भाजपा का कहना है कि दलित मुसलमानों को अनुसूचित जाति के रूप में आरक्षण देने का मतलब मुसलमानों के धार्मिक विश्वासों को ठेस पहुंचाना होगा और यह उनके धर्म शास्त्रों के खिलाफ भी होगा, क्योंकि कुरान व अन्य मुस्लिम धार्मिक ग्रंथ जाति व्यवस्था को मानते ही नहीं। उसी तरह भाजपा के अनुसार दलित ईसाइयों को अनुसूचित जाति के रूप में आरक्षण देने का मतलब उनके बाइबिल को नकारना होगा, क्योंकि बाइबिल भी कुरान की तरह जाति व्यवस्था को नहीं मानता।
यानी भाजपा दलित मुसलमानों और ईसाइयों के आरक्षण का विरोध करते हुए उनके धर्म ग्रंथों का इस्तेमान कर रही है। वह मुसलमानों और ईसाइयों को जाति के आधार पर आरक्षण देने को ही गलत मानती है। भाजपा के दिमाग में यह बात यों ही नहीं आई। सच तो यह है कि अनेक मुल्ला और मौलवी भी दलित मुसलमानों को अनुसूचित जाति के रूप् में आरक्षण देने का विरोध करते हैं और कहते हैं कि मुसलमानों में जाति व्यवस्था नहीं है और हिंदुओं की तरह छुआछूत भी नहीं है, इसलिए मुसलमानों में कोई दलित ही नहीं है।
इस तर्क से वे भी दलित मुसलमानों के आरक्षण का विरोध करते हैं। हां, मुल्ला मौलवी मुसलमानों को एक समुदाय मानते हुए सारे मुसलमानों के लिए सुलभ कोटे की मांग जरूर करते हैं। यहां भारतीय जनता पार्टी और मुल्ला मौलवियों के बीच का मतैक्य भंग हो जाता है, क्योंकि भाजपा एक अलग समुदाय के रूप में भी मुसलमानों को आरक्षण दिए जाने का विरोध करती है।
भाजपा कह रही है कि यदि दलित मुसलमानों को अनुसूचित जाति के रूप में आरक्षण दिया गया, तो मुसलमानों के अंदर जाति व्यवस्था होना भारत का एक संवैधानिक तथ्य हो जाएगा। ऐसा कहते समय भाजपा इस बात को नजरअंदाज कर रही है कि भारत की सरकार और राज्य की सरकारों ने पहले से ही मुसलमानों और ईसाइयों में जाति व्यवस्था के अस्तित्व को स्वीकार कर रखा है। शायद भाजपा नेताओं को यह पता नहीं है कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग पहले से ही अपनी जाति की पहचान करवाकर उसे सरकारी दस्तावेजों में पंजीकृत करवा चुका है।
सच तो यह है कि मुसलमानों की एक आबादी पहले से ही पिछड़े वर्गों की सूची में शामिल हैं। और पिछड़े वर्गों के रूप में उनकी जातीय पहचान है। वे जाति प्रमाण पत्र पाने के लिए सरकारी दफ्तरों में आवेदन करते हैं और सरकारी दस्तावजों को देखकर व आवेदन पत्र की सचाई से संतुष्ट होकर सरकारी अधिकारी मुसलमानों को भी जाति प्रमाण पत्र जारी कर देते हैं।
पिछड़े वर्गों के रूप में आरक्षण पा रहे मुसलमानों की संख्या मुसलमानों की कुल संख्या की 8. फीसदी से कम नहीं होगी, हालांकि मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में माना था कि हिन्दू पिछड़े वर्गों की तरह ही मुस्लिम पिछड़े वर्गों की संख्या भी 52 फीसदी ही होगी। लेकिन मुसलमानों का दलित समुदाय भी पिछड़ा वर्ग में ही आता है, इस तथ्य को मंडल आयोग ने नकार दिया था। और इस तथ्य को भी नकार दिया था कि विभाजन के समय ज्यादाजर धनी व संपन्न मुसलमानों ने भारत छोडा था और इसके कारण देश में रह गए मुसलमानों में दलित और पिछड़े मंसलमानों की संख्या ज्यादा हो गई थी।
