इसलिए जब विनोद खन्ना की मौत से वह सीट खाली हुई, तब से ही यह लग रहा था कि इस सीट को जीतने के लिए भाजपा को काफी मेहनत करनी पड़ेगी। इसका एक कारण यह भी था कि इसी साल फरवरी में हुए चुनाव में वहां भाजपा और अकाली गठबंधन की करारी हार हुई थी। जाहिर है, भाजपा के लिए पंजाब की राजनैतिक जमीन बहुत उपजाऊ नहीं थी।
फिर भी यह तो लग ही रहा था कि तिनतरफा लड़ाई मे भाजपा जीत भी सकती है और यदि हारी भी तो मामूली मतों से ही हारेगी। पर हार का अंतर लगभग दो लाख मत हैं। एक लाख 93 हजार से भी ज्यादा मतों से भाजपा के उम्मीदवार की हार हुई है। जाहिर है, मुकाबला था ही नहीं। कांग्रेस की जीत बहुत आसानी से हो गई। आसान जीत का एक कारण तीसरे उम्मीदवार यानी आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को मतदाताओं द्वारा पूरी तरह से नकार दिया जाना था। इसका मतलब यह होता है कि जो भाजपा विरोधी मतदाता थे, वे हर हालत में भाजपा उम्मीदवार की हार देखना चाहते थे और उन्होंने उस उम्मीदवार के पक्ष में वोट डाला, जो उसे हराने की बेहतर स्थिति में था। इसलिए जो मतदाता आम आदमी को पसंद करते थे, वे भी भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार को वोट दे डाले और इस तरह मुकाबला सीधा हो गया और इस सीधे मुकाबले मे भाजपा धराशाई हो गई।
होशियारपुर के चुनावी नतीजे भाजपा के लिए खतरे की घंटी है। यहां हारने के बाद लोकसभा में उसकी एक सीट कम हो गई और कंाग्रेस की एक सीट बढ़ गई। भाजपा की एक सीट कम होने से लोकसभा में उसके बहुमत पर तो कोई असर नहीं पड़ा है, लेकिन इससे यह साफ हो गया है कि आने वाले सभी चुनावों में उसे काफी मशक्क्त करनी पड़ेगी। होशियारपुर की यह हार कोई पहली हार नहीं है। दिल्ली में बवाना उपचुनाव में भी भाजपा का उम्मीदवार बुरी तरह हारा था, जबकि कुछ महीने पहले हुए दिल्ली नगर निगम के चुनाव में उसे जीत मिली थी। होशियारपुर के चुनावी नतीजे आने के पहले महाराष्ट्र के नांदेड़ के नगर निगम का चुनाव हुआ था। वहां भाजपा को कुल 81 सीटों में से मात्र 3 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 72 सीटें प्राप्त हो गई थीं।
होशियारपुर का नतीजा एक खास प्रवृति का संकेत करता है और वह प्रवृति है लोगों का नरेन्द्र मोदी के प्रति मोह भंग होते जाना। विश्वविद्यालयों के छात्र संगटनों के चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, जो कि भाजपा की छात्र ईकाई है, लगातार चुनाव हार रही है और उसका प्रदर्शन पिछले साल के चुनाव की अपेक्षा लगातार खराब होता जा रहा है। हाशियारपुर के चुनावी नतीजा आने के एक दिन पहले ही इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनावी नतीजे आए थे और उसमें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद समाजवादी पार्टी की छात्र ईकाई समाजवादी छात्र सभा से चुनाव हार गई थी। उसके पहले दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, असम और हैदराबाद में हुए छात्र संघ चुनावों में भी भाजपा की छात्र ईकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को हार का मुह देखना पड़ा था।
