उनका मानना था कि लोकसभा का अगला चुनाव राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ ही हो सकता है। उन्होंने अपने कार्यकत्र्ताओं को कहा कि वे संगठन को मजबूत करें और बूथ स्तर से जिला स्तर तक तक सक्रियता बढ़ा दें।
मायावती किस पार्टी से गठबंधन करेगी या करेगी भी या नहीं, इसका उन्होंने कोई संकेत नहीं दिया। उनके संबोधन की एक खासियत यह थी कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों पर हमले किए। उन्होंने कहा कि ये दोनों पार्टियां भीमराव अम्बेडकर के नाम पर दलितों की भावना का शोषण कर रही हैं पर वास्तव में वे उनके लिए कुछ भी नहीं कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि गठबंधन पर उनका मत साफ है। उन्होंने कहा कि जब राजद अघ्यक्ष लालू यादव सभी पार्टियों को भाजपा के खिलाफ इकट्ठा करने के लिए पटना में एक रैली का आयोजन कर रहे थे तो उन्होंने कहा था कि पहले सीटों के बंटवारे के मसले को हल कर लिया जाय और उसके बाद ही किसी तरह का गठबंधन किया जा सकता है।
वह गुजरात चुनाव के पहले कांग्रेस से भी समझौता की कोशिश कर रही थीं और चाहती थीं कि कांग्रेस समझौते के तहत उनकी पार्टी के लिए भी कुछ सीटें छोड़ दे, लेकिन कांग्रेस उसके लिए तैयार नहीं हुई। फिर बसपा ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करने की घोषणा कर दी। हालांकि बसपा के उम्मीदवारों को वोट नहीं मिले। जितने मतदाताओं ने नोटा को वोट दिया था, उतने ने भी बसपा को वोट नहीं दिया।
बसपा की नेता कांग्रेस को लेकर बहुत डरी हुई हैं। उनको लगता है कि जिग्नेश मेवानी का इस्तेमाल करके कांग्रेस उनके दलित जनाधार को कमजोर करना चाहती है। उन्होने मेवानी पर सीधे सीधे हमला किया और कहा कि कांग्रेस मेवानी को उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों पर भेज रही है ताकि बसपा का दलित आधार कमजोर हो। उन्होंने अपने समर्थकों से अपील की कि वे मेवानी से सतर्क रहें।
बसपा भारतीय जनता पार्टी से भी बहुत भयभीत हैं। उनके जनाधार का एक हिस्सा पिछले दो चुनावों में भाजपा की ओर चला गया। पिछड़े वर्गो में भी बसपा की घुसपैठ थी, लेकिन पिछले दो चुनावों में उनका ओबीसी आधार भाजपा की ओर खिसक हो गया है और वे सिर्फ दलित आधार के बल पर अपने उम्मीदवारों को जीत नहीं दिला सकतीं। गौरतलब हो कि पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा को 18 फीसदी मत मिले थे, जिससे साबित होता है कि दलितों ने उनको वोट दिया, लेकिन 18 फीसदी वोट पाने के बावजूद बसपा का एक उम्मीदवार भी चुनाव नहीं जीत सका।
विधानसभा चुनाव में बसपा को 20 फीसदी मत मिले। इसके बावजूद उसे 20 विधानसभा सीटों पर ही जीत हासिल नहीं हो सकी। इससे साफ है कि ओबीसी मायावती का साथ छोड़ चुके हैं। दलितों का समर्थन बना हुआ है और मुस्लिमों के वोटों पर ही मायावती आश्रित हैं। लेकिन इस बीच भाजपा और कांग्रेस की ओर से दलित आधार खींचने की कोशिश के कारण मायावती की चिंता बढ़ गई है।
मायावती की पार्टी के अनेक वरिष्ठ नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। वे यह कहते हुए पार्टी से बाहर हुए है कि मायावती टिकटों को बेचती हैं। बसपा के एक बड़े नेता नसीमुद्दी सिद्दकी भी हुआ करते थे। टिकट बेचने के मसले को लेकर उनका भी मायावती से झगड़ा हो गया और वे पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी में चले गए। अब मायावती पार्टी में अकेली पड़ गई हैं और बड़े नेता के रूप में सिर्फ सतीशचन्द्र मिश्र ही उनके साथ रह गए हैं, लेकिन सतीशचन्द्र मिश्र के कारण माया की दलित राजनीति कमजोर होती है। (संवाद)
मायावती ने अपने समर्थकों को चुनाव के लिए तैयार रहने को कहा
समय से पहले लोकसभा चुनाव की भविष्यवाणी की
प्रदीप कपूर - 2018-01-23 11:01
लखनऊः बसपा प्रमुख मायावती को लगता है कि मोदी सरकार समय से पहले ही चुनाव करवा सकती है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के लिए एक साल बाद चुनाव लड़ना कठिन साबित हो सकता है। उन्होंने यह बात अपने जन्मदिन के दिन आयोजित एक समारोह में कही।