इसलिए भाजपा की जीत तो सुनिश्चित ही थी। सिर्फ यह देखा जाना था कि उसकी जीत क्या उतनी ही भव्य होगी, जितनी लोकसभा और विघानसभा के चुनावों में देखने को मिली थी। इन पंक्तियो को लिखे जाने तक जो नतीजे सामने आए हैं, उससे तो यही पता चलता है कि भाजपा का जनाधार कमजोर हुआ है और जितना समर्थन उसे पिछले दो आमचुनावोें में मिले थे, उतना समर्थन नगर निकायो के इन चुनावों में हासिल नहीं हो सके हैं।
प्रदेश में कुल 16 नगर निगम हैं। उनमें भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा सफलता मिल रही है। यहां भारतीय जनता पार्टी लोकसभा और विधानसभा के चुनावी नतीजों को लगभग दुहराती हुई प्रतीत हो रही है। पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल महानगरों में बहुजन समाज पार्टी उसे कहीं कहीं मुकाबला करती हुई दिखाई जरूर पड़ रही है, लेकिन कुल मिलाकर बाजी भारतीय जनता पार्टी के हाथ में ही है। वैसे इन महानगरों में भारतीय जनता पार्टी हमेशा ही मजबूत रही है। जब विधानसभा के चुनावों मे वह सपा और बसपा के बाद तीसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरा करती थी, तब भी महानगरों के चुनावों में तूती उसी की बोला करती थी। इस बार तो प्रदेश और केन्द्र में उसकी सरकारें भी हैं। इसलिए महानगर में उसकी जीत की चमक थोड़ी और बढ़ गई है।
पर महानगर के नतीजे उत्तर प्रदेश के राजनैतिक रुझान के सही संकेतक नहीं हो सकते। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है उत्तर प्रदेश विधानसभा और लोकसभा चुनाव में करारी हार के बावजूद भी भाजपा महानगरों के चुनावों में अपने विरोधियों पर भारी पड़ जाया करती थी, इससे यह साफ है कि इन महानगरों में रहने वाले लोगों के राजनैतिक मिजाज को देखकर हम प्रदेश के औसत लोगों के राजनैतिक मिजाज का आकलन नहीं कर सकते।
उसके लिए हमें नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों के चुनावी नतीजों को देखना होगा। यह सच है कि यहां भी भारतीय जनता पार्टी अपने राजनैतिक विरोधी पार्टियों पर भारी पड़ रही है। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस अलग अलग भाजपा के सामने टिक नहीं पा रही है, लेकिन यदि इन तीनों के जीते हुए उम्मीदवारों की संख्या जोड़ दी जाय, तो भारतीय जनता पार्टी से वे ज्यादा हो जाते हैं।
इसके अलावा निर्दलीय उम्मीदवार भी भारी संख्या में जीते है। ये निर्दलीय उम्मीदवार कौन हैं? हम बिना किसी खतरे के कह सकते हैं कि ये निर्दलीय उम्मीदवार ज्यादातर वे लोग हैं, जिन्हें किसी पार्टी से टिकट नहीं मिले। वे किसी भी पार्टी से जुड़े हो सकते हैं। उनमें से कुछ वैसे भी हो सकते हैं, जो जानबूझकर किसी पार्टी से टिकट नहीं लेने के इच्छुक थे। यदि इन विजयी निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या भी जोड़ दी जाय, तो नगरपालिकाओं में भारतीय जनता पार्टी की जीत धुुधली होने लगती है और वह चमक नहीं दिखाई पड़ती, जो विधानसभा चुनावों में दिखाई पड़ी थी।
प्रदेश में 16 नगर निगम हैं, उनमें भारतीय जनता पार्टी दो-एक को छोड़कर सभी सीटों पर जीत चुकी है, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रदेश मंे 198 नगरपालिकाएं हैं और उनमें से 80 में भी भाजपा नहीं जीत पाई है। यह दूसरी बात है कि निर्दलीयों की सहायता से वह अधिकांश नगरपालिकाओं पर काबिज हो सकती है, लेकिन उसके पीछे सत्ता का बल होगा न कि जनादेश का बल।
जाहिर है, भारतीय जनता पार्टी को इन चुनावों के नतीजों से ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं। यदि इन नतीजों को उसने 2019 के चुनावी जीत का पूर्व संदेश मान लिया, तो यह उसकी गलती होगी, जिसके कारण उसे आने वाले चुनाव में नुकसान का सामना भी करना पड़ सकता है। गांम पंचायतों के चुनाव लोकसभा चुनाव के बाद ही होंगे, इसलिए गांवों में उसकी क्या स्थिति है, इसका पता उसे अभी लगना मुश्किल है।
फिलहाल ये चुनावी नतीजे भाजपा के लिए फील गुड स्थिति पैदा कर रही है और बसपा भी कुछ खुश हो सकती है, क्योंकि कुछ महानगरों में उसी ने भाजपा को मुख्य टक्कर दी है। वह फिलहाल समाजवादी पार्टी से दूसरे नंबर की प्रतिस्पर्धा में शामिल है। लेकिन जो नतीजे निकले हैं, उससे यही पता चलता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो बसपा समाजवादी पार्टी से आगे है, लेकिन मध्य और उत्तर प्रदेश में अभी भी सपा बसपा पर भारी है।
सपा और बसपा में मुस्लिम मतों को लेकर प्रतिस्पर्धा छिड़ी हुई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा सपा पर इस मायने में भारी है, क्योंकि वहां मायावती समर्थकों दलितों की संख्या समाजवादी समर्थक यादवों की संख्या से ज्यादा है और मुस्लिम बसपा की ओर ज्यादा संख्या में आकर्षित हो रहे हैं। शायद आगे भी यह स्थिति बनी रहे। इसलिए बसपा उन लोगों को गलत साबित कर रही है, जो मान रहे थे कि मायावती का पूर्ण राजनैतिक अवसान हो गया है।
कांग्रेस के लिए यह चुनाव एक बार फिर बुरी खबर लेकर आया है। इसके दोनों बड़े नेता- सोनिया और राहुल- उत्तर प्रदेश से ही चुनाव जीतते रहे हैं। पर यदि कांग्रेस का ही प्रदेश से सफाया हो जाय, तो अगले 2019 के चुनाव में इन दोनों की जीत भी संदिग्ध हो जाएगी।(संवाद)
उत्तर प्रदेश में भाजपा का जलवा बरकरार
लेकिन समर्थन घट रहा है
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-12-02 12:01
उत्तर प्रदेश के नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायतों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर परचम लहराया है। यह नतीजा उम्मीदों के अनुरूप ही है। इसका कारण यह है कि भारतीय जनता पार्टी पारंपरिक रूप से शहरों की ही पार्टी रही है। गांवों में उसका प्रवेश बहुत पुराना नहीं है। इसलिए मूल रूप से शहरों की पार्टी यदि शहरों में जीत जाय, तो किसी को आश्चर्य नहीं हो सकता। वैसे भी पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को भारी जीत मिली थी। लोकसभा की 80 सीटों मे से 73 पर उसके और उसके समर्थित उम्मीदवार ही जीते थे। उसी तरह विधानसभा की 400 सीटों पर उसके और उसके समर्थित उम्मीदवार करीब सवा तीन सौ सीटो पर जीते थे। विधानसभा के चुनाव तो इसी साल आठ महीना पहले हुए थे।