इसी तरह ईसाइयों में भी जाति व्यवस्था को सरकार की मान्यता प्राप्त है। जो दलित हिन्दू छोड़कर ईसाई बन गए हैं, उनकी गिनती पिछड़े वर्गों में होती है। वे अपनी दलित जाति और ईसाई धर्म का उल्लेख करते हुए सरकारी दफ्तर में जाति प्रमाण पत्र पाने के लिए आवेदन करते हैं और उनक ेआवेदन पत्र की सचाई से संतुष्ट होकर सरकारी अधिकारी उन्हें भी प्रमाणपत्र जारी कर देते हैं।
यानी मुसलमानों और ईसाइयों की जाति के बारे में सरकार पहले से ही आश्वस्त है। उसके पास उनकी जातियों की सूची भी है और उस सूची के आधार पर उन्हे जाति प्रमाणपत्र भी जारी किउ जा रहे हैं। उसके बावजूद मुल्लस कहते हैं कि मुसलमानों के बीच में जाति व्यवस्था नहीं है। भाजपा भी उनकी बात को मान रही है। भाजपा के नेता कहते हैं कि मुसलमानों के धार्मिक ग्रंथ जाति व्यवस्था को नहीं मानते। क्या भाजपा के नेता यह बताएंगे कि हिंदुओं का कौन सा धार्मिक ग्रंथ जाति व्यवथा को मानता है? सचाई तो यह है कि हिन्दुओं का कोई भी धार्मिक ग्रंथ जाति व्यवस्था को नहीं मानता। वणर््ा व्यवस्था की चर्चा अवश्य है, लेकिन जाति व्यवस्था की चर्चा किसी भी हिन्दू धर्मग्रंथ में नहीं है, लेकिन वर्ण व्यवस्था को ही जाति व्यवस्था का विस्तार मानकर उसे हिन्दू धर्म का हिस्सा मान लिया जाता है जो गलत है।
सवाल उठता है कि जब मुयलमानों का एक बड़ा वर्ग पहले से ही पिछड़े वर्गों के रूप् में आरक्षण का लाभ उठा रहा हैख तो फिर उनमें से कुछ के अनुसूचित जाति के रूप में आरक्षण लेने से इस्लाम की कौन सी धार्मिक भावना आहत हो जाएगी? जाहिर है आरक्षण के लिए मुसलमानों के धर्मग्रंथ की ओर से कोई समस्या नहीं आने वाली है, बल्कि असली समस्या कहीं और से आएगी। वह समस्या पहले से अनुसूचित जाति का लाभ उठा रहे लोगों की आर से आएगी। उनेी मांग होगी कि दलित मुसलमान और ईसाई को अनुसूचित श्रेणी में डालने से अनुसुचित जाति के लोगों की संख्या जिस अनुपात में बढ़ती है, उसी अनुपात में उनके आरक्षण का प्रतिशत भी बढ़ाया जाए, लेकिन एैसा करना सरकार के लिए संभव नहीं होगा, क्योंकि पहले ही करीब 50 फीसदी सीटें आरक्षित हैं और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद आरक्षण को 50 फीसदी से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। यदि आरक्षण का प्रतिशत सीमित रखते हुए दलित मुसलमानों और ईसाइयों को अनुसूचित जातियों में शामिल कर लिया गया तो पहले से आरक्षण पा रहे लोग इसका विरोध करेंगे।
इस बात को सभी लोग जानते हैं। रंगनाथ मिश्र आयोग को भी इसका पता था। उसके बाद भी यदि आयोग वैसी सिफारिश कर रहा है, जिसे क्रियान्वित ही नहीं किया जा सकता, तो फिर इसमें गलती किसकी है? (संवाद)
भारत
भाजपा और अल्पसंख्यक आरक्षण
मुसलमानों में जातिव्यवस्था पहले से ही मान्य है
उपेन्द्र प्रसाद - 2010-02-22 09:41
भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर रंगनाथ मिश्र आयोग के आधार पर दलित मुसलमानों को अनुसूचित जाति के रूप में आरक्षण देने का विरोध किया है। इंदौर की बैठक में प्रस्ताव पारित कर उनके मुसलमानों को आरक्षण दिए जाने का विरोध किया गया। यह विरोध कोई नया नहीं है। भाजपा पहले भी कई मौकों पर इसका विरोध करती रही है। इसलिए इंदौर में एसके द्वारा किए गए विरोध को उसका रुटीन विरोध ही माना जाना चाहिए। लेकिन विरोध करने के प्रस्ताव में उसने जो कारण बताए हैं, वे हास्यास्पस्द है।