ऊपरोक्त दोनों कारण भारतीय जनता पार्टी के लिए आसान जीत के सबब होने चाहिए थे। गोरखपुर में तो लगातार पांच बार खुद योगी आदित्यनाथ चुनाव जीत चुके हैं। प्रदेश का राजनैतिक माहौल कैसा भी रहता हो, जीत योगी की ही होती थी। जब पूरे प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को मात्र 9 या 10 सीटें आती थीं, तब भी योगी गोरखपुर से चुनाव जीत जाते थे। यानी अन्य अनेक भाजपा सांसदों की तरह वे नरेन्द्र मोदी के ऊपर अपनी जीत के लिए मुहताज नहीं हुआ करते थे। इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि योगी भारतीय जनता पार्टी के किसी भी उम्मीदवार को वहां से जीत दिलवा सकते हैं और वह भी भारी मतों से।
लेकिन दोनों स्थानों पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की एकता ने रंग दिखाई है। भारतीय जनता पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए सिर्फ सपा और बसपा के बीच गठबंधन हो जाना ही एक मात्र कारण नहीं है। इसका एक बड़ा कारण नरेन्द्र मोदी से लोगों का मोह भंग होते जाना है। मोहभंग की वह तस्वीर मतदान के गिरते प्रतिशत में देखा जा सकता है। 2014 की तुलना में दोनों लोकसभा क्षेत्रों मे 12-12 फीसदी कम मतदान हुए। दोनों क्षेत्रों में अलग अलग लगभग 17 लाख मतदाता हैं। 12 फीसदी कम मतदान का मतलब होता है कि करीब दो लाख मतदाताओं ने इस बार वोट नहीं डाला।
ये दो लाख मतदाता कौन थे, जिन्होंने 2014 में तो वोट डाले थे, पर 2018 के उपचुनावों में वोट नहीं डाले? यदि कम मतदान वाले इलाको पर नजर डाली जाय, तो साफ पता चलता है कि उनमें से ज्यादातर वे ही मतदाता थे, जो आमतौर पर भाजपा को वोट डालते हैं। फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में 5 विधानसभा क्षेत्र हैं और उनमे से दो इलाहाबाद का शहरी इलाका है। वहां वोट बेहद कम पड़ा। एक क्षेत्र में तो 25 फीसदी से भी कम वोट पड़े। उसी तरह गोरखपुर शहर में भी बहुत कम वोट पड़े।
शहरों में भारतीय जनता पार्टी हमेशा बेहतर प्रदर्शन करती रही है। अपने बुरे दिनों मे भी उसे शहरों का समर्थन मिलता था। इस बार शहर के उसके समर्थकों का मतदान केन्द्र पर न आना यह साबित करता है कि उनका भाजपा से मोह भंग हो रहा है। ये शहरी मतदाता भावनाओं मे आकर भाजपा के साथ नहीं आते थे, बल्कि इसके पीछे सामाजिक और आर्थिक कारण भी हैं। भाजपा शुरू से ही आर्थिक उदारवाद का समर्थक रही है, इसलिए व्यापारियों की वह प्यारी पार्टी रही है। मंडल का विरोध करने के के कारण आरक्षण विरोधी सवर्ण भी भाजपा के स्वाभाविक समर्थक बने हुए थे और शहरों में इन समर्थकों की संख्या ज्यादा रही है।
लेकिन अब भाजपा का परंपरागत समर्थक वर्ग उसके खिलाफ होता जा रहा है। इन उपुचनावों का संदेश तो यही है। मंदिर की राजनीति कर भाजपा उनको बहलाने फुसलाने मे लगी हुई है, लेकिन उनका सामाजिक और आर्थिक हित अब मारा जा रहा है और वे मंदिर की राजनीति से प्रभावित नहीं हो रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के लिए यह चिंता की बात होनी चाहिए। वह मंदिर की राजनीति को गर्म करना चाह रही है, लेकिन नोटबंदी और जीएसटी के कारण व्यापारियों में जो हताशा और निराशा का माहौल बना, वह भावनात्मक राजनीति पर भारी पड़ सकती है। इधर बैंकों में हो रहे घोटालों के कारण वे लोग भी चिंतित है, जो इन घोटालों के कारण बैंकों में रुपया जमा करना एक जोखिम भरा काम समझ रहे हैं।
सच कहा जाय, तो बैंको की गिरती विश्वसनीयता के साथ मोदी सरकार की भी विश्वसनीयता गिर रही है। बात बात में कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराने की उसकी रणनीति पर भी अब लोगों को गुस्सा आ रहा है और यह गुस्सा उत्तर प्रदेश के चुनावों मे ही नहीं, अन्य गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान में हुए चुनावों में भी देखने को मिला है।
मध्यप्रदेश में विधानसभा के दो उपचुनाव हुए थे। भाजपा ने पूरी ताकत झोंक डाली थी, लेकिन वहां वह हार गई। राजस्थान में दो लोकसभा और एक विधानसभा के उपचुनाव हुए थे। वहां भी जीत के लिए भाजपा ने हर संभव तरीके आजमाए, लेकिन वहां भी वह हारी। दोनों राज्यों में हुए स्थानीय निकायों के चुनावों में भी भारतीय जनता पार्टी को हार का मुह देखना पड़ा।
यानी राजस्थान और मध्यप्रदेश के बाद भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में भी अपना जनाधार गंवा रही है। वह इस बात से खुश हो सकती है कि पूर्वाेत्तर के राज्यों पर भी वह काबिज होती जा रही है, लेकिन उन क्षेत्रों में हो रहा उसका विस्तार हिन्दी राज्यों में हो रही सिकुड़न की भरपाई नहीं कर पाएगा। इसलिए भाजपा को अब सतर्क हो जाना चाहिए। 2019 की लोकसभा उसके लिए आसान नहीं है। गलत तरीके से सत्ता हथियाने से भी मतदाताओं का मूड प्रभावित होता है। यह बात भी भाजपा को याद रखनी होगी। (संवाद)
उत्तर प्रदेश उपचुनावों के नतीजे
भाजपा का 2019 में सत्ता में आना आसान नहीं
उपेन्द्र प्रसाद - 2018-03-14 10:35 UTC
पूर्वाेत्तर के राज्यों में जीत की खबरों के बीच उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के एक साथ आने की भी खबर आ रही थी। उत्तर प्रदेश से आ रही वह खबर भारतीय जनता पार्टी के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण थी। गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा क्षेत्रों के नतीजों ने इसे साबित कर दिया है। इन दोनों सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा आम चुनाव में कब्जा किया था। भाजपा को मिले कुल मत सपा, बसपा और कांग्रेस को मिले सम्मिलित मतों से भी दोनो लोकसभा क्षेत्रों में ज्यादा थे। उससे भी बड़ी बात यह थी कि गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन गए और फूलपुर के सांसद केशव प्रसाद मौर्य उपमुख्यमंत्री। किसी क्षेत्र के लोगों के लिए यह एक तरह की उपलब्धि होती है कि उसका प्रतिनिधि मंत्री या मुख्यमंत्री बन गया है।