इस आरक्षण का उपयोग आर्थिक आधार पर न होकर जातिगत आधार से जोड़ दिया गया जो आगे चलकर केवल वोट की राजनीति से जुड़कर जातीय समरसता के वजाय वर्ग संघर्ष का कारण बनता चला गया। इस आरक्षण का लाभ देश की अन्य जातियां भी लेने के लिये आंदोलन में कूद पड़ी। सत्ता के लालचियों ने इसे हवा देकर वर्ग संघर्ष को और बढ़ा दिया और आज जो रूप इसका देखने को मिल रहा है सभी के सामने है। जिसे हटाने की मांग भी उठने लगी है। पर यह जहर इस तरह फैल चुका है जिससे देश को निजात मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया है।
बाबा साहेब अपने जीवनकाल में बौद्ध धर्म के प्रबल समर्थक रहे है पर उन्हें इस बात का अंदेशा कभी भी नहीं रहा होगा कि उनके अनुयायी अपने लाभ के लिये उनके नाम का सहारा लेकर जातीय समरसता के वजाय जातीय संघर्ष को हवा देंगे । उन्होने संविधान में एक निश्चित समय के लिए आरक्षण का प्रवधान रखा पर लाभगत प्रक्रिया से जुड़ा आरक्षण सदा -सदा के लिये केवल जुड़ा ही नहीं और जातियों को भी जोड़ता गया जो वर्ग संघर्ष का रूप आज ले चुका है। जातीय समरसता के लिये बाबा द्वारा लाया यह प्रवधान वोट की राजनीति से जुड़कर वर्ग संघर्ष को एक नया रूप दे दिया है जिससे देश में जातीय तनाव को और बढ़ावा मिलने लगा है जो बाबा साहेब के सिद्धांतों को नकारता नजर आ रहा है। बाबा साहेब के जन्मदिन पर इस तथ्य को समझना बहुत जरूरी है ।
हर वर्ष 14 अपै्रल को बाबा साहेब का जन्मदिन देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है जिसमें बाबा साहेब के संघर्ष एवं व्यक्तित्व की चर्चा पर तरह के तरह के व्याख्यान दिये जाते है पर उनके सही आदर्शो पर चलने की कोई बात नहीं करता । बाबा साहेब अम्बेडकर ने समरसता का नारा दिया । बाबा ने सदा कहा शिक्षित बनों, आगे बढ़ो पर उन्होनें कभी भी नहीं कहा कि वर्ग संघर्ष को बढ़ावा दो। आज उनके समर्थक जय भीम का नारा देकर उनके बौद्ध सिद्धांतों का मखौल उड़ाते है । आज देश पहले कहीं ज्यादा वर्ग विभेद में उलझ गया है। बाबा साहेब जिस वर्ग के उत्थान हेतु संविधान में आरक्षण का प्रवधान लेकर आये सही मायने में उस वर्ग के अधिकांश लोग आज भी दबे हुये है। इस वर्ग के तेज तर्रार लोग सर्वाधिक लाभ उठा रहे है और जो सीधे - साधे कमजोर तबके के है आज भी जमीनी धरातल से जुड़े है जिनके पास न तो रहने को घर है , न जीवन यापन के सही संसाधन। इस तरह की स्थिति आज भी झुगी झोपडियों में देखी जा सकती है जहां रोजगार पाने को आज भी इस वर्ग के अनेक युवा आरक्षण मिलने के बावजुद भी रोजगार पाने के लिये लालायित है पर रोजगार नहीं मिलता । इस वर्ग में जिसे आरक्षण लाभ मिल गया, आर्थिक स्थिति बेहतर होने के बावजूद भी अपने गरीब भाइयों के लिये आरक्षण का लाभ नहीं छोड़ना चाहता और आज भी यह राग अलापता है कि हमें तो हर जगह से दबाया जा रहा है। इनके संरक्षण के लिये कानून में जो संशोधन लाया गया इनके तेज तर्रार लोगों द्वारा खुलकर दुरूपयोग होने लगा जिसके कारण इस नियमावली में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कुछ संशोधन की बात को लेकर जो इस वर्ग के लोगों द्वारा अभी हाल ही में देश भर में उपद्रव देखने को मिला वह बाबा साहेब के किस सिद्धांत का पालन करता है, विचार करना चाहिए ।
बाबा साहेब विद्वान विचारक एवं शांति के प्रबल समर्थक रहे है। इनकी नीतियां देश में कभी भी वर्ग संघर्ष का कारण नहीं बनी पर देश में उनके नाम पर राजनीतिक रोटियां सेकीं जा रही है। वोट के लिये वर्ग संघर्ष को आज बढ़ावा दिया जा रहा है। इन्हीं के वर्ग में झांक कर देखा जाय तो वर्ग संघर्ष का नया रूप देखने को मिलेगा जहां इसी वर्ग के सम्पन्न लोग अपने से कमजोर लोगों के साथ भेद भाव का रवैया अपनाते मिलेंगे, यह कौन सी समरसता है जिसके लिये बाबा साहेब ने अलख जगाई थी।
देश के कमजोर तबके को संरक्षण मिले पर उनमें जो संपन्न यानी क्रीमीलेयर में हैं, उन्हें नहीं मिलना चाहिए। आर्थिक रूप से जो सम्पन्न हो गये है उन्हें आरक्षण का लाभ कमजोर तबके के लिये स्वेच्छा से छोड़ देना चाहिए। इस तरह का संकल्प यदि बाबा साहेब के समर्थक ले सके तो बाबा साहेब के जन्मदिन का इससे बेहतर तोफा कोई और नहीं हो सकता है। बाबा साहेब के आदर्शो के पालन में इस तरह के संकल्प का अर्थ काफी मायने रखता है। बौद्ध धर्मावलम्बी बाबा साहेब अम्बेडकर के समर्थक आज हिंसक क्यों बनते जा रहे है, इसपर विचार किया जाना चाहिए । बाबा साहेब के समर्थक आज बाबा साहेब के सिद्धांतों से काफी दूर होते जा रहे है। इस पर मंथन करने की महती आवश्यकता है। (संवाद)
अम्बेडकर के समर्थक बाबा साहेब के सिद्धांतों से दूर
दलितों के संपन्न तबकों को खुद आरक्षण छोड़ देना चाहिए
भरत मिश्र प्राची - 2018-04-16 12:53
सभी वर्ग के लोगों के सहयोग से ही देश को आजादी मिली पर वर्ग संघर्ष की राजनीति से देश को आजादी आज तक नहीं मिली। इसे दूर करने के लिये बाबा साहेब आम्बेडकर ने आजादी के बाद बने संविधान में आवश्यक प्रावधान कर सभी को जातीय समरसता के तहत लाने का भरपूर प्रयास किया। इसी प्रवधान के तहत समाज के कमजोर तबके को ऊपर उठाने के लिये अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को आरक्षण के तहत तमाम सुविधाएं प्रदान की गई।