यूं तो यह एक धार्मिक आयोजन होता है, लेकिन श्रीमती चिटनिस के प्रयासों से 10 साल पहले एक स्थानीय ग्रामीण मेले का आयोजन किया गया था। इसमें खान-पान के स्टाॅल और कुछ झूले लगाकर स्थानीय ग्रामीणों के लिए मनोरंजन की व्यवस्था की जाती थी। लेकिन पिछले 10 सालों में फिजां बदल गई और इस साल मेले में राष्ट्रीय स्तर के सांस्कृतिक आयोजन किए गए। कुछ सैकड़ा लोगों से शुरू हुए इस मेले में इस साल हजारों की संख्या में न केवल आसपास के, बल्कि दूर-दराज के लोग भी आए।

धामनगांव में आयोजित मां वाघेश्वरी ग्रामोदय मेला अब मध्यप्रदेश के प्रमुख सांस्कृतिक आयोजनों में से एक बन गया है। इस बार मां वाघेश्वरी ग्रामोदय मेला में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी थी। भले ही इसका आयोजन एक गांव में किया गया हो, लेकिन इसमें देश के 10 राज्यों के लोक कलाकार प्रस्तुति देने के लिए आए हुए थे। पंजाब, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तरप्रदेश के कलाकारों के साथ-साथ पूर्वोत्तर के असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और त्रिपुरा से आए लोक कलाकारों ने इस मेले में अपने पारंपरिक लोक सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी।

महाराष्ट्र की सीमा से लगे मध्यप्रदेश का ऐतिहासिक शहर है बुरहानपुर। धार्मिक, पुरातात्विक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक और सांस्कृतिक, हर तरह से समृद्ध है बुरहानपुर। इसे दक्खिन का दरवाजा भी कहा जाता रहा है। कई मुगलों शासकों ने यहां सालों-साल बिताए हैं। यह एक ट्रेड सेंटर भी रहा है। आधुनिक समय में इसे पानी सप्लाई के पारंपरिक वैज्ञानिक पद्धति के लिए भी पहचाना जाता है। यहां का कुंडी भंडारा विश्वविख्यात है। ऐसे ऐतिहासिक शहर के पास स्थित धामनगांव में आयोजित ग्रामीण मेले का राष्ट्रीय स्वरूप में बदलना स्वाभाविक सा लगता है।

चैत्र नवरात्रि में मां वाघेश्वरी मंदिर के प्रांगण में एक कुटियानुमा कमरे में श्रीमती चिटनिस पूरे समय रहती हैं। अल-सुबह वह अपने क्षेत्र के ग्रामीणों से मेल-मुलाकात करती हैं और फिर निकल पड़ती हैं पास के किसी गांव में जल जागरण अभियान पर। पानी बचाने के उपाय, खेतों में वाटर रिचार्ज के लिए खेत कुंड, पानी के स्रोतों की साफ-सफाई और ग्रामीणों को मेले में आने का आमंत्रण।

शाम को मेला स्थल पर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए कार्यशाला, किसानों और महिलाओं के लिए कार्यशाला का आयोजन कर कई मसलों का समाधान, जागरूकता और नई पहल की घोषणा जैसे आयोजन किए जाते हैं। और फिर शुरू हो जाती हैं सांस्कृतिक गतिविधियां, जिसमें देर रात तक ग्रामीण मनोरंजन करते हैं। यह मेला सांस्कृतिक एवं सामाजिक समागम का केन्द्र होता है। श्रीमती चिटनिस भी मेले में कभी इस दुकान से, तो कभी उस दुकान से चाट-पकौड़े, बर्फ के गोले, जलेबी खाते-खिलाते हुए घुमती हैं। इस दौरान वह आसपास फैले कचरे को उठाकर डब्बे में डालने लगती हैं और फिर देखते ही देखते आसपास के लोग भी सफाई अभियान में जुट जाते हैं।

मेले के एक कोने में झूला, मौत का कुंआ और विज्ञान का चमत्कार खेल चलते हैं, तो दूसरे कोने में दंगल और कबड्डी का आयोजन होता है। इसमें कई राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी भाग लेते हैं। इस बार तांगा दौड़ का आयोजन भी किया गया। घोड़ों का हेल्थ चेकअप भी किया गया।

श्रीमती चिटनिस बताती हैं, ‘‘यह सपना था कि हमारे क्षेत्र के ग्रामीण भी राष्ट्रीय स्तर के आयोजन के साक्षी बने। उन्हें बड़े कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में ले जाना संभव नहीं था। लेकिन अब इस क्षेत्र में ही बड़ा आयोजन होने लगा है। पद्मश्री प्रह्लाद टिप्पाणिया के कबीर भजन, त्रिकर्षि संस्था की सावित्री बाई फुले के जीवन पर आधारित सावित्री नाटक, औरंगाबाद के निरंजन भाखरे की टीम का भारुड़ नाटक, पंजाब के कलाकारों का प्रसिद्ध गिद्दा एवं भांगड़ा नृत्य का आनंद ग्रामीणों ने लिया। इस बार पूर्वोत्तर राज्यों के लोक नृत्यों की प्रस्तुति की गई। इस इलाके में यह अपनी तरह की अनूठी पहल रही है।’’ मेले में असम के बीहु, अरुणाचल प्रदेश के पौनुंग, मेघालय के वंगाला, मिजोरम के चेराव, मणिपुर के थांग टा चैनाबा, नागालैंड के नजहु एवं थिस्सेसे और त्रिपुरा के लोबांग लोक नृत्य की प्रस्तुतियों ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

मां वाघेश्वरी ग्रामोदय मेले को राष्ट्रीय स्वरूप देने में भारत सरकार के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र एवं मध्यप्रदेश सरकार की विभिन्न अकादमियों ने सहयोग किया। निश्चय ही अब यह आयोजन मध्यप्रदेश की महत्वपूर्ण सांस्कृतिक गतिविधियों में से एक बन गया है। (संवाद)