अमेरीका में राष्ट्रपति चुनाव के परिदृृश को इस दिशा में आसानी से देखा जा सकता है जहां आम जनता राष्ट्रपति का चनाव करती है। राष्ट्रपति चुनाव पूर्व सभी प्रत्याशी अपनी बात जनता के समक्ष रखते है। इस प्रक्रिया में अभिव्यक्ति मुख्य होती है। जो अपनी बात सही ढंग से प्रस्तुत कर पाता, जीत उसी की होती है। भारतीय लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की ही प्रमुखता सदा से बनी रही है। इस दिशा में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के निर्भिक नेतृृत्व एवं प्रखर अभिव्यक्ति को देखा जा सकता है जिसके बल पर देश में लोकप्रियता को हासिल करते हुए विदेशों तक वह अपना प्रभुत्व बनाये हुये थी।

यहीं परिदृृश्य आज केन्द्र की भाजपा सरकार वर्चस्व वाली सराकर के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बनी हुई है। जब से नरेन्द्र मोदी ने भाजपा की कमान संभाली है तब से नरेन्द्र मोदी के प्रखर अभिव्यक्ति के चलते भाजपा की शाख सर्वोपरि बनी हुई है। अपने तेज तर्रार अभिव्यक्ति के चलते विदेशों में भी आज नरेन्द्र मोदी की शाख सर्वोपरि बनी हुई है। आज भाजपा की इतनी बड़ी जीत का श्रेय नरेन्द्र मोदी के पल्ले ही जाता है। उत्तर प्रदेश एवं बिहार में भाजपा शासन को कायम करने में भी नरेन्द्र मोदी की सोची समझी राजनीतिज्ञ चाल है।

आज देश भर में भाजपा का परचम फहराने में नरेन्द्र मोदी अपने प्रखर व्यक्तित्व के चलते सफल हो रहे है पर बढ़ता ग्राफ धीरे - धीरे कम होता जा रहा है। अभी भी अभिव्यक्ति के चलते नरेन्द्र मोदी की चर्चा सर्वोपरि बनी हुई है । आज कांग्रेस के परिदृृश्श्य को देखे तो इस प्रखर अभिव्यक्ति की कमी राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस नेतृृत्व में अवश्य महसूस हो रही है। जिसके वजह से कांग्रेस आमजन को इंदिरागांधी की तरह आज अपनी ओर नहीं खींच पा रही है। दिल्ली के विधान सभा चुनाव में अरविन्द केजरीवाल के अभिव्यक्ति करिश्में को देखा जा सकता है जहां दोनों राष्ट्रीय दल कांग्रेस एवं भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ा ।

लोकतंत्र में अभिव्यक्ति के माध्यम से जनता का दिल तो जीता जा सकता है पर उसके पैमाने पर सही नहीं उतरने पर उसका कोपभांजन का भी शिकार होना पड़ता है। जिसके वजह से सत्ता परिवर्तन का दौर निरंतर जारी देखा जा सकता है। इतिहास इस बात का गवाह है, सर्वाधिक जनमत पाने वाली प्रियदर्शनी रही इंदिरा गांधी को पराजय का मुंह भी देखना पड़ा । सत्ताधारी रही भाजपा को लोकसभा चुनाव में एकबार मात्र दो सीटों से ही समझौता करना पड़ा । सर्वोपरि जनमत पाने वाले माया मुलायम दोनों को उत्तर प्रदेश चुनाव में मात खानी पड़ी। इस समय देशभर में नरेन्द्र मोदी की चर्चा जोरों पर है। भाजपा की पहचान भी इस प्रखर नेता की अभिव्यक्ति पर टिकी है पर धीरे - धीरे हालात बदलते नजर आ रहे है। सर्वाधिक जनमत पाने वाले दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल एवं केन्द्र में नरेन्द्र मोदी का करिश्मा का जादू कम होता जा रहा है।

लोकतंत्र में अभिव्यक्ति का प्रभाव सर्वोपरि तो है पर झांसा ज्यादा देर नहीं टिकता । लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नेतृृत्व में सर्वाधिक जनमत पाकर बनी सरकार से देश के आमजन को काफी अपेक्षाएं रही पर सराकर द्वारा कालेधन रोकने की दिशा में नोटबंदी एवं टैक्स चोरी रोकने की दिशा में विभिन्न टैक्स हटाकर एक देश एक टैक्स की नीति के तहत जीएसटी लागू की गई पर इन दोनों नीतियों से आमजन को राहत तो मिली नहीं उलटे परेशानी ही हुई। नोटबंदी से देश का कालाधन तो रूका नहीं पर बेरोजगारी बड़े पैमाने पर फैल गई । नोटबंदी का लाभ उत्तरप्रदेश एवं उतराखंड के चुनाव दे दौरान अवश्य मिला जहां बड़े पैमाने पर कालेधन का दुरुपयोग रूक गया । चुनाव में कालेधन का दुरूपयोग सदैव होता रहा है, इस प्रक्रिया से देश को कुछ राहत अवश्य मिली पर जाली नोट का आना बंद नहीं हुआ। अपना ही धन पाने के लिये आम जनता घंटों लाईन में लगी रही ओश्र बैंकों का गोरखधंधा जारी रहा ।

नोटबंदी का प्रतिकूल प्रभाव रीयल स्टेट से लेकर दैनिक मजदूरी पाने वाले मजदूरों सहित लघु एवं मझौले उद्योग एवं कारोबारियों पर सर्वाधिक पड़ा । इसी तरह जीएसटी का प्रतिकूल प्रभाव आमजन की जेब पर पड़ा जिससे वर्तमान सरकार की आमजन को राहत देने की नीति पर आमजन को संदेह होने लगा। नोटबंदी एवं जीएसटी के विरोध में सŸााधारी दल के बीच से ही आवाज उठने लगी। सरकार द्वारा जीएसटी में सुधार करने की घोषणा कर इस आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है पर सरकार की दिखाई दे रही नीति में रोजगार देने की सशक्त कोई योजना नजर नहीं आ रही है। रोजगार देने वाले उद्योग तो धीरे - धीरे बंद होते जा रहे है , नये उद्योग आ नहीं रहे है। इस तरह के परिवेश बेरोजगारी बढ़ाने में सहायक ही होंगे। बाजार पर नियंत्रण नहीं होने से देश के किसान , मजदूर एवं आमजन सभी परेशान है। इस तरह के हालात में गुजरात एवं हिमाचल में विधान सभा के चुनाव होने जा रहे है। गुरूदासपुर लोकसभा के उपचुनाव ने जो परिणाम दिया है, सत्ता परिवर्तन का कहीं परिचायक तो नहीं। (संवाद)