वर्ष 2009-10 के लिए 7.2 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि के अनुमान से पता चलता है कि औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक तेजी की ओर संकेत कर रहा है और दिसंबर, 2009 के दौरान वर्ष दर वर्ष आधार पर वृद्धि 16.8 प्रतिशत के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई। समीक्षा के अनुसार वैश्विक आर्थिक संकट से निपटने के लिए उठाए गए नीतिगत कदमों से अर्थव्यवस्था को अच्छा समर्थन मिला है। समीक्षा के अनुसार मानसून में देरी और कमजोर मानसून के कारण विपरीत प्रभावों पर कुछ हद तक लगाम लगी है और औसत से बेहतर रबी फसल की उत्पादन की संभावना है। समीक्षा के अनुसार अर्थव्यवस्था में सुधार की गति अच्छी है और निर्यात, पूंजी प्रवाह और गैर बैंक खाद्य त्रऽण से यह और मजबूत हुई है।
वर्ष 2009-10 की दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था में उभार शुरू हुआ जब वर्ष आधार पर आर्थिक वृद्धि 7.9 प्रतिशत पर पहुंच गई। औद्योगिक उत्पादन में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि और सेवा क्षेत्र में 8.7 प्रतिशत वृद्धि के साथ जीडीपी में 7.2 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है। समीक्षा के अनुसार अर्थव्यवस्था में सुधार की वर्तमान प्रवृत्ति से विकास दर 9 प्रतिशत के मार्ग पर अग्रसर होने के संकेत मिलते हैं। यह सब पिछले 15 से 18 महीनों के दौरान किये गए उपायों का नतीजा है।
समीक्षा में वर्ष की दूसरी छमाही में खासतौर पर खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति 2 अंकों में पहुंचने पर चिंता प्रकट की गई है। खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति 30 जनवरी, 2010 को समाप्त सप्ताह में 17.9 प्रतिशत रही। जबकि र्इंधन, बिजली, ऊर्जा और ल्यूब्रिाकेंट में मुद्रास्फीति की दर 10.4 प्रतिशत रही। समीक्षा के अनुसार मुद्रास्फीति के इस महत्त्वपूर्ण भाग के लिए कुछ आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में कमी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। दिसंबर, 2009 में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी के साथ तेल की कीमतें बढऩे से भी अन्य गैर खाद्य वस्तुओं पर भी इसका प्रभाव पड़ा। इससे अगले कुछ महीनों में मुद्रास्फीति बढी़।
आर्थिक समीक्षा से मिले संकेत के अनुसार जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि में सुधार 8 क्षेत्रोंउप क्षेत्रों में से 7 के आधार पर अनुमान लगाया गया है जिनमें वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत या उससे अधिक रहीं। वर्ष 2009-10 में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि 5.3 प्रतिशत रही जो इससे पिछले वर्ष 3.7 प्रतिशत थी। वर्ष 2007-08 से प्रति व्यक्ति खपत वृद्धि में गिरावट का रूख देखा जा रहा है।
आर्थिक समीक्षा के अनुसार दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान 2009 में 23 प्रतिशत कम वर्षा हुई। लेकिन मानसून सीजन के बाद देश में 8 प्रतिशत अतिरिक्त वर्षा होने से इस कमी की कुछ हद तक पूर्ति हुई। खरीफ 2009-10 के दौरान फसल के रकबे में लगभग 6.5 प्रतिशत की गिरावट देखी गई जिससे चावल उत्पादन में गिरावट हुई। खरीफ मौसम में दलहनों में 5.63 प्रतिशत गिरावट हुई जबकि रबी मौसम में भी कुछ गिरावट देखी गई। उपलब्ध अनुमान के अनुसार, गेंहू, दलहनों और मूंगफली के रकबे में पिछले साल की तुलना में गिरावट देखी गई।
राजकोषीय वर्ष के प्रारंभ में व्यापक धन वृद्धि (एम 3) लगभग 21 प्रतिशत रही जो मध्य जनवरी, 2010 तक 16.5 प्रतिशत हो गई तथा सांकेतिक वृद्धि के पूर्वानुमान से नीचे ही बनी रही। वर्ष पहली छमाही में सरकार का क्रेडिट धन वृद्धि का प्रमुख निर्देंशक तत्व बना रहा है और यह वर्ष 2009-10 की तीसरी तिमाही से ही सामान्य बना हुआ है। समीक्षा के अनुसार 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के उभरने से ही रिजर्व बैंक ने अनुकूल मौद्रिक नीति अपनायी जिसके समर्थन से वैश्विक मंदी से उबरकर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटने में मदद मिली। वैश्विक मंदी से निपटने के लिए केन्द्र सरकार के नीतिगत उपायों के फलस्वरूप 2007-08 में राजकोषीय घाटा 2.6 प्रतिशत से बढक़र 2009-10 के लिए बजट अनुमानों में 6 प्रतिशत होने की आशंका है।
आर्थिक समीक्षा के अनुसार 13वें वित्त आयोग की सिफारिशों से भी 2010-11 के लिए और मध्यावधि में राजकोषीय नीति को दिशा मिली। वित्त आयोग ने 2008-09 और 2009-10 के लिए विस्तारात्मक राजकोषीय नीति की सिफारिश की है। इससे भी संकेत मिलते हैं कि राजकोषीय घाटे को कम करने की जरूरत है।
समीक्षा से संकेत मिलते हैं कि पिछले 12 महीनों में अर्थव्यवस्था के कार्य निष्पादन से उभरकर सामने आये अनेक कारकों से भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी आई। 2008-09 में सकल घरेलू बचत जीडीपी का 32.5 प्रतिशत थी जबकि सकल घरेलू पूंजी निर्माण 34.9 प्रतिशत था। तेजी से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के साथ यह आंकड़े भली भांति तुलना योग्य हैं। समीक्षा में उम्मीद की गई है कि मध्यावधि में अर्थव्यवस्था 9 प्रतिशत की विकास दर पर लौट आएगी। निवेश में वृद्धि और निजी खपत, मांग अनुकूल रहने तथा नवंबर-दिसंबर में निर्यात में वृद्धि और प्रमुख ढांचागत क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार से इसके संकेत मिलते हैं। समीक्षा के अनुसार कृषि में हताशा का दौर बीतने के बाद धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार तथा जीडीपी अतिरिक्त 1 प्रतिशत की वृद्धि से भारतीय जीडीपी लगभग 8.5 प्रतिशत (0.25 प्रतिशत के धनात्मक और त्रऽणात्मक अंतर के साथ) बढऩे की संभावना है। अर्थव्यवस्था में संपूर्ण सुधार के साथ 2011-12 में 9 प्रतिशत की विकास दर हासिल हो सकती है। समीक्षा के अनुसार शहरी और ग्रामीण ढांचागत सुधार तथा शासन और प्रशासन में सुधार करने से भारत के लिए 2 अंकों की विकास दर हासिल करना संभव है और यदि उक्त सिफारिशों पर अमल किया गया तो अगले 4 वर्षों में यह विश्व की सबसे तेजी से बढत़ी हुई अर्थव्यवस्था बन सकती है।
वैश्विक आर्थिक मंदी से उबरी भारतीय अर्थव्यवस्था 9 प्रतिशत विकास दर की ओर अग्रसर
विशेष संवाददाता - 2010-02-25 11:00
नई दिल्ली: आज संसद में पेश आर्थिक समीक्षा 2009-10 के अनुसार अर्थव्यवस्था वैश्विक आर्थिक मंदी से उबर रही है और यह 9 प्रतिशत की विकास दर हासिल करने की ओर अग्रसर है।