वित्त मंत्री ने अपने भाषण में भरोसा दिलाया है कि हमारे देश के लाखों परिवारों को अस्पतालों में इनडोर इलाज के लिए अपनी संपत्ति बेचना पड़ता है। नेशनल हेल्थ पॉलिसी 2017 दस्तावेज, जिसका उन्होंने अपने भाषण में उल्लेख किया है, ने भी चिंता व्यक्त की है कि स्वास्थ्य पर खर्च के 6.3 करोड़ अतिरिक्त लोगों को हर साल गरीबी रेखा के नीचे धकेल देता है। इसलिए लोगों के सभी वर्गों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सहायता को मजबूत करने की आवश्यकता है। लेकिन विडंबना यह है कि स्वास्थ्य पर भारत का बजट आवंटन लगातार बहुत कम रहा है। पिछले साल स्वास्थ्य पर बजट का यह मात्र 1.97 प्रतिशत था। इस साल के बजट में केवल 11.5 प्रतिशत पिछले साल की अपेक्षा ज्यादा है। वह वृद्धि भी मूल्यवृद्धि को ध्यान मे रखते हुए की गई है। यानी हम जितना पिछले साल खर्च करना चाहते थे, लगभग उतना ही इस साल भी खर्च करना चाह रहे हैं।
बजट का प्रमुख जोर 10 करोड़ परिवारों को प्रति वर्ष पांच लाख रुपए बीमा का कवर देनेे पर है। पर इस योजना के लिए मात्र 2000 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है जो कि प्रति व्यक्ति 40 रुपये है। यह सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए आवश्यक प्रति व्यक्ति 4000 रुपये के विपरीत है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि कौन सी बीमा कंपनी उक्त प्रीमियम पर इस कवरेज को देगी। यह भी कि क्या केंद्र सरकार अकेले ही सभी खर्चों को सहन करेगी या राज्यों को भी इस योजना के बोझ को साझा करना होगा क्योंकि वित्त मंत्री ने कहा कि इस मामले पर राज्यों के साथ भी चर्चा होगी। कब यह बंद हो जाएगा यह भी स्पष्ट नहीं है? वैसे चर्चा है कि इस योजना में राज्य सरकार को भी अपना हिस्सा देना होगा। अनेक राज्य भारी वित्तीय संकट से गुजर रहे हैं। वे शायद अपना हिस्सा दे ही नहीं सकें। जाहिर है, उन राज्यों मे यह लागू होगा ही नहीं।
श्री हसमुख अधिया, वित्त सचिव ने संकेत दिया है कि यह अक्टूबर से पहले यह योजना लागू नहीं हो पाएगी। 2016 में कैबिनेट द्वारा एक लाख रुपये की कवरेज का एक समान प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन इसे स्वीकृति नहीं मिली। बीमा आधारित स्वास्थ्य सार्वभौमिक नहीं है क्योंकि यह प्रीमियम पर आधारित है यह आउट पेशेंट देखभाल दिवस को शामिल नहीं करता है। कवरेज से परे कोई भी खर्च रोगी को खुद वहन करना है। लेकिन यह बीमा कंपनियों और निजी अस्पतालों के लिए बहुत सारे व्यवसाय देगा जो इस योजना के तहत जुड़ा होगा।
प्रस्ताव है कि प्रत्येक तीन संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के लिए एक मेडिकल कॉलेज खोले जाएंगे, जिसका अर्थ है 180 कॉलेज खुलेंगे। ये सब निजी क्षेत्र में खुलने की संभावना है। यह मेडिकल शिक्षा को अधिक महंगा बना देगा, जो कि स्वास्थ्य सेवा की अंतिम लागत में वृद्धि करेगा।
बजट में दवा की कीमतों को व्यवस्थित करने की कोई बात नहीं है। स्वास्थ्य पर होने वाले कुल खर्च में दवाओं पर होने वाला खर्च 67 प्रतिशत होता है। सार्वजनिक क्षेत्र के फार्मास्यूटिकल यूनिटों ने सस्ते में थोक दवाओं का उत्पादन किया है लेकिन इसे बंद किया जा रहा है। इसके बजाय, कोरोनरी स्टेंट कीमतों की समीक्षा करने का प्रस्ताव है।
1.5 लाख स्वास्थ्य और कल्याण क्लिनिक खोलने का प्रस्ताव अच्छा लग सकता है, लेकिन इसके लिए 1200 करोड़ रुपये का बजट है। इसका मतलब है कि प्रत्येक केंद्र के लिए 8,800 रुपये। सभी सुविधाओं और चलने वाले व्यय के साथ एक स्वास्थ्य क्लिनिक को कैसे इस राशि के साथ बनाया और चलाया जा सकता है? (संवाद)
घटता बजट और आकारहीन नीतियां
सर्वग्राही स्वास्थ्य सेवा अभी भी एक सपना है
अरुण मित्रा - 2018-02-06 10:11
स्वास्थ्य सभी की चिंता हैं। केवल स्वस्थ व्यक्ति ही सामाजिक विकास में योगदान कर सकता है। इस प्रकार देश को सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा की दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है जहां हर नागरिक के स्वास्थ्य की जरूरतों को पूरा करने की आवश्यकता होती है। इसी संदर्भ में 1 फरवरी 2018 के स्वास्थ्य पर 52800 करोड़ रुपए की राशि के बजटीय प्रावधानों को देखा जाना चाहिए।