वित्तमंत्री बाजार मे पर्याप्त कैश होने की बात कर रहे हैं, लेकिन फौरी समस्या यह है कि एटीएम मशीनों में पर्याप्त कैश नहीं है। वे कह रहे हैं कि बैंकों के पास और रिजर्व बैंक के चेस्ट में भी पर्याप्त कैश है, लेकिन वे एक बार फिर भूल कर रहे हैं। उन्हें इस बात को समझना चाहिए कि समस्या एटीएम मशीनों में कैश की किल्लत की है और लोग उसके कारण परेशान हो रहे हैं। वित्त मंत्री कह रहे हैं कि एकाएक कुछ प्रदेशों में कैश की मांग बढ़ गई है, इसलिए वहां तात्कालिक समस्या पैदा हो गई है, जिसे दूर कर दिया जाएगा।

सवाल उठता है कि कुछ राज्यों में एकाएक कैश की मांग कैसे बढ़ गई कि बैंक उस मांग की पूर्ति करने के लिए अपने एटीएम मशीनों में कैश की आपूर्ति भी नहीं कर पा रहे हैं। इसका कारण बताते हुए शादी -विवाह के मौसम का हवाला दिया जा रहा है। फसलों की कटाई की बात भी की जा रही है कि कटाई के बाद अनाज की भारी पैमाने पर बिक्री होती है और उसके लिए ज्यादा रकम की जरूरत पड़ती है। इसलिए मांग बढ़ गई।

लेकिन हर साल इस समय शादियां होती हैं और हर साल फसलें कटती हैं। तो फिर इस नया क्या हुआ कि लोगों को अपनी मांग के मुताबिक बैंकों में रखे अपनी ही रकम एटीएम मशीनों से नहीं मिल रही? दरअसल, इस कैश संकट का असली कारण वही है, जिसकी चर्चा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की है। बैंकिंग व्यवस्था से 2000 रूपये के नोट बाहर होते जा रहे हैं। बैंकों के पास ये नोट उपलब्ध नहीं हैं और इसलिए वे अपनी एटीएम मशीनों में 2000 के नोट नहीं डाल पा रहे हैं। किसी पूरी तरह से भरे एटीएम में करीब 75 प्रतिशत राशि तो 2000 की करेंसी में ही होती है और यदि इस करेंगी का खांचा खाली ही रह जाए, तो एटीएम मशीन मे 75 फीसदी रकम की कमी तो हो ही जाएगी और जो रकम 500 और 100 रुपये की करेंसी में वहां है, उसे समाप्त होते देर नहीं लगेगी। आज यदि देश की अधिकांश एटीएम मशीनें खाली हैं, तो इसका कारण 2000 रुपये के नोट का बैंको के पास नहीं वापस आना है। बैंकों के अधिकारी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि 2000 रुपये के नोट बैंकों में या तो वापस ही नहीं आ रहे हैं और यदि आ भी रहे हैं, तो बहुत कम मात्रा में आ रहे हैं।

सवाल उठता है कि वे नोट कहां जा रहे हैं? शिवराज सिंह चैहान का दावा है कि उनकी जमाखोरी हो रही है। जमाखोरी क्यों हो रही है? श्री चैहान बताते हैं कि एक साजिश के तहत ऐसा किया जा रहा है, ताकि कैश संकट से समाज में अव्यवस्था पैदा हो और लोगों का गुस्सा सरकार के खिलाफ भड़के। मध्यप्रदेश में इसी साल चुनाव होने जा रहा है और पिछले 15 साल से मुख्यमंत्री के पद पर बैठे चैहान एक बार फिर इस पद पर कब्जा करने के लिए प्रयत्नशील हैं और लोगों का गुस्सा केन्द्र सरकार के खिलाफ भड़का तो इसका खामियाजा चैहान को भी भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि तब उनकी पार्टी चुनाव हार सकती है और फिर वे एक बार फिर मुख्यमंत्री नहीं बन सकते।

एक बात और ध्यान देने योग्य है कि यह संकट पिछले दो सप्ताह से ही देखा जा रहा है और इस बीच कर्नाटक चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। चुनाव में हजारों करोड़ रुपये खर्च होने हैं। वहां न तो भारतीय जनता पार्टी के पास संसाधनों की कमी है और न ही कांग्रेस के पास। दोनों किसी भी कीमत पर चुनाव जीतना चाहते हैं। तो क्या 2 हजार रुपये के नोटों की कमी के पीछे कर्नाटक में हो रहा चुनाव है, जिसमें खर्च करने के लिए राजनैतिक पार्टियों के नेताओं ने 2000 रुपयों के नोटों की जमाखोरी कर रखी है और उन्हें कर्नाटक में खर्च किए जाने हैं। रुपया अब चुनाव के बाद भी खर्च होता है, क्योंकि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में विधायकों की भी खरीद बिक्री होती है। तो क्या चुनाव के पहले और चुनाव के बाद खर्च करने के लिए 2000 के नोटों की जमाखोरी हुई?

भारतीय रिजर्व बैंक ने 6 लाख 70 हजार करोड़ रुपये के मूल्य की 2000 की नोटें छपवाई है और उन्हें बाजार में डाल दिया गया है। तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या इतने बड़े पैमाने पर कर्नाटक के चुनाव में पैसे खर्च होते हैं? यदि यह सच है, तो मानना पड़ेगा कि यह सच बहुत ही खतरनाक है, क्योंकि लोकसभा चुनाव तो कर्नाटक चुनाव से बहुत बड़ा होता है और देश भर में होने वाले लोकसभा चुनाव में तो कर्नाटक में हो रहे खर्च से कई गुना ज्यादा पैसे खर्च होंगे। तब तो लोकसभा चुनाव के पहले पूरे देश मे 2000 के नोट क्या 500 और 100 रुपये के नोट भी नदारद हो जाएंगे।

यह साफ है कि 2000 के नोटों की कमी का कारण राजनेताओं और उनके कुबेरों द्वारा की जा रही जमाखोरी है और यह सिर्फ कर्नाटक को ध्यान में रखकर ही नहीं किया जा रहा है। आगामी लोकसभा चुनाव में भी पैसा पानी की तरह बहेगा। और यह मानने का कोई कारण नहीं कि उसके लिए भी 2000 रुपये के नोटों की जमाखोरी हो रही है। राजनीति पर धनकुबरों का बढ़ता वर्चस्व हमारी राजनीति के लिए ही नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है। (संवाद)