जाहिर है, लोगों का मूड धीरे धीरे भाजपा के खिलाफ होता जा रहा है। यह एकाएक नहीं हो रहा है। जिस तरह देश का मूड धीरे धीरे मोदी के पक्ष में 2011 के बाद बनता गया था और 2014 के आते आते पूरी तरह उनके पक्ष में बन गया था, उसी तरह अब धीरे धीरे लोगों का मोदीजी से मोहभंग होता जा रहा है। मोदी से मोहभंग का मतलब है भाजपा की हार, क्योंकि अब जीत के लिए वह पूरी तरह मोदी पर निर्भर हो गई है।
आखिर मोदी के खिलाफ लोगों का मूड क्यों तैयार होता जा रहा है? इसका सबसे बड़ा कारण तो नोटबंदी की विफलता ही है। जब मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की थी, तो वे एकाएक देश के लोगों े दिल में बस गए थे। उन्हें लगने लगा था कि काला धन के मालिकों का काला धन मोदीजी ने एक घोषणा से समाप्त कर दिया है। हालांकि ऐसे लोग भी थे, जो उस कदम को विनाशक बता रहे थे, लेकिन वैसे लोगों की संख्या बहुत ही कम थी और आम लोगों ने वैसे लोगों को तब काले धन का समर्थक ही समझ लिया था।
पर नोटबंदी से एक भी घोषित फायदा नहीं मिला और उसके कारण देश की जनता को बहुत ही बुरे दिन देखने पड़े थे। वे अपने बुरे दिनों को भी भूल जाते, यदि यह नोटबंदी सफल होता, लेकिन यह तो बुरी तरह विफल रहा और अब लोगों को नोटबंदी के बुरे दिनों की याद सताने लगी है। काले धन के खिलाफ युद्ध करने के मोदी के सारे वायदे हवा हवाई साबित हो रहे हैं। लोग देख रहे हैं कि भ्रष्टाचार बदस्तूर जारी हैं। मोदी की सरकार में भ्रष्टाचार नहीं है, ऐसा अब शायद ही कोई मानेगा, क्योंकि सरकार से जुड़े लोगों की माली हालत बेहतर होते वे देख रहे हैं।
इसके अलावा नोटबंदी ने जो कहर बरपाया था, उसकी मार अब करोड़ों लोग झेल रहे हैं। उनके काम धंधे उस समय प्रभावित हुए थे। उस प्रभाव को तात्कालिक समझ कर वे मुद्रा संकट का भी मजा ले रहे थे, लेकिन प्रभावित करोड़ों लोगों मंे से एक बड़े हिस्से की जिंदगी अभी तक पटरी पर नहीं लौटी है। इसलिए वे नोटबंदी से अपने आपको छला महसूस कर रहे हैं।
नोटबंदी के अलावा जीएसटी ने भी व्यापारी वर्ग को परेशान करना शुरू कर दिया है। जीएसटी की पूरी तैयारी सरकार के पास थी ही नहीं। यह कर व्यवस्था उतना सरल नहीं है, जितना वायदा किया जा रहा था। यह टेक्नालाॅजी आधारित है, लेकिन टेक्नालाॅजी लगातार घोखा दे रही है। और जो कर जमा करना चाहते हैं, वे भी इससे पीड़ित हो रहे हैं। यही कारण है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार से लोगों का मोह धीरे धीरे भंग हो रहा है। (संवाद)
होशियारपुर के संदेशः भाजपा को रहना होगा अब होशियार
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-10-16 10:21
पंजाब के होशियार लोकसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। वह सीट भाजपा सांसद अभिनेता विनोद खन्ना के निधन से खाली हुई थी। श्री खन्ना वहां से लगातार चुनाव जीत रहे थे। भाजपा की चुनावी स्थिति अच्छी हो या खराब, लेकिन अपनी लोकप्रियता और जनता से जुड़ाव के कारण वे चुनाव जीत ही लेते थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उनकी जीत हुई थी, जबकि पंजाब में भाजपा का प्रदर्शन अन्य उत्तर भारतीय प्रदेशों के मुकाबले बहुत खराब था।