साथ ही, वे उन मुल्लाओं को नाराज नहीं करना चाहते हैं, जिनके बारे में, गलत या सही, उन्हें लगता है कि वे मुसलिम मत यानि वोट पर नियंत्रण रखते हैं। शायद अपने स्वभाव के अनुसार, भाजपा मुल्लाओं को नाराज करने में परपीड़ा का आनंद ले रही हो और कंाग्रेस तथा अन्य पार्टियों को चिढ़ा रही हो, लेकिन तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाने के कानून बनाने में सारी मुसलिम औरतें उसके साथ हैं।
प्रमुख राज्य कर्नाटक के साथ त्रिपुरा, नागालैंड तथा मेघालय के चुनावों के नजदीक होने को ध्यान में रखकर कांगेस ने यह समझ लिया है कि यह मुद्दा बन सकता है और इसे सावधानी के साथ संभालना चाहिए। इस चिंता ने पहले ही संसद में मुसलिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2017 पर उसके रवैए को उलटा-पुलटा कर दिया है। जब बिल को लोकसभा में पारित किया गया तो पार्टी ने कुछ स्पष्टीकरणों तथा सवालों के जरिए विरोध को छोड़कर ज्यादातर सरकार के साथ सहयोग किया। लेकिन राज्यसभा जहां संख्या सरकार के प्रतिकूल है, उसने और उसकी सहयोगी पार्टियों ने एक टेढा रास्ता अपनाया है और वे विधेयक को स्थाई समिति को भेजने की मांग कर रही है। एक तो सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय की गई सीमावधि फरवरी में खत्म होती है, यह सवाल भी उठता है कि इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर पार्टी का रवैया सिद्दंात के आधार पर तय होगा, या संख्या बल पर होगा। लगता है राजनीतिक सहूलियत ने कांग्रेस को गलत कदम उठाने पर मजबूर कर दिया है।
विधेयक के प्रावधानों को लेकर की जा रही आपत्तियां पूरी तरह बेबुनियाद और अविश्वसनीय हैं। सबसे विवादास्पद मुद्दा तीन तलाक को आपराधिक बनाने का है जिसे संज्ञान-योग्य और गैर-जमानती बना दिया गया है। प्रस्तावित कानून में लगातार तीन बार तलाक बोल कर अपनी पत्नी को तलाक देने वाले मुसलिम मर्दो के लिए तीन साल की जेल तथा आर्थिक दंड का प्रावधान है। इसमें मैजिस्ट्रेट के आदेश के आधार पर मुसलिम औरतों को गुजारा भत्ता तथा नाबालिग बच्चा सौंपने का भी प्रावधान है। इस तरह की गंभीर सजा के खिलाफ यह दलील दी जा रही है कि मुसलिम मर्द तथा औरत के लिए शादी एक सामाजिक अनुबंध है और इसलिए इसकी वजह से उठने वाले हर विवाद को सिविल विवाद माना जाना चाहिए। अगर शादी एक सामाजिक अनुबंध है तो सिर्फ मुसलमानों तक क्यों सीमित रखा जाए ? अगर दूसरे समुदाय का मर्द शादी से बाहर संबंध बनाता है तो इसे व्यभिचार मान कर उसे जेल भेजा जा सकता है। शादी से बाहर के संबंधों के लिए औरत पर फौजदारी मुकदमा चलाने के बारे में भी सुप्रीम कोर्ट शीघ्र ही फैसला देने वाला है। कोई यह नहीं कह सकता दंपति के बीच का मामला निजी है या इसे धर्म से मान्यता मिली हुई है।
यह दलील उतना ही गलत है कि ‘तलाकी’ पति के जेल लाने पर पत्नी तथा बच्चों की देखभाल कौन करेगा। तलाक को मुसलिम पर्सनल बोर्ड इसे उचित ठहराने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है कि औरतों की सुरक्षा तथा आर्थिक भलाई को ध्यान में रखने के लिये तलाक औरतों के हित में है। उसका कहना है कि जेल जाने के कारण आमदनी कम हो जाने पर पति अपनी पत्नी और बच्चों की मदद कैसे कर सकता है। दंड के प्रावधानों का विरोध कर रही कंाग्रेस तथा अन्य पार्टियों को लग रहा है कि बोर्ड ने एक अकाट्य तर्क प्रस्तुत कर दिया है। लेकिन वास्तविकता यही है कि इससे हास्यापद दलील हो नहीं सकती। भारत के जेलों में लाखों लोग जमानत लेने में सक्षम नहीं होने के कारण मामूली अपराधों के लिए जेल में विचाराधीन और सजायाफ्ता कैदी के रूप में सड़ रहे हैं।  हमने राजनीतिज्ञों या बड़े पद पर बैठे लोगों के बारे में सुना है कि वे किस तरह आसानी से रिहा हो जाते हैं। लेकिन हमने कभी नहीं सुना कि परिवार के लिए साधारण लोगों को जेल की सजा से बरी कर दिया गया हो। क्या अदालतें तथा कानून बनाने वालों ने कभी यह सेाचा है कि इन लोगों के परिवारों का क्या होगा। तलाक का हर  मामला औरतों के साथ दुव्र्यवहार, खोए बचपन तथा पीड़ित बच्चों के व्यवहारगत समस्याओं की एक दुखद कहानी बना रहेगा। इसकी किसी को परवाह है? फिर यह पक्षपाती सहानूभूति क्यों ?
एक अत्यंत पीछे ले जाने वाले कदम के रूप में, राजीव गंाधी सरकार ने शाहबानो मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बेअसर करने के लिए ऐसा कदम उठाया जिसने उन लाखों औरतों पर अन्याय तथा दुख का पहाड़ गिरा दिया जिनके धर्मभीरू पतियों ने तलाक दे दिया और गुजारा भत्ता देने से इंकार कर दिया। उनके बेटे के नेतृत्व में कंाग्रेस अब एक अपरिहार्य सुधार में देरी के जरिए उनके जख्मों पर नमक छिड़ रही है जबकि यह न ही उनकी पार्टी को वोट दिलाएगा और न इसकी साख बढ़ाएगा। (संवाद)
        
            
    
    
    
    
            
    तलाकः गलत दलीलों पर आधारित विरोध
तलाक पर कांग्रेस का रवैया उलटा पुलटा
        
        
              के रवींद्रन                 -                          2018-01-09 10:15
                                                
            
                                            जहां तक मुसलिम समाज को उसकी पुरानी पड़ गई परंपराओं से छुटकारा दिलाने का सवाल है, कंाग्रेस तथा अन्य पार्टियों का तरीका दो कदम पीछे,एक कदम आगे वाला रहा है। अभी तीन तलाक पर विवाद के मामले में भी यही हो रहा है। ज्यादातर इसे गलत मानते हैं और इसे खत्म करना चाहते हैं। उन्हें इसमें कोई शक नहीं है कि इस परंपरा का खत्मा लाखों मुसलिम औरतों को लाभ पहंुचाएगा जिनके मर्दाें ने उनके साथ दुव्र्यवहार किया है और उन्हें अचानक छोड़ दिया है। इसलिए वे इस समस्या से निपटने के लिए बन रहे कानून का विरोध करते दिखना नहीं चाहते।