विधायक के बाद भाजपा के सांसद ने तो ताजमहल को एक शिववालय को तोड़कर बनाया गया कब्र कह दिया। फिर किसी ने पूरे ताजमहल परिसर को ही कब्रिस्तान कह दिया। और योगी ने उस विवाद को खत्म करने के लिए अपने हाथ में झाड़ू लिया। ताजमहल के प्रति अपने प्रेम का इजहार करने के लिए योगी ने वहां झाड़ू लगाने की ठान ली और जिस दिन उनका वहां का दौरा था, उस दिन उन्होंने आदेश दे दिया कि सफाईकर्मी वहां सफाई नहीं करें, क्योकि वे खुद आकर वहां की सफाई करने वाले हैं। फिर वहां पड़ा कूड़ा, जिसकी सफाई सुबह में ही हो जानी चाहिए थी, उनका इंतजार करती रही और आकर उन्होंने अपनी टीम के साथ सफाई कर डाली।

सवाल उठता है कि कूड़े की सफाई कर योगी साबित क्या करना चाहते हैं? ताजमहल से प्रेम दर्शाने का यह कौन सा तरीका है? वे प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और उनका प्रदेश देश का सबसे अधिक समस्याग्रस्त प्रदेश है। वैसे प्रदेश में यदि मुख्यमंत्री सफाईकर्मी का काम करेगा, तो फिर मुख्यमंत्री का काम कौन करेगा? क्या चुनाव में मतदाता सफाई करने के लिए नेताओं का चुनाव करते हैं या प्रदेश में शासन से संबंधित समस्याओं के हल के लिए अपने प्रतिनिधि और अपनी सरकार चुनते हैं?

गौरतलब हो कि सत्ता में आने के बाद नरेन्द्र मोदी ने इस तरह का अभियान शुरू किया था। वे स्वच्छ भारत अभियान चला रहे हैं और इसके लिए उन्होंने अपने हाथ में झाड़ू उठा लिया था। प्रतीकात्मक रूप से यह अच्छा था, क्योंकि हमारे देश में श्रमिकों और खासकर सफाईकर्मियों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। इसलिए यदि देश के सबसे ताकतवर पद पर बैठा हुआ व्यक्ति सफाई अभियान में खुद भी शामिल हो जाता है, तो इससे श्रमिक वर्ग और खासकर सफाई कर्मचारियों का वर्ग अपने काम को प्रतिष्ठित समझने लगता है और समाज के अन्य लोग भी खुद सफाई करने का सम्मान की दृष्टि से देखने लगते हैं। लेकिन इतना तो तय है कि प्रधानमंत्री से न तो सफाई की समस्या सुलझ सकती है और न ही प्रधानमंत्री का काम है। इसलिए बेहतर यही है कि जो इस काम में लगे हुए हैं, उन्हें सम्मानित कीजिए और उनकी इज्जत बढ़ाइये। सफाई कर्मियों के जीवन स्तर को सुधारिए। उनके मेहनताने के समय पर भुगतान को सुनिश्चित कीजिए। उनके स्वास्थ्य की फिक्र कीजिए, क्योंकि जो काम वे करते हैं, उससे उनके स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ता है। लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा हाथ में झाड़ू उठाने के बाद भाजपा नेताओं में झाड़ू उठाकर तस्वीरे खिंचवाने और विडियो बनवाने का शौक परबान चढ़ने लगा। सोशल मीडिया के इस युग में लोग झाड़े उठाए अपनी तस्वीरों और सफाई करते अपने विडियों को डालने की होड़ में शामिल हो गए। ऐसे भी मामले सामने आए, जिसमें भाजपा के नेताओं ने साफ सुथरे इलाकों को पहले गंदा किया और बाद में वहां सफाई का नाटक करते हुए अपनी तस्वीरें खिंचवाई। दिल्ली प्रदेश के तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष जैसे पद पर बैठे व्यक्ति ने यह काम किया।

इस तरह झाड़ू उठाकर सफाईकमियों का सम्मान बढ़ाने का नहीं, बल्कि खुद को सम्मानित करवाने का एक लंबा सिलसिला हुआ। और इस सिलसिले को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद आदित्यनाथ योगी ने भी जारी रखा। इस तरह की हरकतों से सफाई नहीं हो सकती, क्योंकि यह निरा पाखंड है। मीडिया में खबरें पाने के लिए और सस्ती पब्लिसीटी पाने के लिए किए गए इस तरह के बर्ताव से सफाई तो नहीं हो सकती। हां, जिस काम के लिए ये नेता बड़े बड़े पदों पर बैठे हुए हैं, वे काम जरूर होने से रह जाएंगे।

उत्तर प्रदेश का ही उदाहरण लें। यह देश का सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य है और यहां समस्याओं का अंबार है। मुख्यमंत्री का काम उन हजारों समस्याओं का हल निकालना है, लेकिन सबको छोड़कर यदि मुख्यमत्री हाथ में झाड़ू लेकर निकल जाए, तो फिर उस प्रदेश का क्या होगा? सफाई करना भी एक कौशल का काम है। यह काम बेहतर तरीके से वहीं कर सकते हैं, जिन्होंने इस काम में कुशलता हासिल कर रखी है। उन कुशल लोगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और समाज में उन्हें उनका सही हक दिलाया जाना चाहिए, लेकिन आदित्यनाथ योगी जैसे नेता जनता का सम्मान पाने के लिए जब झाड़ू हाथ में उठाते हैं, तो उनसे वे अपनी जिम्मेदारियों से तो भागते दिखाई ही देते हैं, सफाई का उद्देश्य भी उससे पराजित हो जाता है।

आज उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। भ्रष्टाचार भी काफी बढ़ गया है और उसके कारण अस्पताल तक प्रभावित हो रहे हैं, जहां आॅक्सीजन सिलिंडर तक सही समय पर नहीं पहुंच पाते और भंुगतान के अभाव में उसका सप्लाई तक रोक दिया जाता है। मुख्यमंत्री और सत्ता के ऊंचे पदों पर बैठे लोगों को अपना अपना काम करना चाहिए और उनमें कामयाबी हासिल कर भी वे अच्छी पब्लिीसीटी पा सकते हैं और अपना सम्मान बढ़ा सकते हैं। लेकिन क्या वे अपने को उस काम के योग्य नहीं मानते? लगता तो यही है, तभी तो वे पहले एक विवाद खड़ा करते हैं और फिर उसे समाप्त करने के लिए झाड़ू उठाते हैं। इस तरह की मनोवृति से बाज आनी चाहिए। आप एक बार झाड़े उठाएंगे, लोग ताली बजाएंगे, लेकिन यदि आपने भ्रष्टाचार और प्रशासनिक व्यवस्था की सफाई की जगह सड़कों की सफाई में ही अपना वक्त गंवाना शुरू कर दिया, तो लोग आपका उपहास उड़ाएंगे, क्योंकि लोगों ने आपको सत्ता सड़कों की सफाई करने के लिए नहीं सौंपी है। (संवाद)