बाबा वीरेन्द्र देव दीक्षित की यह कथा हमारे देश के सामाजिक मनोवैज्ञानिकों के सामने एक चुनौती पेश करता है कि वे यह बताएं कि आधुनिकता के इस युग में समाज के सामने कौन सा संकट खड़ा हो गया है, जो लोग सबकुछ देखते हुए भी इस तरह के बाबाओं के हाथों में अपनी इज्जत गिरवी देते हैं। कोई भी देख सकता है कि बाबा दीक्षित के कथित आश्रम कुछ इस तरह किलाबंद होती है कि न तो कोई अपनी इच्छा से अंदर जा सकता है और न ही बाहर आ सकता है। आश्रम की वह तस्वीर ही एक औसत व्यक्ति को भयावह लगती है और वहां जो जाएगा, वह तो उसे देखकर जरूर सहम जाएगा कि इसमे वह अपने किसी प्रिय को रहने की इजाजत दे। लेकिन लगता है कि हमारे समाज मे आधुनिकता ने कुछ ऐसे संकट खड़े कर दिए है, जिसने हमारी समझ-शक्ति को भी लकवाग्रस्त कर दिया है।

कुछ आश्रमों पर छापे पड़े हैं। लड़कियां और महिलाएं उनसे निकाली गई हैं, लेकिन वे अपने आपे में नहीं हैं। कहा जा रहा है कि उनका वशीकरण किया गया है। कुछ लोग जो वशीकरण विद्या में विश्वास नहीं करते, उनका कहना है कि उन्हें नशीली दवाइयां देकर उनके दिमाग को उनकी पकड़ से आजाद कर चुका है और उन्हें फिर जो घुट्टी पिला दी गई है, उसी की वश में हैं और वे न तो अपने आपको जानते हैं और न ही उन्हें अपने परिवार के बारे में पता है।

लेकिन जो कुछ लोग समय रहते बाबा की जाल से बच निकली हैं। शायद उनका दिमाग ज्यादा मजबूत रहा होगा और दवाइयों से उन पर असर नहीं किया होगा, वे बाबा की यौन हवस की कहानी कह रही हैं। उनसे ही पता चलता है कि उन आश्रमों में क्या चलता है। एक महिला जो खुद 5 सालों तक वहां रह चुकी हैं, अपनी चार बेटियों के लिए परेशान हैं, जो फिलहाल उन्हीं आश्रमों में से किसी एक में रह रही हैं। वे खुद कहती हैं कि उन्हें सुबह शाम कोई दवाई पिलाई जाती थी और वहां से वह निकल आईं, लेकिन वे अपनी चार बेटियों को वहां से निकाल पाने में विफल रहीं।

एक भाई कहता है कि जब वह अपनी बहन को उस आश्रम से छुड़ाने गया, तो उलटा उसकी बहन ने उस पर ही बलात्कार का इलजाम लगा डाला। एक पिता कहता है कि उसकी बेटी ने उसके साथ आने से साफ मना कर दिया और पुलिस को कहा कि वह अपनी मर्जी से उस आश्रम में रह रही है। बाबा ने तो उन महिलाओं से कानूनी शपथपत्र भी लिखवा रखा है, जिनमें वे कहती हैं कि अपनी मर्जी से वह वहां रह रही हैं।

दवाई खिलाकर या इंजेक्शन देकर वश में करने की बात तो बाद में आती है, सवाल उठता है कि उन आश्रमों में लोग अपनी बेटियों को समर्पित क्यों कर देते हैं? एक पिता कहता है कि बाबा ने उससे पहले कहा था कि 18 साल होने पर वह अपनी बेटी उसे समर्पित कर दें। उसने हामी भर दी। फिर बाबा ने 18 साल के पहले ही उससे उसकी बेटी समर्पित करने को कहा। बाबा से जवाब से आश्वस्त होकर उसने अपनी बेटी उसे समर्पित कर दी।

बाबा के आश्रम में जाना और उनसे प्रवचन सुनना तो आम बात है। घर से दूर यदि प्रवचन हो रहा हो, तो वहां ठहरना भी असामान्य नहीं, लेकिन अपनी बालिग या नाबालिग बेटियों को बाबा को सौंप देना कहां की आध्यात्मिकता है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि बेटियों और महिलाओं को ये लोग अपने और अपने परिवार के ऊपर बोझ समझ रहे हों और उनसे छुटकारा पाने के लिए एक शालीन रास्ते के रूप में बाबा को सौंप रहे हों? हालांकि ऐसे मामले भी सुनने को मिल रहे हैं कि महिला के साथ साथ बाबा के पास संपत्ति भी हाथ लग गई। बाबा राम रहीम के मामले में भी यह बात सामने आई थी कि डेरा प्रेमियों ने अपनी संपत्तियां उनके नाम करवा दी थी, लेकिन ज्यादातर मामले में वे संपत्तियों उन लोगों के पास ही थीं, भले ही कागज पर उनका मालिक डेरा या डेरा प्रमुख हो गया हो।

बाबा दीक्षित का मामला अनेक सवाल खड़ा करता है, जिसका जवाब अभी तक नहीं मिल पा रहा है। पहला सवाल तो यही है कि क्या वाकई बाबा का मकसद सिर्फ अपनी हवस को संतुष्ट करना था या इन सबके पीछे वह कोई और भी ज्यादा गंदा व्यापार कर रहा था? रोहिनी स्थित आश्रम के पड़ोसियों की मानें, तो रात को उन लड़कियों को कारों में बैठाकर बाहर ले जाया जाता था। बहरहाल, जो पीड़ित महिलाएं और लड़कियां उनके खिलाफ आवाज उठा रही हैं, उनमें से किसी ने भी किसी तरह के सेक्स रैकेट की बात नहीं की है, लेकिन सच का पता तो बाबा से पूछताछ करने के बाद ही लगेगा।

पर सवाल है कि बाबा कानून की पकड़ में आ भी पाएगा? फिलहाल इसकी संभावना बहुत कम लग रही है, क्योंकि आसाराम बापू और राम रहीम की तरह उसकी गतिविधियां बहुत सार्वजनिक नहीं हुआ करती थीं और उसके पास उन दोनो की तरह बड़ी बड़ी संपत्तियां भी नहीं है, जिन्हें बचाने के लिए वह कानून का सामना करेगा। फिर भी उस तक पहुंचने की पूरी कोशिश की जानी चाहिए और अध्यात्म के नाम पर खेले जा रहे इस खेल की पूरी जानकारी सार्वजनिक की ही जानी चाहिए। (संवाद)