भारत की राजनीति पर जाति पूरी तरह हावी है। कोई नेता किसी बड़े पद पर पहुंचता है, तो लोग उसकी जाति जानना चाहते हैं। धर्म का पता तो नाम से ही लग जाता है, जाति जानने की कोशिश होती है और लोग पता लगा भी लेते हैं। अमित शाह जब भाजपा के अध्यक्ष बने, तो उनकी जाति के बारे में भी लोगों के बीच उत्सुकता जगी। यह उत्सुकता पत्रकारों के बीच कुछ ज्यादा ही रहती है।

नाम से लग रहा था कि वे वणिक समुदाय के होंगे। फिर सवाल यह उठा कि वे अगड़े बनिया हैं या पिछड़े बनिया। यानी वे ऊंची जाति के बनिया हैं या नरेन्द्र मोदी की तरह ओबीसी ही हैं। तो शोध करके लोगों ने पता लगाया कि वे अगड़े ही हैं और जैन धर्म से ताल्लुकात रखते हैं। अब भारत में हिन्दू में जाति व्यवस्था है, मुसलमानों में भी जातियां होती हैं। सिखों की भी कोई न कोई जाति होती है और यह रोग ईसाइयों और बौद्धों तक में व्याप्त है, लेकिन जैनियों के बीच जाति भेद देखने को नहीं मिलता। इसलिए अमित शाह की जाति का तो पता नहीं लगा पाए, लेकिन हां इतना पता चला कि जैन हैं और वणिक वर्ग से हैं। गौरतलब हो कि बनिया नाम की कोई जाति नहीं होती है, यह उन जातियों का एक वर्ग है, जो परंपरागत रूप से व्यापार करते रहे हैं।

लेकिन कर्नाटक चुनाव अभियान के दौरान अमित शाह ने खुद घोषित कर दिया कि वे जैन नहीं हैं, बल्कि वैष्णव हिन्दू हैं। उनका यह बयान दो कारणों से चैंकाने वाला था। पहला कारण तो यह था कि लोगों की आम धारणा को तोड़ने वाला वह बयान था। लोग उनको जैन समझते थे और उन्होंने उन्हें चैंकाते हुए बयान दे डाला कि वे जैन नहीं, बल्कि हिन्दू हैं।

दूसरा कारण और भी ज्यादा चैंकाने वाला था। आखिर भाजपा के अध्यक्ष को अपना धर्म बताने की जरूरत ही क्यों पड़ी? किस तरह का दबाव था उन पर? दबाव तो था ही और वह कर्नाटक मे चुनाव जीतने का दबाव था। वहां अमित शाह हिन्दू धर्म का झंडा उठाकर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को हिन्दू विरोधी साबित करने पर लग हुए थे। मुख्यमंत्री से उनकी शिकायत थी कि उन्होंने लिंगायत को हिन्दू से अलग धर्म की मान्यता देकर हिन्दू विरोधी काम किया है, क्योंकि इससे हिन्दुओ में फूट पड़ी है, हालांकि यह दूसरी बात है कि लिंगायत खुद अपनी हिन्दू से अलग पहचान बनाना चाह रहे थे।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री को हिन्दू विरोधी होने का प्रमाणपत्र जारी कर अमित शाह अपनी पार्टी के लिए हिन्दू मतों का जुगाड़ करने की कोशिश कर रहे थे और इसी बीच मुख्यमंत्री ने ऐसा पाशा फेंका जिसके कारण श्री शाह चारों खाने चित्त हो गए। उन्होंने अमित शाह के हिन्दू कार्ड को ध्वस्त करने के लिए उन्हें अहिन्दू घोषित कर दिया और कहा कि अमित शाह हिन्दू के बारे में क्या बात करेंगे, वे तो खुद भी हिन्दू नहीं हैं, बल्कि जैन हैं।

उसके बाद तो अमित शाह ने अपने आपको हिन्दू होने का प्रमाणपत्र जारी करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने आपको जैन मानने से इनकार करते हुए कहा कि वे वैष्णव हिन्दू हैं, हालांकि कांग्रेस के नेताओं और खासकर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का वह जवाब जंचा नहीं और अब वे अमित शाह से हिन्दू होने के दस्तावेजी सबूत मांग रहे हैं। वैसे वे चाहते तो अमित शाह से उनकी जाति भी पूछ सकते थे, क्योंकि दुनिया मे ऐसा कोई हिन्दू नहीं है, जिसकी जाति नहीं। और यदि अमित शाह अपने आपकों पिछड़ा वर्ग का हिन्दू बताते तो फिर उनसे जाति प्रमाणपत्र मांग सकते थे, क्योंकि पिछड़े वर्ग की जातियों को सरकार द्वारा अपना जाति प्रमाणपत्र निर्गत कराने का अधिकार है।

अभी तक तो अमित शाह ने खुद के हिन्दू होने के दावे को साबित करते हुए कोई दस्तावेज जारी नहीं किया है, लेकिन सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या राजनीति का स्तर अब इतना गिर गया है कि चुनाव प्रचार के दौरान कोई अपने धर्म का उल्लेख करे? यदि कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने उनके हिन्दू होने पर सवाल खड़ा भी कर दिया था, तो क्या श्री शाह को उस तरह बयानबाजी करनी चाहिए थी कि वे जैन नहीं बल्कि वैष्णव हिन्दू हैं? इस तरह का जवाब देकर तो वे फंस गए हैं और अब अपने को हिन्दू साबित करना उनकी जिम्मेदारी बनती है, अन्यथा माना यह जाएगा कि वे झूठ बोल रहे हैं और वे वास्तव में जैन ही हैं। (संवाद)