इस तरह के परिवेश में देश की अधिकांश जनसंख्या दैनिक दिनचया्र्र के तहत सिमटी हुई वैशाखियों के सहारे जिन्दगीं गुजार रही है। वर्तमान में इन्हें दो परिवेश संगठित एवं असंगठित क्षेत्र में विभाजित किया गया है। इन दोनों क्षेत्रों में बेहतर वेतन एवं सुविधाएं दिलाने की दिशा में विभिन्न तरह के संगठन बने हुये है जो आंदोलन कर सरकार पर दबाव बनाये रखते है। फिलहाल में सरकारी क्षेत्रों में सातवें वेतन आयोग लागू होने की चर्चा है जिसे लेकर कहीं कहीे उभरा असंतोष भी दिखाई दे रहा है। एक आकड़े के मुताबिक फिलहाल देश की कुल आबादी 132 अरब में 2.15 करोड़ की जनसंख्या सरकारी क्षेत्र में कार्यरत है जिनपर सातवां वेतन आयोग लागू है।
वर्तमान में हमारे देश में सरकारी एवं निजी क्षेत्रों में जिस दायरें में वेतन एवं सुविधाएं बढ़ी है। उसके अनुपात में बाजार दर कई गुना बढ़ गया है जहां आम आदमी का जीना दुर्लभ होता जा रहा है। एक आकड़े के मुताबिक वर्तमान में देश में वेतन लेने वाले प्रतिमाह लाख से लेकर 10 हजार प्रतिमाह तक वेतन पाने वाले है जिसमें अधिकांश अभी भी 10 हजार से कम पाने वाले भी है । जिनपर कोई वेतन आयोग नियमावली नहीं लागू है।
वेतन आयोग द्वारा हर 5 से लेकर 10 वर्ष के अंतराल में वेतन एवं सुविधाएं बढ़ा तो दी जाती है जिसके अनुरूप यहां कई गुणा बाजार दर बढ़ जाता है। यहां बाजार तो सभी के लिये एक ही है। अलग -अलग बाजार तो है नहीं जहां कम वेतन पाने वाले सामान ले सके । इस तरह के हालात का अल्प वेतन भोगी एवं दैनिक मजदूरी पाने वालों की जेब पर सर्वाधिक भार पड़ता है। जब कि सरकार ने इस तरह के लोग जो अल्प आय की श्रेणी में आते है उनके लिये सरकारी दर पर कम कीमत की लागत पर सब्सीडी देकर सार्वजनिक वितरण प्रणाली योजना लागू तो की पर यह योजना भी भ्रष्ट व्यवस्था के कारण ऊंट के मुंह में जीरा सदृृश साबित हुई।
इस योजना के तहत कुछ ही सामान उपलब्ध हो पाता ,अधिकांश सामान के लिये बाजार ही जाना पड़ता जिससे इस योजना से कोई खास लाभ नहीं मिला। सरकार हर बार बजट में एक हाथ लाॅली पाॅप तो दूसते हाथ झुन्झुना थमा जाती है पर इससे उभरे भूचाल को कैसे शांत कर पायेगी, टेढ़ी खीर है। इस पर मंथन होना चाहिए एवं इसके स्वरुप को इस तरह उजागर करना चाहिए जिससे आम आदमी को राहत मिल सके। यह तभी संभव है जब सरकार वेतन एवं सुविधाओं को बढ़ाने के वजाय मुनाफाखोरों पर नजर रखते हुए बाजार को नियंत्रित कर वास्तविक रूप में मंहगाई पर रोक लगा सके। देश में सरकारें बदलती रहती है पर परिस्थितियां ज्यों की त्यों है।
