भी रेखांकित किया था। जाहिर है कि भाजपा भ्रष्टाचार को वहां मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने जा रही है।

लेकिन क्या इस मुद्दे पर भाजपा कांग्रेस को पछाड़ पाएगी? इसका जवाब सकारात्मक होता, यदि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे होते। उनपर आरोप लगा है कि उनके बेटे की 50 हजार की कंपनी कुछ ही महीने मे 80 करोड़ की कंपनी हो गई। इस आरोप को अमित शाह के बेटे और उनकी पार्टी ने खंडन किया है और वे अदालत में भी उस वेबसाइट को घसीट रहे है, जिसने वह खबर छापी, लेकिन देश भर मंे एक राजनैतिक संदेश तो चला ही गया है कि अमितशाह के राजनैतिक रूतबे का दुरुपयोग करके उनके बेटे ने कुछ न कुछ तो गड़बड़ी की ही है। कांग्रेस इस मामले को हिमाचल प्रदेश के चुनाव में उठाने से बाज नहीं आएगा। इसके कारण संभावना यह है कि यदि भाजपा ने वीरभद्र के भ्रष्टाचार के मामले को तूल दिया, तो इसका उलटा असर उसकी चुनावी संभावनाओं पर पड़ सकता है। बिहार में ऐसा हो भी चुका है। उस समय भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर व्यापम और ललित मोदी से संबंधित भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे थे और तब लालू पर भ्रष्टाचार के आरोप का उलटा असर भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर पड़ा था।

भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक वहां अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। उसके द्वारा अपना उम्मीदवार घोषित नहीं करने की संभावना बहुत ज्यादा है, लेकिन ऐसा नहीं करना उसके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। भाजपा के पास शांताकुमार और धूमल जैसे चेहरे हैं, लेकिन उनकी अधिक उम्र हो जाने के कारण उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में नहीं पेश किया जा सकता। जे पी नड्डा के नाम की चर्चा है, लेकिन उनके बारे में सिर्फ इशारा ही किया जा रहा है। वे मूल रूप से तो हिमाचल के ही हैं, लेकिन वे पैदा बिहार में हुए हैं और उनकी शिक्षा दीक्षा भी वहीं हुई है। इसलिए हिमाचल प्रदेश के लोगों के बीच उनकी स्वीकार्यता कम है। दूसरी ओर वीरभ्रद सिंह 6 बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वे भूतपूर्व राज परिवार से आते हैं और लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता भ्रष्टाचार के आरोप के बावजूद कम नहीं हुई है। यही कारण है कि कांग्रेस ने उन्हे एक बार फिर अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार बना दिया है।

भाजपा वहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी और उसे उम्मीद है कि वह उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनाव परिणामो को वहां दुहरा देगी, लेकिन छह महीने पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जो छवि थी, वह आज नहीं है। सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी के कारण लोगों मे उनकी छवि एक कठोर निर्णय करने वाले मजबूत नेता की बनी थी, लेकिन नोटबंदी की विफलता लोगों के सामने आ चुकी है और उसके साथ मोदी की छवि को भी नुकसान पहुंचा है। यही कारण है कि इस बार हिमाचल प्रदेश में भाजपा की जीत आसान नहीं दिख रही है। (संवाद)