जेडी (यू) का यह कदम, निस्संदेह, एलएडीएफ को विशेष रूप से मालाबार क्षेत्र में मजबूत करेगा, क्योंकि वायनाड, कोझिकोड और पलक्कड़ जैसे जिलों में पार्टी का बड़ा प्रभाव है।
जेडी (यू) का प्रवेश एलडीएफ की अपील और स्वीकार्यता को भी बढ़ाएगा। पाला बदलने की यह घटना यूडीएफ से अधिक पार्टियों को एलडीएफ में शामिल होने को प्रोत्साहित करत सकती है। यह एक खुला रहस्य है कि यूडीएफ के रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) जैसे घटक यूडीएफ के कप्तान, कांग्रेस के कामकाज की शैली से नाखुश हैं।
जनता दल(यू) का यह निर्णय इस पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए कि सीपीआई (एम) और अन्य एलडीएफ नेताओं की अपील जनता में बढ़ी है इसके कारण यूडीएफ के अन्य घटक उसमें शामिल होने के लिए पाला बदली कर सकते हैं।
इसके विपरीत, एलडीएफ का लाभ यूडीएफ की हानि है। हालांकि, यूडीएफ के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से दावा किया है कि जेडी (यू) से बाहर निकलने पर यूडीएफ की स्थिरता और एकजुटता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, निजी तौर पर वे मानते हैं कि यह आगे नहीं बढ़ेगा। लेकिन पहले से ही केरल कांग्रेस (मणि) के यूडीएफ छोड़ने से वे परेशान हैं।
यूडीएफ के नेता को अपनी इस राजनीतिक शर्मिंदगी के लिए खुद ही दोषी हैं। यूडीएफ नेतृत्व की जद (यू) की चिंताओं को हल करने के में विफल रहे। जाहिर है, परिस्थितियों ने जद(यू) को मोर्चा छोड़ने के लिए मजबूर किया है।
उदाहरण के लिए, यह एक खुला रहस्य है कि जेडी (यू) पिछले विधानसभा चुनावों से पहले सीटों के बंटवारे से नाखुश था। पार्टी को ऐसा लगता है, कि उसे हारने वाली सीट आबंटित की गई थी। उसे कम से कम कुछ सीट तो ऐसी मिलनी चाहिए थी, जहां पार्टी की जीत की संभावना उज्ज्वल रहती।
फिर, जेडी (यू) को यूडीएफ नेतृत्व ने उस समय भी साथ नहीं दिया था, जब उसने उसके उम्मीदवारों के खिलाफ काम करने वाले कांग्रेस नेताओं का नाम बताया था। कांग्रेस के उन नेताओं ने तो जद (यू) के प्रदेश प्रमुख एमपी वीरेन्द्र कुमार के खिलाफ खुलेआम प्रचार किया था, जब वे पलक्कड़ लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे। कांग्रेस द्वारा नामित एक समिति द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट ने पार्टी नेताओं के नामों का उल्लेख किया था, जिन्होंने वीरेन्द्र कुमार के चुनाव प्रचार को कमजोर किया था। लेकिन, बार-बार याद दिलाने के बावजूद, कांग्रेस नेतृत्व ने दोषी को दंडित करने से मना कर दिया। यह जेडी (यू) के जले पर नमक डालने जैसा था। उसके कारण जद(यू) का कांग्रेस से मोह भंग होता चला गयज्ञं
एक और कारण है जिससे जेडी (यू) ने पाला बदलने पर फैसला किया है। वह है राज्य में राजनीतिक स्थिति में हो रहा बदलाव। इस बदलाव को एमपी वीरेन्द्र कुमार सही तरीके से देख रहे हैं। साल भर में प्रदेश ने स्पष्ट रूप से बाम झुकाव लिया है। जद (यू) का दृढ़ विश्वास है कि एलडीएफ देश भर में अपनी ताकत बढ़ा रही सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने के लिए बेहतर रूप से तैयार है। जद (यू) यह भी सोचता है कि एक समाजवादी सोच वाली पार्टी होने के कारण, आरएसएस- बीजेपी गठबंधन के खिलाफ अखिल भारतीय गठबंधन बनाने के लिए वामपंथी ताकतों के साथ मिलाना चाहिए।
यद्यपि एलडीएफ नेतृत्व और जेडी (यू) दोनों ने किसी भी सौदे से इंकार किया है, लेकिन यह स्पष्ट है कि नीतीश कुमार द्वारा भारतीय जनता पार्टी का हाथ थामने के खिलाफ एमपी वीरेन्द्र कुमार के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर एक बार फिर श्री वीरेन्द्र कुमार को ही राज्य सभा में भेजा जाएगा। (संवाद)
केरल की बदलती राजनैतिक तस्वीर
यूडीएफ का नुकसान एलडीएफ का लाभ है
पी श्रीकुमारन - 2018-01-15 11:56
तिरुवनंतपुरमः कांग्रेस नेतृत्व वाला संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) से अलग होने का जनता दल (यूनाईटेड) ने फैसला कर लिया है। अब उसके सीपीआई (एम) नेतृत्व वाले वाम लोकतांतत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) में शामिल होने से केरल की राजनीतिक तस्वीर बहुत तेजी से बदलेगी। एलडीएफ खेमे में इसको लेकर खुशी का माहौल है। जद (यू) के लिए, यह आठ साल के अंतराल के बाद घर वापसी का मामला है।