महंगाई की मार से आम जनता निन्तर परेशान है जब कि आने वाली हर सरकारें महंगाई से निजात दिलाने की बातें करती है। देश में माफियों एवं मुनाफाखोरों का दबदबा है जिसके हाथ बाजार है। जिसके वजह से किसानों के फसल के वास्तविक मूल्य कभी नहीं मिल पाते, जिससे वे कर्ज में सदा डुबे रहते। सरकार भी मुनाफाखोरों पर नियंत्रण करने के वजाय कर्ज देकर किसानों को आत्मनिर्भर बनने के ववयूद असहाय बनाती जा रही है। देश की अधिकांश जनसंख्या अभी भी बेरोजगार एवं अल्प आय वाली है जिसके लिये आज का बाजार महंगा सौदा है जहां वह किसी भी कीमत पर टिक नहीं सकता।
वोट की राजनीति ने देश को अपंग बनाती जहां जा रही है जहां बाजार को नियंत्रण में रखने के बजाय सुविधाएं बांटने का बंदरबांट खेल कई वर्षो से चल रहा है। जिसमें सभी राजनीतिक दल शामिल है। बाजार के भाव आज कई गुणे बढ़ गये पर तुष्टिकरण के अलावे बाजार में खड़े होने के संसाधन आने वाली सरकारें आज तक नहीं जुटा पाई। जिससे सरकारे बदलने के बावजूद भी आम जन की समस्याएं ज्यों की त्यों बरकरार है। इस पर मंथन होना चाहिए। आखिर कबतक राजनीतिक दल सत्ता के लिये आम जन को भुलावे में रखते रहेंगे। जबतक बाजार पर नियंत्रण नहीं होगा, महंगाई बढ़ती ही रहेगी।
देश में जब -जब भी चुनाव आते है, देश का अधिकांश अर्थ सŸाा पाने के लिये लोगों को मनाने, भुनाने में व्यय हो जाता है। चुनाव दिन पर दिन खर्चीलें होते जा रहे है। जिसका प्रभाव आम आदमी पर ही पड़ता है। चुनाव उपरान्त महंगाई का बढ़ना स्वाभाविक है। चुनाव के दौरान आम आदमी को लुभाने के लिये की गई घोषणाएं के तहत आये अर्थभार का प्रभाव बजट पर पड़ता है जिससे नये - नये टैक्स एवं इससे प्रभावित बाजार का भार आम जन पर ही पड़ता है। चुनाव उपरान्त जनप्रतिनिधियों के कोष में तो दिन दुनी रात चैगुनी वृृद्धि देखी जा सकती वहीं आम आदमी की जेब खाली होती जा रही है। सरकारें बदलती रही, महंगाई बढ़ती रही। आमजन को कहीं से भी राहत नहीं । सभी राजनीतिक दल सŸाा पाने के लिये आम आदमी को आजतक केवल भुलावे में रखते रहे है। पर बाजार पर किसी का नियंत्रण नहीं । आज भी बाजार मुनाफाखोरों के हाथ है, जहां से राजनीतिक दलों का बेनामी अवैध अर्थ कमाने से जुड़ा गोरखधंधा दिन पर दिन पग पसार रहा है।फिर आम आदमी को राहत कैसे मिले? (संवाद)
बाजारवाद की मार: आम आदमी को राहत कैसे मिले?
डाॅ. भरत मिश्र प्राची - 2018-05-11 09:35
देश में आये दिन वेतन एवं सुविधाओं को बढ़ाने की दिशा में निरंतर मांग चलती रहती है। वेतन एवं सुविधाओं को लेकर यहां सरकारी क्षेत्र में आयोग भी गठित है जो समय - समय पर इस दिशा में विचार कर नया वेतन एवं सुविधाएं को लागू करता रहता है। हमारे जनप्रतिनिधि जिन्हें पहले केवल भत्ते एवं सुविधाएं मिला करती अब वेतन भोगी हो चले है पर वेतन आयोग के दायरे में नहीं आते। वे स्वयं ही इसका निर्धारण करते है। देश में अधिकांश ऐसे क्षेत्र है जो निजी क्षेत्र में आते है, जिनका वेतन एवं सुविधाओं का निर्धारण मालिक करता है। अधिकांश ऐसे क्षेत्र भी है जहां कोई नियमावली नहीं लागू। जो कुछ दे दिया वहीं उनका वेतन है। सुविधाएं तो बिल्कुल नगण्य है।