यह दूसरी बार है, जब सुश्री ईरानी को फजीहत का सामना करना पड़ा है। इसके पहले उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय से हटा दिया गया था। दरअसल जब उन्हें मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था, तो लोग दंग रह गए थे, क्योंकि वह राजनीति में बिल्कुल नई थीं और उन्हें सार्वजनिक जीवन में रहने का तजुर्बा भी नहीं था।

लोगों को तब और भी आश्चर्य हुआ था, जब स्मृति ईरानी को मानव संसाधन विकास मंत्रालय जैसा अहम मंत्रालय दे दिया गया। यह मंत्रालय बहुत बड़ा है और इसे आमतौर पर सरकार में रहने का अच्छा खासा अनुभव रहने वाले लोगों को ही दिया जाता है। इस मंत्रालय में कभी नरसिंह राव हुआ करते थे और अनेक बार मुख्यमंत्री और राज्यपाल के पदों पर रहने का अनुभव प्राप्त करने बाद अर्जुन सिंह इस पद पर बैठे थे। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में यह मंत्रालय मुरली मनोहर जोशी को दिया गया था, जो उस समय अटल और आडवाणी के बाद भारतीय जनता पार्टी के तीसरे वरिष्ठ नेता थे।

जाहिर है, स्मृति ईरानी को मानव संसाधन मंत्रालय दिए जाने के बाद नरेन्द्र मोदी की पसंद और समझ को लेकर भी सवाल उठने लगे। मंत्री बनने के बाद स्मृति ईरानी ने वहां जो कुछ किया, इससे यह साफ हो गया कि उस पद के काबिल वह थी भी नहीं। उनकी शैक्षणिक योग्यता को लेकर भी सवाल उठे। अलग अलग निर्वाचन पत्र दाखिल करते समय उन्होंने अपनी शैक्षिक योग्यता को लेकर अलग अलग जानकारियां दी थीं। विवाद उठने के बाद वह यह साबित नहीं कर पाई कि उन्होंने कहां तक की पढ़ाई की है।

यह तो उनकी शैक्षणिक योग्यता की बात हुई। मंत्री के रूप में काम करने की उनकी योग्यता पर भी सवाल खड़े होने लगे। हैदराबाद विश्वविद्यालय के एक दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या से उनका नाम जुड़ा। एक छात्र को प्रताड़ित करने के लिए उन्होंने अपने मंत्रालय के अलग अलग अधिकारियों से आधा दर्जन से ज्यादा चिट्ठियां जारी करवाकर उसे होस्टल से निकलवा दिया था। उसकी छात्रवृति भी रुक गई थी, जिससे परेशान होकर उसने आत्महत्या कर ली थी। उसके बाद वहां एक बड़ा छात्र आंदोलन चलने लगा।

स्मृति ईरानी ने विश्वविद्यालयों में ऐसे माहौल पैदा करने शुरू कर दिए थे, जिनसे देश भर के विद्यालयों में छात्र आंदोलित होने लगे। इसके कारण सरकार की बदनामी होने लगी। प्रधानमंत्री द्वारा उन्हें रोहित वेमूला की आत्महत्या के बाद ही हटा दिया जाना चाहिए था, लेकिन उस समय तक प्रधानमंत्री ने उन्हे हटाना उचित नहीं समझा। लेकिन बाद में उन्हें वहां से खिसका कर कपड़ा मंत्रालय मंे भेज दिया, जहां विवाद की संभावना कम होती है।

वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति के बनने के बाद सूचना प्रसारण मंत्रालय का भार सुश्री ईरानी को दे दिया गया। यानी उन्हें एक और मौका मिला कि वे अपनी काबिलियत को साबित करें, लेकिन एक बार फिर बड़ी जिम्मेदारी मिलने के बाद वह एक के बाद एक उसी तरह गलतियां करने लगीं, जो मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में कर रही थीं। उन्होंने पीआईबी से मान्यता प्राप्त पत्रकारों पर नियंत्रण करने की कोशिश कर दीं और एक अधिसूचना जारी कर दी कि फेक खबर देने वाले पत्रकारों की मान्यता समाप्त कर दी जाएगी। देखने और सुनने में यह अधिसूचना अच्छी लगती है कि झूठी खबर देने वाले पत्रकारों को पत्रकार ही क्यों माना जाए, लेकिन सवाल यह है कि कौन खबरें झूठी हैं और कौन सच्ची, इसका फैसला पीआईबी या सूचना प्रसारण मंत्रालय कैसे कर सकता? जाहिर है, इसका उद्देश फेक खबर का रुकवाना नहीं, बल्कि पत्रकारों को धमका कर रखना था।

लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जल्द ही हस्तक्षेप कर सुश्री ईरानी से वह अधिसूचना वापस करवा दी। प्रधानमंत्री की ओर से सुश्री ईरानी को मिली एक चेतावनी जैसी थी, लेकिन उसे भी उन्होंने नजरअंदाज कर दिया। उसके बाद उन्होंने एक ऐसा काम कर दिया, जिससे मोदी सरकार ही शर्मसार नहीं हुईं, बल्कि राष्ट्रपति के सम्मान को भी झटका लगा। मामला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के वितरण का था। पिछले 64 सालों से वे पुरस्कार राष्ट्रपति के हाथों से होते हैं। इस बार भी निमंत्रण पत्र में पुरस्कार विजेताओं को यही कहा गया था कि उन्हें राष्ट्रपति के हाथ से ही पुरस्कार मिलेंगे, लेकिन जब वे पुरस्कार लेने के लिए दिल्ली पहुंचे तो उन्हें कहा गया कि 11 को छोड़कर अन्य लोगों को पुरस्कार स्मृति ईरानी देंगी। अधिकांश पुरस्कार विजेताओं ने इसे अपना अपमान माना। तो फिर इसके लिए राष्ट्रपति को ही जिम्मेदार बता दिया गया कि उनके पास ज्यादा समय नहीं है इस समारोह के लिए, क्योंकि वे अन्य कामों में व्यस्त हैं।

जबकि सच्चाई यह थी कि राष्ट्रपति ने एक पत्र लिखकर सभी मंत्रालयों को कहा गया था कि जहां उनकी संवैधानिक बाध्यता नहीं है, वहां वे किसी भी सरकारी समारोह में एक घंटा से ज्यादा का समय नहीं देंगे। राष्ट्रपति के उस आदेश का फायदा उठाते हुए स्मृति ईरानी ने खुद ही पुरस्कार देने का फैसला कर डाला। राष्ट्रपति को यह नहीं बताया गया कि यह पिछले 64 साल से चली आ रही परंपरा है कि राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार राष्ट्रपति ही देते हैं। पुरस्कार पाने वाले को भी यह समय रहते नहीं बताया गया कि उन्हें पुरस्कार राष्ट्रपति के हाथों नहीं मिलेगा। इस तरह दोनों को स्मृति ईरानी ने अंधेरे में रखा। इसके कारण सिनेमा की दुनिया के करीब 55 लोगों ने पुरस्कार वितरण समारोह का बहिष्कार ही कर दिया। इससे राष्ट्रपति की प्रतिष्ठा भी धूमिल हुई और संदेह यह गया राष्ट्रपति के कारण उनको अपमानित होना पड़ा है, जबकि सच यह है कि यदि इच्छा होती, तो एक धंटे के अंदर ही राष्ट्रपति के हाथों सारे पुरस्कार वितरित करवाए जा सकते थे। लेकिन लगता है कि स्मृति ईरानी को खुद शौक था कि पुरस्कार वे ही वितरित करें।

अपमानित राष्ट्रपति ने स्मृति ईरानी की शिकायत प्रधानमंत्री से ही। उसके बाद प्रधानमंत्री द्वारा उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से हटाया जाना तय था और वे हटा भी दी गइ्र्रं, लेकिन सवाल यह उठता है कि वे अभी भी मोदी कैबिनेट में क्यों हैं? उन्हें तो कपड़ा मंत्री के पद से भी हटा दिया जाना चाहिए। (संवाद)