क्या लौटने की दलाई लामा की इच्छा उनके दिल से निकल कर आई? क्या यह एक बेचैन मन का उद्गार था? कुछ लोगों का मानना है कि उनकी इच्छा के भारत के लिए ‘‘संभावित नतीजे’’होंगे। उनके मुताबिक, यह इसकी ‘‘पुष्टि’’ है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग क्षेत्र के ‘‘सबसे ताकतवर नेता’’ हैं। उनके अनुसार, दलाई लामा का अपने घर और चूल्हा-चक्की के लिए तिल-तिल कर जलने का असर भारत पर पड़ेेगा। ।

उनके अनुसार, दलाई लामा की यह इच्छा ‘‘तिब्बत मुद्दा’’ को सदा के लिए दफना देगी ।

पिछले 23 नवंबर को दलाई लामा ने कहा ,’’ जो बीत गया सो बीत गया’’, तिब्बत चीन के साथ रहना चाहता है। यह गंभीर बात थी। हृदयाघात की तरह गंभीर। उनके इस कथन से ‘‘गंभीर राजनीतिक स्वर’’ पैदा हो सकते हैं। यह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की उन्नीसवीं कांग्रेस तथा डोकलाम विवाद के ठीक बाद आया है, इसलिए यह और भी गंभीर हो जाता है।

दलाई लामा का यह बयान कि ‘‘अगर चीन सहमत हो तो वह वह तुरंत तिब्बत लौट जाएंगे’’ बीजिंग के साथ मेल-मिलाप की ओर इशारा करता है। क्या इसका संबंध अमेरिकी राष्ट्रपति के ‘‘अमेरिका फस्र्ट’’ से है ? ट्ंप ने हाल ही में चीन की यात्रा की। लेकिन उन्होंने नई दिल्ली का चक्कर नहीं लगाया।

टं्प का शी जिनपिंग के साथ बैठक में तिब्बत का मुद्दा अवश्य उठा होगा। चर्चा है कि ट्ंप ने चीन और अमेरिका के बीच तिब्बत को महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं बनाया होगा। ट्रंप ने शी से जरूर यही कहा होगा कि ‘‘तिब्बत हमारी समस्या नहीं है, लेकिन उत्तर कोरिया है’’। ट्रंप ने किम जोंग उन के खिलाफ चीन की कार्रवाई के लिए दलाई लामा को छो़ड़ दिया होगा।

शायद अमेरिका की सोच में परिवर्तन के बारे में अमरीकी अधिकारियों ने दलाई लामा को बता दिया होगा। ये अधिकारी ट्रंप की चीन यात्रा के ठीक पहले उनसे मिले थे। टंªप इस तरह के किरदार हैं जो किसी सौदे को पक्का करने के लिए शैतान से हाथ मिला सकते हैं। उन्होंने ‘सौदे की कला’ नाम की किताब लिखी है।

बराक ओबामा ने व्हाईट हाउस के पिछले दरवाजे पर दलाई लामा का स्वागत किया था। अब ट्ंप ने 2018 में तिब्बतियों के लिए सहायता का कोई प्रस्ताव नहीं रखा है। क्या दलाई लामा ने दीवार पर लिखी इबारत पढ़ ली है ? और वह चाहते हैं कि धर्मशाला के बजाय पोटाला पलेस में दीवार होगी।

हाल हीं में, ट्ंप के चीन दौरे के एक सप्ताह बाद आल हुए ग्लोबल एंगेजमेंट (अखिल विश्व सम्मेलन) में दलाई लामा ने अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए दो दूतों का चुनाव किया था। उन्होंने कहा कि वह थके- मांदे हैं, इसलिए उन्होंने’ अपने दो ‘‘विश्वस्त मित्रों’’को अपने प्रतिनिधत्व के लिए चुना।

तिब्बत एक जटिल मामला है। इसमें कई पक्ष शामिल हैं। दलाई लामा तिब्बत लौटने के लिए 5/50 की परिकल्पना पर काम कर रहे हैं। इसके मुताबिक पांच साल में चीन के साथ बातचीत पर आना है। इसके साथ ही तिब्बती जनता की आकंाक्षा पूरा करने के लिए 50 वर्षों के संधर्ष की तैयारी।

दो दूतों की नियुक्ति चीन की जीत है। बीजिंग दलाई लामा से कहती रही है कि दलाई लामा चीन की आलोचना के लिए विश्व-भ्रमण करना बंद करें। यह भी चर्चा है कि दो दूतों ने अब तक चीन से संपर्क कर लिया है।

हर हालत में, दुनिया के नेता दलाई लामा से हाथ मिलाने के लिए कई तरह के बहाने बनाते हैं। चीन भालू हैं, पंाडा नहीं। यह दलाई लामा की ओर देख कर मुस्कुराने वाले किसी भी राज्य-प्रमुख पर टूट पड़ता है।

दलाई लामा घर लौटना चाहते हैं। क्यों नहीं ? उनकी भी अपनी इच्छा हो सकती है। और, सिर्फ इसके लिए कि वह इतिहास में चीन के सबसे असरदार प्रधानमंत्री कहलाएं, शी चाहेंगे कि दलाई लामा के रिटायर होने के पहले सब कुछ दुरूस्त कर लें। एकबार दलाई लामा पोटाला पैलेस में ‘‘सुरक्षित’’ बिठा दिए जाएं तो शी भारत के साथ बर्ताव पर आएंगे। तिब्बतियों में जरूर कट्टरपंथी होंगे जो चीन के साथ समझौता नही चाहते होंगे, लेकिन दलाई लामा के पोटाला में होने के बाद तिब्बत (चीन) में अगले दलाई लामा का ‘‘उदय’’ होगा और यह सौ साल पुराने सवाल का चीन के पक्ष में आया हुआ उत्तर होगा।

भारत परिदृश्य को खुलते देख सकता है । एकबार तिब्बत मुद्दा सदा के लिए हल हो जाता है तो चीन ‘‘दक्षिण तिब्बत’’ और डोकलाम तथा सीमा विवाद पर आएगा और शायद चीन के साथ भारत को दलाई लामा की तरह व्यवहार करना पडे़गा। (संवाद)