14 अगस्त, 1947 के बाद आज़ाद भारत की पहली मंत्री परिषद का गठन हुआ। इस मंत्री परिषद में जिन लोगों को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने शामिल किया उनमें डाॅ. अंबेडकर शामिल थे। इस संबंध में सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ रामचन्द्र गुहा ने अपनी इतिहास की महान किताब ‘‘इंडिया आफ्टर गांधी’’ में जो विवरण दिया है यहां शब्दशः दिया जा रहा हैः

‘‘नेहरू जी ने अपनी अंतरिम मंत्री परिषद में 13 लोगों को शामिल किया था। इनमें वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के अतिरिक्त चार नवयुवक राष्ट्रवादी कांग्रेसियों को शामिल किया गया था। इन 13 लोगों में कुछ नाम ऐसे भी थे जिनका कांग्रेस से कोई लेना-देना नहीं था। इनमें दो नाम उद्योग और व्यापार क्षेत्र के जानेमाने विषेषज्ञों के थे। सिक्खों का भी एक प्रतिनिधि इन नामों में शामिल था। इसके अतिरिक्त तीन ऐसे नाम थे जो बरसों से कांग्रेस विरोधी थे। ये थे आर.के. शनमुखम चेट्टी जो मद्रास के उद्योग जगत के जानेमाने प्रतिनिधि तो थे ही इसके अतिरिक्त वे आर्थिक मामलों के विषेषज्ञ समझे जाते थे।

इन नामों में अंबेडकर भी शामिल थे जो कानूनी मामलों के बड़े ज्ञाता थे, जो जाति से अछूत थे और बरसों कांग्रेस विरोधी रहे। इस सूची में एक नाम और शामिल था वह नाम था श्यामाप्रसाद मुखर्जी का जो बंगाल के जानेमाने राजनीतिज्ञ थे और हिन्दू महासभा के प्रमुख नेता थे। ये तीनों अंग्रेज साम्राज्य से मिलकर चलते थे। जबकि सैंकड़ों कांग्रेसजन अंग्रेजों की जेल में थे। परंतु आज़ादी आने के बाद नेहरू और उनके सहयोगियों ने अपनी उदारता का प्रदर्शन करते हुए मतभेदों को भुलाकर उन्हें आज़ाद भारत की पहली मंत्री परिषद में शामिल किया।

गांधी जी ने आज़ादी के आंदोलन के नेताओं को याद दिलाया कि ‘आज़ादी भारत को मिली है अकेले कांग्रेस को नहीं’। स्पष्ट है कि गांधी जी की यह सलाह, जिसे नेहरू जी ने माना, कि देश की पहली मंत्री परिषद में ऐेसे लोगों को शामिल किया जाए जिनकी क्षमता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकता, भले ही उनके राजनीतिक विचार कुछ भी हों। प्रथम मंत्री परिषद की एक और विशेषता थी, इसके सदस्यों में सभी धर्मों के प्रतिनिधि शामिल थे और ऐसे भी जिन्हें नास्तिक कहा जा सकता है। हां, इस मंत्री परिषद में एक महिला भी थीं जिनका नाम राजकुमारी अमृत कौर था और अंबेडकर के अलावा एक और अछूत (जगजीवन राम) शामिल थे।’’

क्या नेहरू ने डाॅ. अंबेडकर को आज़ाद भारत की प्रथम मंत्री परिषद में शामिल कर डाॅ. अंबेडकर का अपमान किया?

अब मैं यहां पर रामचन्द्र गुहा के ग्रंथ से एक और उद्धरण देना चाहूंगा, जिससे यह सिद्ध होता है कि अंबेडकर कांग्रेस का कितना सम्मान करते थे। यह उद्धरण इस तरह हैः ‘‘महात्मा गांधी की इच्छा थी कि भारत की प्रथम राष्ट्रपति एक अछूत महिला हो। यह तो संभव नहीं हो सका परंतु एक अछूत को एक ऐसा उत्तरदायित्व सौंपा गया जो भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जा चुका है। डाॅ. अंबेडकर को भारत का संविधान का प्रारूप तैयार करने वाली समिति का अध्यक्ष बनाया गया। दिनांक 25 नवंबर, 1949 को जिस दिन संविधानसभा ने अपना काम पूरा कर लिया था, उस दिन अपने अंतिम भाषणा में डाॅ. अंबेडकर ने प्रारूप बनाने वाली समिति के सदस्यों और समिति से जुड़े स्टाफ को धन्यवाद दिया। परंतु उन्होंने एक ऐसी राजनीतिक पार्टी, जिसके वे जीवनपर्यन्त विरोधी रहे, की भूरिभूरि प्रषंसा की।

समिति ने जो काम किया सदन के भीतर और सदन के बाहर, वह कांग्रेस नेताओं के सहयोग के बिना संभव नहीं था। यह कांग्रेस के सदस्यों के अनुशासन के कारण ही था जो प्रारूप बनाने वाली समिति ने संविधान सभा में पेश किया, इस विश्वास के साथ कि उसे कांग्रेस का पूरा समर्थन मिले। (संवाद)