भारतीय जनता पार्टी की जीत का ग्राफ लगातार गिर रहा है और नरेन्द्र मोदी का जादू भी कम होता जा रहा है। गुजरात के आमचुनाव और राजस्थान के उपचुनावों का संदेश यही है। मध्यप्रदेश में हो रहे उपचुनाव में पड़े मतों की गिनती में भी भाजपा पराजित होती दिखाई दे रही है। कुछ समय पहले यहां हुए 19 नगर निकायों के चुनाव में भी कांग्रेस ने भाजपा को बराबरी का मुकाबला दिया था। भारत को कांग्रेस मुक्त करने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी अपने परंपरागत गढ़ों में कांग्रेस के सामने पस्त होती दिखाई पड़ रही है।
वैसे माहौल में कार्ती चिदंबरम की गिरफ्तारी से भाजपा सरकार यह संदेश देना चाह रही है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ वास्तव में गंभीर है। उसे डर है कि अगला लोकसभा चुनाव भी भ्रष्टाचार के मसले पर ही लड़ा जाएगा। पिछला चुनाव भी इसी मसले पर लड़ा गया था और उस समय इसका खामियाजा कांग्रेस और उसके समर्थक दलों को भुगतना पड़ा था। अगले लोकसभा चुनाव में यदि भ्रष्टाचार केन्द्रीय मुद्दा बनता है, तो इसका नुकसान भारतीय जनता पार्टी को ही उठाना पड़ेगा।
गौरतलब हो कि नरेन्द्र मोदी के पक्ष में जो माहौल बना था, वह भ्रष्टाचार विरोध के कारण ही बना था। देश भर में अन्ना हजारे के नेतृत्व में एक बहुत बड़ा आंदोलन हुआ था और उसके कारण कांग्रेस की चूलें हिल गई थी। नरेन्द्र मोदी को लोगों ने इसलिए पसंद किया कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई आरोप नहीं थे। उन्होंने अपने परिवार से बहुत दूरी बना रखी है और आज भी किसी व्यक्ति के भ्रष्ट होने का सबसे बड़ा कारण उसका परिवार ही होता है, इसलिए लोगों को लगा था कि मोदी न तो भ्रष्ट है और न ही भ्रष्ट हो सकते हैं। लोगों को यह भी उम्मीद थी कि वे सत्ता में आकर भ्रष्टाचार के कैंसर से देश को मुक्त कराएंगे और यूपीए सरकार के दौरान जो लोग भ्रष्टाचार में लिप्त थे, उनको सजा दिलवाएंगे और उनके कुकर्मों के कारण सरकारी खजाने को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई भी करा सकेंगे।
लेकिन मोदी सरकार लोगों की इन आकांक्षाओं पर खरी नहीं उतरी। चुनावी जीत के लिए वे कांग्रेस नेताओं के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाते रहे, लेकिन उनकी सरकार ने उन्हें सजा दिलाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। राॅबर्ट वाड्रा का इस्तेमाल उन्होंने पंचिंग बैग के रूप में किया, लेकिन अभी तक उनके खिलाफ मुकदमा तक दर्ज नहीं किया गया है, जबकि वाड्रा के कथित घपले से संबंधित अधिकांश मामले राजस्थान और हरियाणा में हैं और उन दोनों राज्यों मे भाजपा की ही सरकार है।
अब जब कांग्रेस के भ्रष्टाचार की चर्चा करते हुए जब नरेन्द्र मोदी वाड्रा का नाम लेते हैं, तो खुद मजाक बन जाते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ नरेन्द्र मोदी की कसौटी वाड्रा ही हैं, जहां वे खरे नहीं उतरे हैं। 2 जी घोटाले पर चल रहे मुकदमे में सीबीआई की हार हो गई है और इसके कारण भी मोदी सरकार की मंशा पर सवाल खड़े हो गए हैं। यह सच है कि इस पर फैसला अदालत को देना होता है और अदालतें सरकार की कार्यपालिका के अधीन नहीं होती, लेकिन 2जी मुकदमे में फैसला देते हुए अदालत ने सरकारी एजेंसी की नाकामियों को ही जिम्मेदार ठहराया। इससे यह संदेश गया है कि सरकार ने अदालत में 2जी घोटाले के आरोपियों के खिलाफ मजबूती से पक्ष नहीं रखा और केस को ही कमजोर कर दिया, जिसके कारण अदालत को उन आरोपियों को आरोपमुक्त करना पड़ा।
