इन सबके साथ साथ कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने एक बयान जारी कर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा है कि कश्मीर के लोग स्वायत्तता की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। यदि उन्हें स्वायत्तता मिल गई, तो वहां की समस्या का हल निकल जाएगा। उनके इस बयान को लेकर सत्तारूढ़ हल्के में जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई है। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इस विवाद में कूद पड़े हैं और चिदंबरम के उस बयान की आलोचना कर रहे हैं।
यदि चिदंबरम के अलावा किसी दूसरे व्यक्ति ने इस तरह की बात की होती तो उसे अनदेखी कर दी जाती, क्योंकि यह सभी जानते हैं कि कश्मीर के आतंकवादी और उग्रवादी तत्व स्वायत्तता की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे उस प्रदेश को भारत से अलग करने की मांग कर रहे हैं। वहां के आतंकवाद और अलगाववाद के पीछे पाकिस्तान का हाथ है और पाकिस्तान भी यह स्वीकार करता है कि वह वहां के आंदोलन का समर्थन करता है। वैसे पाकिस्तान कश्मीर के आंदोलन को आजादी का आंदोलन बताता है और हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप से इनकार करता आ रहा है।
दरअसल वहां की समस्या के पीछे पाकिस्तान ही है। पाकिस्तान कश्मीर को भारत के विभाजन का अधूरा एजेंडा मानता है। वह पूरे जम्मू और कश्मीर को विवादित क्षेत्र मानता है। कश्मीर के जिस हिस्से पर उसने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है, उसके एक हिस्से को भी वह विवादित हिस्सा ही मानता है। वह उस समस्या के हल के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के एक पुराने प्रस्ताव को लागू करने की मांग करता है, जिसके तहत कश्मीर में एक जनमत संग्रह कराया जाना है और वहां के लोगों के सामने भारत और पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प रखा जाना है। प्रस्ताव के अनुसार यदि वहां के लोगों ने भारत का चुनाव कर लिया, तो पूरा जम्मू और कश्मीर भारत का हिस्सा हो जाएगा और यदि उन्होंने पाकिस्तान का चुनाव कर लिया तो पूरा प्रदेश पाकिस्तान का हिस्सा हो जाएगा।
यह प्रस्ताव बहुत पुराना है और कायदे से इसके तहत इस समस्या का समाधान हो जाना चाहिए था, लेकिन अब तक जनमत संग्रह कराया ही नहीं गया है और उस प्रस्ताव के 50 साल पूरे होने को हैं। आखिर जनमत संग्रह क्यों नहीं हो पाया? तो इसके लिए पाकिस्तान की जिम्मेदार है, क्योंकि उस प्रस्ताव के अनुसार पाकिस्तान को जम्मू और कश्मीर के उस हिस्से से अपनी सेना हटानी थी, जिस पर उसने कब्जा कर रखा है। सेना हटाने के बाद ही जनमत संग्रह होना था, लेकिन पाकिस्तान ने वहां से सेना हटाई नहीं, क्योंकि यदि उस समय जनमत संग्रह होता तो वहां के लोग भारत के साथ आ जाते। इस खतरे को भांपते हुए पाकिस्तान ने सेना नहीं हटाई और इस तरह जनमत संग्रह नहीं होने दिया।
समय पर तो वहां कश्मीर ने जनमत संग्रह नहीं होने दिया और समय बीत जाने के बाद वह संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव के तहत जनमत संग्रह की मांग करता है और वहां के अलगाववादी तत्वों को बढ़ावा देता है। आतंकवादियों के कैंप भी पाकिस्तान में चल रहे हैं। पिछले साल भारत ने कुछ कैंपों पर सर्जिकल स्ट्राइक भी किए थे। पाकिस्तान वहां के आतंकवादियों और अलगाववादियों को पैसे भी देता है और प्रशिक्षित पाकिस्तानी आतंकवादियों की घुसपैठ भी करवाता है।
इन सबसे पी चिदंबरम भी परिचित हैं और इसके बावजूद वे कह रहे हैं कि वहां के लोग स्वायत्तता पाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। सच तो यह है कि कश्मीर को पहले से ही काफी स्वायत्तता मिली हुई है। उसका अपना संविधान है। उसका अपना अलग झंडा भी है। भारत की संसद द्वारा बनाए गए अधिकांश कानून उस पर लागू नहीं होते और वहां के संविधान के अनुसार वहां की विधानसभा उस प्रदेश के लिए अलग से कानून बनाती है। भारत के अन्य हिस्से के लोग कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते और वहां के स्थाई निवासी भी नहीं बन सकते। यदि वहां की किसी लड़की से भी शादी कोई गैर कश्मीरी कर ले, तब भी उसे वहां के स्थाई निवासी होने का रुतबा नहीं मिलता।
सच कहा जाय, तो जम्मू और कश्मीर के लोगांे को जितनी स्वायत्तता मिली हुई है, उतनी स्वायत्तता किसी भी अन्य प्रदेश के लोगों को नहीं मिली हुई है। उससे ज्यादा स्वायत्तता देने का मतलब उसे भारत से अलग करना ही हो सकता है। तो फिर क्या पी चिदंबरम जम्मू और कश्मीर के भारत से अलग होने की वकालत कर रहे हैं?
कश्मीर समस्या को चिदंबरम ने बहुत नजदीक से देखा है। जब 1980 के दशक के अंतिम दिनों में वहां की समस्या विस्फोटक रूप लेने लगी थी, तो पी चिदंबरम केन्द्र सरकार में आंतरिक सुरक्षा मंत्री थे। अपनी इस जिम्मेदारी के तहत उन्होंने कश्मीर की विस्फोटक स्थिति को नियंत्रण में लाने की कोशिश भी की होगी। पिछली यूपीए सरकार में चिदंबरम गृहमंत्री भी थे और उस हैसियत से वे कश्मीर की समस्या से भी जूझ रहे थे। सवाल उठता है कि यदि वह समस्या स्वायत्तता देने से ही सुलझ सकती है, तो फिर उन्होंने अपनी सरकार के दौरान इसे क्यों नहीं सुलझा दिया?
जाहिर है, चिदंबरम को पता है कि यह समस्या वहां के लोगों को और स्वायत्तता देने से नहीं सुलझ सकती। पर सवाल उठता है कि वे इस तरह का बयान क्यों दे रहे हैं? क्या वे ऐसा बयान मीडिया में अपने आपको बनाए रखने के लिए दे रहे हैं या वे भारतीय जनता पार्टी को गुजरात और हिमाचल प्रदेश में फायदा पहुंचाने के लिए दे रहे हैं? क्योंकि इस तरह का विवाद भाजपा को चुनावी फायदा पहुंचाता है। (संवाद)
क्या कश्मीर में स्वायत्तता को लेकर विवाद है?
पी चिदंबरम का अजीबोगरीब बयान
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-11-01 10:57
कश्मीर समस्या एक बार फिर अपने अनेक आयामों के साथ राष्ट्रीय बहस का विषय बन गया है। वहां की हिंसक घटनाएं तो पहले की तरह ही जारी हैं और सुरक्षा बलों द्वारा वहां के उपद्रवी तत्वों का दबाने का प्रयास भी जारी है। इस बीच केन्द्र सरकार ने एक वार्ताकार भी तय कर दिया है, जो कश्मीर के लोगों से मिलकर वहां की समस्याओं के बारे में जानेंगे और घावों पर मरहम लगाने का काम करेंगे। इन सबके साथ साथ संविधान की धारा 35(ए) पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का समय भी नजदीक आ गया है।