1945 में हिरोशिमा और नागासाकी में हुई तबाही जिसमें दो लाख से ज्यादा लोग मर गए और उसके बाद पीढ़ियों को प्रभावित करने वाले हुए जेनेटिक परिवर्तन की बात आती है तो उनकी यह इच्छा और भी बलवती हो जाती है। दुर्भाग्य से, परमाणु निरस्त्राीकरण की ओर बढ़ने के बदले दुनिया परमाणु हथियारों की होड़ की ओर आगे बढ़ गई। वह इस पर अरबों का खर्च करने लगी जिन पैसों का उपयोग बदहाली और बीमारी में रहने वाले लोगों को ईलाज पर किया जा सकता था। यही कारण है कि 10 दिसंबर, 2017 को नार्वें की राजधानी में उत्साहवर्धक कार्यक्रमों का दौर था। इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार परमाणु हथियार विरोधी अभियान, कंैपेन टू एबालिश न्यूक्लियर विपंस (आईसीएएन) को दिया गया। दुनिया भर से चिकित्सा पेशे से जुड़े लोग वहां जमा हुए थे जिन्होंने परमाणु हथियारों की होड़ पर होने वाले बेकार खर्च को स्वस्थ भविष्य के लिए खर्च करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया।
इंटरनेशनल फिजियंस फार द प्रिवेंशन आफ न्यूक्लियर वार (आईपीपीएनडब्लू), परमाणु युद्ध के खिलाफ डाक्टरों के संगठन, की पहल पर किया गया था। इसके 468 घटक हैं। आईसीएएन की औपचारिक शुरूआत अप्रैल, 2007 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में परमाणु अप्रसार संधि की तैयारी बैठक के दौरान हुई थी। इसके बाद सरकारों से बातचीत तथा जनमत निर्माण के लगातार कार्य के कारण 7 जुलाई, 2017 को संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने 122 वोटों से परमाणु हथियारों को अवैध करने का प्रस्ताव पास कर दिया। इस प्रस्ताव के खिलाफ सिर्फ एक वोट पड़ा। यह एक बड़ी उपलब्धि थी और इसने दुनिया का ध्यान खींचा तथा नोबेल शांति पुरस्कार समिति का ध्यान इस ओर गया। उसने आईसीएएन को इस साल का शांति पुरस्कार देने का फैसला किया आईसीएएन का मुख्य जोर परमाणु हथियारों के कारण मानवीय विध्वंस और उन पर प्रतिबंध तथा आखिकार, उनके खात्मे पर है।
जब दुनिया में लाखों लोग भुखमरी के शिकार हैं, परमाणु हथियार से संपन्न देश रोज करीब दो हजार करोड़ रूपया परमाणु हथियारों पर खर्च करते हैं। परमाणु बल के रख-रखाव और आधुनिकीकरण के कारण स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा, जलवायु परिवर्तन से निपटने, आपदा राहत, विकास सहायता तथा अन्य महत्वपूर्ण सेवाओं पर खर्च होने के बदले पैसा उधर चला जाता है। दुनिया भर में परमाणु हथयारों पर प्रति घंटे एक करोड़ 20 लाख डालर का खर्च होता है। सन् 2002 में विश्व बैंक ने अनुमान लगाया था कि करीब 40 से 60 अरब डालर (परमाणु हथियारों पर खर्च होने वाले खर्च का करीब आधा) के सालाना खर्च से दुनिया में गरीबी हटाने के लक्ष्य को पाया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र के निरस्त्रीकरण कार्यालय का सालाना खर्च दस लाख डालर है जो परमाणु हथियारों पर होने वाले प्रति घंटे खर्च से कम है।
‘‘दुनिया में हथियारों की काफी संख्या हो गई है। शीतयुद्ध के खत्म होने से दुनिया को उम्मीद बंधी थी कि इसका फल शांति के रूप में आएगा। लेकिन दुनिया भर में 20 हजार से ज्यादा परमाणु हथियार हैं। इनमें से कई बटन दबाने भर से चल पडेंगे और हमारे अस्तित्व पर खतरा पैदा कर रहे हैं,’’ संयुक्त राष्ट्र महा सचिव बान कि-मून ने कहा।
दुनिया में प्रतिरक्षा पर होने वाला सालाना खर्च 1699 अरब डालर ( दुनिया के जीडीपी सकल घरेलू उत्पाद) का 2.2 प्रतिशत है। दुनिया में प्रतिरक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाला देश अमेरिका है जो 611 अरब डालर खर्च करता है। चीन 215 अरब डालर खर्च करता है। हथियार खरीदने वाले देशों में भारत नंबर एक है।
दुनिया में प्रतिरक्षा पर खर्च करने में भारत पांचवे नंबर पर है और 55.9 अरब डालर यानि 3 लाख 63 हजार 350 रूपया खर्च करता है। ये स्टाकहोम अन्तरराष्ट्रीय शांति शोध संस्थान के अप्रैल 2017 की रिपोर्ट के आंकड़े हैं। भारत का प्रतिरक्षा खर्च इसके जीडीपी का 1.62 प्रतिशत है। भारत का स्वास्थ्य बजट जीडीपी का सिर्फ 0.36 प्रतिशत है जो प्रतिरक्षा बजट से 6 गुना कम है।
ये आंकड़े ऐसे समय में मानवता पर मंडरा रहे खतरों की ओर संकेत करते हैं जब दुनिया के कई हिस्से संघर्ष-क्षेत्र बने हुए हैं और उनका सीधा संबंध परमाणु हथियार वाले देशों से है। परमाणु हथियारों का कोई जाना-अनजाना या दुर्घटना-वश उपयोग कुल मिला कर जीवन के लिए गंभीर परिणाम उत्पन्न करेगा। इन हथियारों का उपयोग नहीं होने पर भी इनके उत्पादन और रख-रखाव पर होने वाले खर्च से लाखों लोग स्वास्थ्य, शिक्षा तथा अन्य बुनियादी सुविधाओं से वंचित हो जाते हैं। भारत या पाकिस्तान जैसे देशों में स्थिति तो और भी गंभीर हो जाती हैं जो पहले से ही मानवीय विकास तथा भुखमरी सूचकों में नीचे है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि परमाणु हथियार रखने वाले देश इस संधि में शामिल नहीं हुए हैं। समय आ गया है जब निश्चित आपसी विनाश के खिलाफ स्वास्थ्य के लिए काम करने के पक्ष के लिए इन देशों में जनमत तैयार किया जाए। (संवाद)
परमाणु हथियार बनाम स्वास्थ्य
दुनिया में हथियार पर असीम खर्च
डा. अरूण मित्रा - 2018-01-09 10:17
दुनिया के विभिन्न हिस्सों में तनाव की बढ़ती घटनाओं के बीच 2017 का अंत एक सकारात्मक बिंदु पर हुई। संयुक्त राष्ट्र आम सभा में 7 जुलाई, 2017 को पारित परमाणु हथियार प्रतिबंधक संधि को इतिहास ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना के रूप में दर्ज किया जाएगा। इसने परमाणु हथियार और उससे होने वाले विध्वंस से रहित विश्व की उम्मीद जगा दी है। अच्छा स्वास्थ्य हर व्यक्ति की बुनियादी जरूरत है। इसलिए हर व्यक्ति एक हिंसा से रहित जीवन चाहता है।