इसने अपनी छवि और भी खराब कर ली है जब इसने इसकी सुरक्षा खामियों को उजागर करने वानी ट्रिब्यून की पत्रकार रचना खैरा के खिलाफ एफआई आर दर्ज करा दी। खैरा ने पेटीएम की जरिए पांच सौ रूपए जमा किए और दस मिनट के अंदर गोरखधंधा चलाने वाले समूह के ऐजेंट ने उसे लागिन और पासवर्ड दे दिया जिसके जरिए वह किसी भी आधार नंबर को डालकर उस नंबर वाले व्यक्ति से संबधित सारी जानकारी नाम, पता, पोस्टल कोड फोटो, फोन नंबर तथा इमेल प्राप्त कर सकती थी।
लेकिन अपने शुतुरमुर्गी व्यवहार के बावजूद, आथारिटी ने बेशर्मी से यह घोषणा कर डाली कि वह निजता को लेकर की जा रही चिंताओं को दूर करने के लिए सुरक्षा कवच पर एक और तह चढाएगी। मार्च के अंत में शुरू हो रही नई प्रणाली के तहत लोग एक 16 अंकों वाला अस्थाई नंबर आधार नंबर की जगह इस्तेमाल करके विभिन्न सेवाओं के लिए अपनी पहचान प्रमाणित कर सकते हैं। यूनिक आइडेंटिफिकेशन आथोरिटी आफ इंडिया (यूआईडीए आई) ने कहा कि यह पहल आधार नंबर की लीक तथा इसके दुरूप्योग को कम करने के लिए की गई है। यह उन 19 करोड़ लोगों की निजता को बढाएगा जिन्हें आधार-नंबर दिया जा चुका है। हालांकि, यह दावा किया गया है कि आथोरिटी इस आभासी पहचान पर महीनों से काम कर रही थी। लेकिन इसकी घोषणा रिपोर्टर की ओर से हुए खुलासे के ठीक बाद की गई तो तो वाजिब ही लोग इसे उसके साथ जोड़ते हैं। अघिकारियों ने जिस जल्दी से नए कदम की घोषणा की वह ट्रिब्यून के खुलासे की साफ तौर पृष्टि करता है। जबकि आधार आथारिटी का इस खुलासे का जवाब एकदम निंदनीय था। बिना सोचे समझे दी गई इस प्रतिक्रिया की पूरी दुनिया में निंदा हुई। इसने इंजीनियरों की सबसे बड़ी फौज के रूप में भारत की छवि को नुकसान पहंुचाया। प्रेस क्लब आफ इंडिया, एडिटर्स, इंडियन वीमेंस प्रेस कोर, प्रेस एसोसिएशन तथा मंुबई प्रेस क्लब ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर यूआईडी एआर्ठ के इस सीधे हमले की निंदा की और मुकदमा तुरत वापस लेने की मांग की।
निजी स्वतंत्रता के लिए गोपनीय सूचना बाहर लाने वाले अमेरिकी मुखबिर एडवर्ड स्नोडेन ने कहा कि भारतीय पत्रकार को एफआई आर नहीं पुरस्कार मिलना चाहिए। पूर्व सीआईए कर्मचारी जिसने फोन तथा इंटरनेट पर होने वाली बातचीत की निगरानी पर से पर्दा उठाया, ने कहा कि भारत सरकार को अपने नागरिकों की निजता की सुरक्षा की नीति में परिवर्तन करना चाहिए।
‘‘आधार की गोपनीयता के उल्लंघन का खुलासा करने वाले पत्रकार पुरस्कार के लायक हैं। अगर सरकार सच में न्याय के लिए चिंतित है वह नीतियों में उन नीतियों में परिवर्तन करेगी जिसने करोड़ों भारतीयों की निजता नष्ट कर दी है। क्या वह उन्हें गिरफ्तार करना चाहती है जो इसके जिम्मेदार है?’’स्नोडेन ने ट्वीट किया।
ट्रिब्यून के रिपोर्टर ने जो किया वह एथिकल हैकिंग के समान है जिसके लिए कंपनियां करोड़ों डालर खर्च करती है ताकि इसके जरिए यह पता लगाया जा सके कि उनकी प्रणाली को कहीं से भेदा तो नहीं जा सकता है। एथिकल हैकर्स प्रणाली को भेदते हैं और यह बताते हैं कि किस तरह सिस्टम को भेदने से राका जा सकता है। इसके लिए क्या उपाय किए जाएं। व्यापार में आज इसका बड़ा महत्व है और सिस्टम को भेदने वाले पेशेवरों का आईटी क्षेत्र में लगातार महत्व बढ़ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में एथिकल हैकिंग की नौकरी शीर्ष नौकरी मानी गई। ऐसे में आधार आथारिटी का इस काम को एक भूल ही माना जाएगा।
वास्तव में, यह समस्याओं से निपटने का भारतीय तरीका है। अस्सी के दशक में, जब एक प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक के रिपोर्टर ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान की सीमाओं के मिलानेे वाले स्थान धौलपुर से कमला नाम की एक लड़की को देह की मंडी से खरीद कर लाया और खबर कोेेे अपने अखबार में छापा तो उस पर लड़की की तस्करी के आरोप में मुकदमा ठोंक दिया गया।
स्न 2013 में, परमाणु मुद्दे पर अमेरिका के समर्थन से उत्पन्न संकट के सवाल पर मनमोहन सिंह सरकार को विश्वास मत हासिल करना था। तीन विपक्षी सांसद नोटों का वह बंडल लेकर सदन में आए जो कथित तौर पर उन्हें अनुपस्थित रहने के लिए दिया गया था ताकि सरकार आसानी से विश्वास मत जीत सके। सरकार विश्वास मत जीत गई और सांसदों को अवैध वस्तु के सदन में प्रदर्शन के लिए कटघरे में खड़ाकर दिया गया। इस तरह अधिकारियों की ओर से संदेश पर कारवाई करने के बले संदेशवाहक को ही वार करने के कई उदाहरण मौजूद हैं।
अब आधार आथारिटी को कम से कम यही करना चाहिए कि वह रचना खैरा को उसके प्रयासों के लिए पुरस्कृत करे और खैरा, ट्रिब्यून प्रबंधन, पत्रकार बिरादरी और पूरे देश से आधार के सुरक्षा उल्लंघन को लेकर अपनी प्रतिक्रिया के लिए माफी मांगे। असुरक्षा के खिलाफ उनकी कारवाई का स्वागत है, लेकिन यह काफी नहीं है। (संवाद)
आधार आथोरिटी का चेहरा नहीं बदला
भारत की छवि को नुकसान
के रवींद्रन - 2018-01-17 11:21
यूनिक आइडेंटिफिकेशन आथोरिटी आफ इंडिया की छवि कभी अच्छी नहीं रही। इसे चलाने वाले बाबू आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में अठारहवीं सदी का तर्क इस्तेमाल करते हैं। इसलिए वह जो करना चाहते हैं और जो करते हैं उसमें कोई मेल नहीं होता है। संस्था के नाम की तरह उनका काम भी विचित्र ही है।