आज जो कुछ भी नरेन्द्र मोदी के सामने है , गुजरात विकास की झलक समाहित है। अपने ओजस्वी अभिव्यक्ति एवं कर्मठ दिनचर्या की वजह से नरेन्द्र मोदी आज के सर्वप्रिय नेता बने हुए है, जहां देश की जनता को आज भी इनके नेतृृत्व में बहुत कुछ सुधार होने की संभावनाएं नजर आ रही है, जबकि लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक के कार्य काल में नरेन्द्र मोदी के नेतृृत्व में बनी केन्द्र सरकार द्वारा जनहित एवं राष्ट्रहित में घोषित नोटबंदी एवं जीएसटी के परिणाम बेहतर परिणाम नहीं मिल सके। लोकसभा चुनाव से पूर्व विदेश से कालाधन वापिस लाये जाने की नरेन्द्र मोदी की घोषणा तो पूर्व में ही थोथी साबित हो चुकी है। देश के भीतर लोकसभा चुनाव में चुनाव जीत कर आये नरेन्द्र मोदी के साथ खड़े जनप्रतिनिधियों से कालाधन उगाही का स्रो््त तो बंद हो नहीं सका, बाहर से कालाधन की वापसी का मामला कितना जटिल हो सकता है, आम जनता इस बात को अब धीरे- धीरे समझने लगी है। इस तरह की बातों का भ्रमजाल आम जनमानस के पटल से धीरे - धीरे उतरने लगा है, जो गुजरात राज्य के विधान सभा चुनाव पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

केन्द्र सरकार के वर्तमान विŸा मंत्री अरुण जेटली नरेन्द्र मोदी के विशेष सहायोगियों में आते है जो पूर्व में भाजपा नेतृृत्व में बनी केन्द्र सरकार की साईनिंग इंडिया कार्यक्रम में असफल हो चुके है। इसी विŸा मंत्री के नेतृृत्व में जीरो बैलेंस पर खुले बैंक खाते एवं वर्तमान में जारी नई बैंक नीति ,नोटबंदी एवं जीएसटी प्रणाली से आमजन परेशान हो रहा है। बाजार में इनके आकड़ो में महंगाई तो घटी है पर सही मायने में बाजार मुनाफाखोंरो के हाथ चला गया है, जिससे महंगाई हर तरफ बढ़ी है। आज जीएसटी के कारण बाहर खाना एवं दूरभाष पर बातचीत करना पहले से भी महंगा हो गया है। जीएसटी को तो पहले टैक्स से सस्ता होना चाहिए पर यहां तो उल्टी ही कहानी नजर आ रही है। चाहे सरकार कुछ भी दलील दे पर ये दोनों नोटबंदी एवं जीएसटी के कार्यक्रम बाजार एवं रोजगार दोनों को प्रभावित किये है जहां आमजन की परेशानियां बढ़ी है। दैनिक रोजगारी पाने वाले मजदूर से लेकर छोटे उद्योगपति एवं व्यापारी वर्ग सरकार की इस नीति से असंतुष्ठ नजर आने लगा है। इस तरह के परिदृृश्य गुजरात विधानसभा चुनाव को विशेष रुप से प्रभावित करेंगे।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह एवं भाजपा वर्चस्व वाली वर्तमान केन्द्र सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों का गृृह प्रदेश गुजरात होने के कारण गुजरात विधान सभा चुनाव भाजपा के लिये विशेष रूप से चुनौती भी है जहां के परिणाम भाजपा के भावी भविष्य के परिचायक बन सकते है। इसीलिये भाजपा वर्चस्व वाली केन्द्र सरकार गुजरात विधान सभा चुनाव को अपने पक्ष में लाने का हर संभव प्रयास करने में जुटी हुई है।

गुजरात विधान सभा चुनाव को वर्तमान केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों से आमजन एवं व्यापारी वर्ग में उभरे असंतोष एवं साथ - साथ वहां की बेरोजगार युवा शक्ति के जनाक्रोश के हालात प्रभावित कर सकते है। गुजरात विधान सभा चुनाव को असंतुष्ट पटेल समुदाय का प्र्रतिकूल जनमत भी प्रभावित कर सकता है। चुनाव से पूर्व से ही पाटीदार आरक्षण का मुद््दा भी गुजरात राज्य में प्रमुख बना हुआ है जिसे लेकर राजनीति गरमा गई है। इस आंदोलन से जुड़े गुजरात में उभरते नई युवा शक्ति के जननायक हार्दिक पटेल की भूमिका भी विधान सभा चुनाव के परिणाम को प्रभावित कर सकती है। विधान सभा चुनाव तो हिमाचल में भी हो रहे है पर गुजरात राज्य में उभरी उपरोक्त सभी विशेष परिस्थितियों के चलते गुजरात चुनाव पर सभी की नजरें टिकी हुई है। जहां सौदेबाजी युक्त राजनीति तालमेल का गणित भी शुरू हो गया है।

देश की अवाम विकास तो चाहती है पर विकास के साथ - साथ अमन चैन भी चाहती है। आज देश में जिस रफ्तार से शिक्षण संस्थाए्र खुली है उस रफ्तार से रोजगार के संसाधन नहीं बढ़े है। केन्द्र सरकार महानरेगा को आज भी रोजगार का सबसे बड़ा सशक्त माध्यम मान रही है, जहां रोजगार कम एवं भ्रष्टाचार ज्यादा है। इससे देश में बेरोजगारी बढ़ी है। देश की अवाम बाजार में ताक झांक करती है और बाजार आम आदमी से बाहर होता जा रहा है। देश में दिन पर दिन बढ़ती जा रही महंगाई,,पनपते भ्रष्टाचार एवं घटते रोजगार के संसाधन, अशांत एवं असुरक्षित होते जा रहे परिवेश, राजनीति में उभरते दागी नेतृृत्व आदि आम जन मानस पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे है, जिससे जुड़े प्रसंग राजनीति परिवर्तन के कारण बनते जा रहे है। जिसे नकारा नहीे जा सकता। इस तरह के हालात आगामी चुनाव को प्रभावित कर सकते है जिससे गुजरात एवं हिमाचल चुनाव के परिदृृश्य बदल सकते है।

गुजरात में अभी से ही चुनावी समीकरण बदलने वाली आतंकवादी पैमाने से जुड़ी अवैध राजनीतिक गतिविधियां भी शुरू हो गई है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव राष्ट्रहित में कदापि नहीं हो सकता। इस तरह के उभरते परिवेश से सभी को बचना चाहिए एवं देश को भी बचाना चाहिए। (संवाद)