इसके पूर्व चारा घोटाले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जेल की सजा काट रहे है। इस तरह के घोटाले देश को आर्थिक रूप से कमजोर तो कर ही रहे है, देश की अस्मिता को भी चुनौती दे रहे है। इस तरह के घोटाले में सरकार के बड़े ओहदे पर बैठे अधिकारी से लेकर मंत्री तक शामिल है जिनके आगे पैसा से बढ़कर कुछ भी नहीं है। आखिर इस तरह के घोटालों से देश को कब निजात मिलेगी, जहां एक से बढ़कर एक धुरन्धर इसको बढ़ाने में सक्रिय है।

देश में घोटालों का इतिहास कुछ नया नहीं सदियों पुराना है। इस देश को पहले विदेशी लुटते रहे, अब अपने ही लूट रहे है। जब बाड खेत को खाय तो कौन बचाय । जब अपने ही अपने देश को लूट रहे है तो किसपर विश्वास करे देश की जनता । जनता सŸाा बदलती है परिवर्तन के लिये, अमन, सुख - शांति , विकास के लिये, पर वहीं ढाक के तीन पात हाथ लगते। एक से बढ़कर एक, देश को लुटे जाने की प्रक्रिया आजादी से लेकर अब तक अपने अपने ढ़ंग से यहां जारी है। इस दिशा में देश में घोटाले होते रहे, विपक्ष चिल्लाता रहा, पक्ष एक दूसरे पर आरोप लगाता रहा , आरोपी पकड़े भी गये, जेल भी गये , शौक से घूमते भी नजर आये। देश में आज तक न घोटाले कम हुये न आरोपी, आखिर क्यो ? विचारणीय मुद््दा है।

देश में हुए घोटाले पर एक नजर डाले तो एक से बढ़कर एक घोटाले नजर आये । आजादी के बाद देश में पहला घोटाला सन्् 1948 में भारत सरकार द्वारा जीप खरीदी में उजागर हुआ जिस समय के ब्रिटेन में रहे भारतीय उच्चायुक्त आरोपों के घेरे में आये, जिन्हें बाद में नेहरू कैबिनेट में भी शामिल कर लिया गया। इसके बाद देश में लगातार घोटाले आनेवाली हर सरकार के कार्यकाल में केन्द्र से लेकर राज्य तक होते ही रहे जिसमें मारुति घोटाला, तहलका कांड , सन्् 1987 का बोफर्स, 99 का 120 करोड़ का एयरबस घोटाला, 1992 का हर्षद मेहता कांड, 1996 का 950 करोड़ का चारा, 1200 करोड़ का दूरसंचार , 133 करोड़ का यूरिया घोटाला ,1997 का सुखराम टेलीकाॅम कांड, 2001 का केतन पारेख सुरक्षा घोटाला, 2003 का ताज काॅरीडोर, 2008 का सत्यम घोटाला , 2009 खदान घोटाला , 2010 का 2जी स्पेक्ट्रम, 2011 का रिश्वत वोट अटैची कांड, सहित अनेक घोटाले हुये । घोटाले के मामले में यह देश अब तक किसी से पीछे नहीं रहा । देश का कोई भी महक्मा आज घोटाले की छाया से दूर नहीं जिससे सड़क ,पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा जैसी

आवश्यक सेवाएं आमजन से कोसों दूर होती जा रही है। घोटालों के कारण ही सर्वाधिक रोजगार देने वाले पीएसयू भी डूब गये।जीवन रक्षक जैसी दवाइयां एवं उपचार सेवाएं भी इस तरह के घोटालों से अछूती नहीं है।

इस तरह के घोटालों में लिप्त अधिकांश लोग देश छोड़ विदेश में जा छिपे है। देश का अधिकांश धन विदेशों के बैंक में कालाधन के रूप में आज विद्यमान है। देश की आम जनता टैक्स के भार तले दबती जा रही है। दिन पर दिन बढ़ती महंगाई से जूझ रही है। किसानों के फसलों के दाम मिल नहीं रहे है, जिससे किसान दिन पर दिन कर्ज में डुबते जा रह है, आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे है। युवा रोजगार के लिये भटक रहे है। शिक्षा , स्वास्थ्य सेवाएं महंगी होती जा रही है। देश के घोटालों में लिप्त चंद लोग दिन पर दिन फलफूल रहे है। कुछ चंद दिनों ही में करोड़ों के मालिक बन जा रहे है जबकि दिनरात मेहनतकश को रोटी के लाले पड़े रहते है। हर सरकार भ्रष्टाचार मिटाने की बात तो करती है पर देश के माफियाओं को अपने से अलग नहीं कर पाती । इस तरह के हालात में विजय माल्या, नीरव मोदी, ललित मोदी जैसे कुख्यात आर्थिक जगत के अपराधी पैदा होते ही रहेेंगे । देश में घोटालों की भरमार हर क्षेत्र में जारी रहेगी ।

देश की अर्थ व्यवस्था को सुदृृढ़ करने के लिये एक समय निजी क्षेत्रों में संचालित बैंक का राष्ट्रीयकरण किया गया जिसका पूरे देश ने स्वागत किया । आज वहीं बैंक घोटालों के केन्द्र बिन्दू बनते जा रहे है। अब इन बैंको को फिर से निजी क्षेत्रों में लाने की मांग की जाने लगी है। ताकि बैंकों में जमा आमजनता के धन को आसानी से लूटा जा सके । जब सरकार के अधीन बैंक सुरक्षित नहीं है तो निजी क्षेत्र में बैंक कैसे सुरक्षित रहेंगे ? निजी क्षेत्रों में संचालित बैंकों के मनमनानें रवैये से सभी भॅलीभाॅति परिचित है। उनके महंगे व्याजदर एवं आमजन के धन को अचानक निगल जाने की अनेक घटनाएं उजागर हुई है। जिससे घोटाले का एक नया स्वरूप उजागर होता है।

इस तरह के हालात में देश को कब हो रहे घोटालों से निजात मिलेगा, वर्तमान परिवेश में कुछ कह पाना मुश्किल है। देश अपना है, अब अपने ही कब तक इसे लुटते रहेंगे , विचार किया जाना चाहिए। इस गोरखधंधे को देशहित में बंद करने की प्रक्रिया में सभी का सहयोग सकरात्मक होना चाहिए। वरना घोटाले देश में होते ही रहेंगे जिसे रोक पाना कतई संभव नहीं हो पायेगा। (संवाद)