वैसे भी केरल देश का ऐसा राज्य है जिसे देवताओं का अपना देश कहा जाता है। उस पर अलेप्पी या अलप्पुजा का क्या कहना। यह केरल का पहला योजनाबद्ध तरीके से निर्मिंत शहर है। वो ऐसे कि अरब सागर से सटे इस शहर में मीठे पानी की बड़ी जरूरत रही होगी बसावट के पीने और जीने के लिये और खेती के लिये ताकि आबादी का पेट भरा जा सके। इसलिये जो पानी कभी सागर से बैकवाटर के रूप में केरल की धरती पर आ गया होगा उससे ही ये झील बनी होगी। उसी झील में छोटे छोटे द्वीप तत्कालीन राजा की मदद से बनाये गये और उन द्वीपों पर धान की खेती की गयी।

कोचीन से कोल्लम के बीच बनी इस विशाल प्राकृतिक झील को केरल के लोगों ने दुनिया को सुकून और खुद को रोजगार देने का एक जरिया बना डाला है। वो ऐसे कि यहां साल में केरल के सबसे बडे़ धार्मिक त्योहार ओणम के अवसर पर विश्व प्रसिद्ध नौका का दौड़ का आयोजन होता है। अगस्त महीने के दूसरे सोमवार को आयोजित होने वाली इस नौका रेस में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 60 बरस पहले इसमें प्रथम आने वाले दल को ट्राफी देने का सिलसिला शुरू किया। तभी से यह प्रतियोगिता दुनिया भर के सैलानियों और अलेप्पीवासियों के लिये आकर्षण का केन्द्र बन गयी है।

साथ ही साल भर हाउस बोट पर शानदार तैरते हुए घर का आनंद यहां हाजिर है। कैप्टन, इंजीनियर और शेफ के क्रू के साथ आप 25 से 30 किलोमीटर तक के इलाके में फैले मानवनिर्मित धान के कटोरे की हरियाली और उनके बीच बनीं नहरों के किनारे खुशगवार मौसम में पाम के पेड़ों की खुबसूरती का लाभ उठा सकते हैं। हाउस बोट पर रहिये खाइये और कुदरती सुंदरता का आनंद लीजिये। हाउस बोट देवानंद के कैप्टन सनीश बताते हैं कि वैसे तो साल भर ही अलेप्पी में सैलानियों का तांता लगा रहता है। पर दिसम्बर, जनवरी के महीनों में यहां सब कुछ फुल हो जाता है। सुबह 8 बजे से शाम साढ़े 5 बजे के बीच हाउस बोट पर झील की सैर करायी जाती है। उसके बाद कहीं लंगर डाल कर रात भर के लिये विश्राम का समय होता है। बोट में ही बने रसोईघर में पारम्परिक दक्षिण भारतीय व्यंजन सैलानियों को परोसे जाते हैं। उसके बाद वहां स्थानीय मछुआरों का समय शुरू होता है। वन रूम, टू रूम, एक मंजिला और दो दो मंजिला ऐसी करीब डेढ़ हजार हाउस बोट वहां चल रहीं हैं। झील में सैर के दौरान छोटी छोटी नावों पर छुटपुट साजोसामान बेचने वाले फुटकर व्यापारी आपको हाउस बोट पर बैठे बैठे ही सब कुछ उपलब्ध करा देंगे।

26 दिसम्बर की रात ही पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को साबरीमाला के भगवान अयप्पा की इकतालीस दिनों की आराधना के समारोह का समापन भी था। इस नाते नहर के किनारे बने मंदिरों में शाम की पूजा के बाद लाइन से दीप दान का आयोजन किया जाता है। हाउस बोट से ये दीपों की माला बरबस ही बनारस में दीपावली के बाद गंगा के तट पर होने वाली देव दीपावली की याद दिला देगी।

आध्यात्मिकता की विविध तरंगों की भी यहां भरपूर उपलब्धता है। सनातनियों के लिये श्रीकृष्ण, भगवती, राजेश्वरी और नागराज मंदिर हैं तो ईसाई धर्म के मानने वालों के लिये सेट एडाथुआ, सेंट एंड्रयू, सेट सेबेस्टियन और चम्पाकुलम जैसे भव्य और सुंदर चर्च है। तो बौद्धों की भावना को तृप्त करने वाली करुमडी कुट्टन की मूर्ति भी अलेप्पी शहर को समृद्ध बनाती है। बैकवाटर से बनी वेम्बनाड झील चूंकि यहां की लाइफलाइन है शायद इसीलिये इसे पूरब का वेनिस कहा जाता है। परंतु सही मायने में इसे वेनिस बनाने के लिये अभी स्वच्छता और रखरखाव पर और ध्यान देने की आवश्यकता है। (संवाद)