पूर्ववर्ती सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार पर उपेक्षा का भाव अपनाने का आरोप तो मोदी सरकार पर लग ही रहा है, अब तो खुद इस पर ही राफेड सौदे में भ्रष्टाचार का आरोप लग रहा है। भ्रष्टाचार के इस आरोप की जद में अनिल अंबानी भी आ गए हैं और जिन लोगों पर 2 जी मुकदमा चल रहा था, उनमें अनिल अंबानी भी शामिल थे। जिस विदेशी कंपनी से राफेल सौदा हुआ है, उसने एक संदिग्ध सौदे में अनिल अंबानी की एक नौसिखिया कंपनी से 30 हजार करोड़ रुपये का करार कर रखा है। जिस काम के लिए अनिल अंबानी की कंपनी से करार किया गया है, वह काम पब्लिक सेक्टर की अनुभवी कंपनी हिन्दुस्तान एरोनाॅटिक्स लिमिटेड भी कर सकती थी। इसलिए अनिल अंबानी के साथ किए गए उस करार को संदेह के नजरिए से देखा जा रहा है। भारत सरकार का राफेल के लिए वह सौदा करीब 60 हजार करोड़ रुपये का है और उसमें से आधा अनिल अंबानी की कंपनी को वह विदेशी कंपनी वापस दे देगी। प्रति विमान खर्च भी ढाई से तीन गुना ज्यादा हो गया है।
राफेल के बाद बैंकों में हो रहे घोटाले की खबरों से भी भाजपा और उनके नेता नरेन्द्र मोदी की छवि को नुकसान हो रहा है। सरकार के बारे में राय बन रही है कि वह न तो भ्रष्ट लोगों को सजा दिला सकती है और न ही भ्रष्टाचार रोक सकती है। यह राय आगामी लोकसभा चुनाव में मोदीजी को भारी पड़ सकती है। इसलिए कार्ती चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई को हरी झंडी दिखाई गई है। वरना, सरकार की प्राथमिकताओं में राजनैतिक घोटालेबाजों को सजा दिलाना है ही नहीं। लालू यादव को भी सजा पुराने मुकदमों में मिली है, जिसमें मोदी सरकार की भूमिका नहीं है।
सवाल उठता है कि क्या कार्ती चिदंबरम की गिरफ्तारी मोदी सरकार की छवि को बदलेगी? क्या देश की जनता को यह विश्वास होगा कि वाकई नरेन्द्र मोदी भ्रष्ट लोगों को जेल भेजने में रुचि रखते हैं? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।(संवाद)
        
            
    
    
    
    
            
    कार्ति चिदंबरम की गिरफ्तारी
क्या अपनी बिगड़ती छवि को बचा पाएंगे मोदी?
        
        
              उपेन्द्र प्रसाद                 -                          2018-02-28 09:53
                                                
            
                                            पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम की आखिरकार गिरफ्तारी हो ही गई। यह गिरफ्तारी उस समय हुई है, जब केन्द्र की मोदी सरकार अपने कार्यकाल का चार साल पूरा करने जा रही है और अगले लोकसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो गई है। कुछ लोग तो यह भी मानने लगे हैं कि शायद अगला लोकसभा चुनाव समय से कुछ पहले इसी साल के अंत तक करा दिया जाय। इस बीच मोदी सरकार अपने लिए 2022 का लक्ष्य लगातार निर्धारित कर रही है और देश को उस समय तक उसे हासिल करने का वायदा भी कर रही है, जबकि 2022 के पहले उसे एक चुनाव जीतना बाकी है।