इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मतदाताओं ने जयललिता की सहयोगी शशिकला के भतीजे दिनकरन को अम्मा की सीट पर आरके नगर में उनके उत्तराधिकारी के रूप में चुना। जयललिता अपनी मौत तक इस सीट का प्रतिनिधित्व करती रहीं। भ्रष्टाचार के आरोप में शशिकला का जेल जाना, चुनाव आयोग को घूस देने के प्रयास का दिनकरन पर लगा आरोप, सीबीआई, सुप्रीम कोर्ट के शब्दों में ‘पिंजड़े में बंद तोता’ तथा दूसरे केंद्रीय जंाच एजेंसियां की ओर से उनके और उनके सहयोगियों के यहां पड़े छापों के जरिए दिनकरन की छवि खराब करने की कोशिश का कोई असर दिनकरन के चुनावी भविष्य पर नहीं पड़ा।

दिनकरन की जीत का मतलब यही है कि मुख्यमंत्री ईके पलानीस्वामी या उनके पूर्ववर्ती को लोग अम्मा का वास्तविक उत्तराधिकारी नहीं मानते। जबकि पलानीस्वामी को शशिकला ने मनोनीत किया था और पन्नीर सिल्वम दावा करते थे कि वह जयललिता की आत्मा के संपर्क में हैं।

जया के बाद गद्दी पाने के राजनीतिक खेल में शामिल बिना हैसियत वाले तीन लोग पलानीस्वामी, पन्नीरसिल्वम तथा दिनकरन में दिनकरन तो एकदम बाहरी व्यक्ति थे क्योंकि वह पार्टी में नहीं थे और उन्होंने आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा।

अब वह पलामी स्वामी और पनीर सिल्वम दोनों को बाहर करने और तमिलनाडु में जाने-पहचाने दल बदल का तरीका अपना कर एआईएडीएमके पर कब्जा करने की स्थिति में हैं। पार्टी पर नियंत्रण की इस स्थिति के बाद यह असंभव नहीं रह जाएगा कि पार्टी को नई ताकत मिले और पार्टी की पुरानी दुश्मन डीएमके की यह उम्मीद धरी रह जाए कि जया की पार्टी कमजार हो जाएगी और डीएमके राज्य में निश्चित तौर पर नंबर एक हो जाएगी। आरके नगर सीट पर डीएमके का दिनकरन तथा एआईडीएमके के बाद तीसरे नंबर पर आना यही दर्शाता है कि टूजी मामले में ए राजा और कनिमोई के बरी हो जाने से पार्टी को कोई फायदा नहीं मिला। एम करूणानिधि के खराब स्वास्थ्य तथा एमके स्टालिन के अपने पिता की हैसियत पाने मे विफल होने से डीएमके के लिए ऐसी उम्मीद करना कठिन ही होगा। भाजपा में सुब्रमणियन स्वामी जैसे लोग डीएमके को अलगाववादी तथा हिंदु-विरोधी पार्टी मानते हैं, इसलिए एआईएडीएमके को भाजपा के स्वाभाविक सहयोगी के रूप में देखा जाता है। जयललिता ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को समर्थन भी दिया था। दिनाकरन के नेतृत्व में मआईएडीएमके वही भूमिका अपना सकती है। तमिलनाडु में बिना किसी प्रभाव वाली पार्टी के रूप में भाजपा इससे ही खुश हो सकती है कि उसे एक लोकप्रिय नेता का समर्थन मिलता है। लेकिन गुजरात में भाजपा के कमजोर प्रदर्शन के बाद दिनकरन भाजपा में रूचि लेते हैं या नहीं इस पर सवालिया निशान हैं। भाजपा को भी जेल में बंद शशिकला से घनिष्ट रूप से जुड़े संगठन से संबंध को लेकर अवसरवाद के आरोपों का सामना करना पड़ेगा। राजनीतिक जोड़-घटाव का नतीजा कुछ भी हो, यह निश्चित है कि निकट भविष्य में अनिश्चितता का दौर रहेगा क्योंकि लंबे दौर की राजनीति में दिनकरन की जंाच नहीं हो पाई है जबकि वह सांसद और एमएलए रह चुके हैं। वह चीजों को किस तरह बनाते हैं यह कहना मुश्किल है, खासकर तब जब शशिकला जेल के अंदर से भी उन पर गहरी नजर रखेंगी।

लेकिन एक बात पक्की हो गई है कि तमिलनाडु में कोई महत्वपूर्ण व्यक्तित्व सक्रिय राजनीति में नहीं रह गया है। नब्बे पार कर गए करूणानिधि लगभग रिटायर हो गए हैं और अपने पीछे किसी को छोड़कर नहीं पाए हैं जिसकी ओर मार्गदर्शन तथा प्रेरणा के लिए देखा जा सके। लंबे समय तक के कामराज, सीएम अन्नादुराई, करूणानिधि, एमजीआर तथा जयललिता जैसे दबंग नेताओं के नेतृत्व में रहने के बाद अचानक राज्य अनाथ हो गया हैं।

दिनकरन के उभरने से दो उम्रदराज हो रहे फिल्म अभिनेताओं, रजनीकांत तथा कमलहासन के राजनीतिक मैदान को आजमाने के प्रयासों पर रोक लगेगी। वे जयललिता के निधन के कारण बने शून्य को भरने की उम्मीद कर रहे थे, खासकर रजनीकंात जो भाजपा में दिलचस्पी ले रहे थें। भाजपा रजनीकांत से ज्यादा दिलचस्पी दिनकरन में लेगी। रजनीकंात को सही समय का इंतजार करना पड़ेगा। कमल हासन डीएमके या कांग्रेस, जो भाजपा तथा एआईएडीएमके के मुकाबले उनके दिल के ज्यादा करीब है, की राजनीतिक उपयोगिता पर सवाल करेंगे। (संवाद)