भाजपा के घोषणा पत्र में जो वायदे किए गए थे उनमें हर साल दो करोड युवाओं को रोजगार, किसानों को उनकी उपज का समर्थन मूल्य लागत से दोगुना, कर नीति में जनता को राहत देने वाले सुधार, विदेशों में जमा कालेधन की सौ दिनों के भीतर वापसी, भ्रष्टाचार के आरोपी सांसदों-विधायकों के मुकदमों का विशेष अदालतों के जरिए एक साल में निबटारा, महंगाई पर प्रभावी नियंत्रण, गंगा तथा अन्य नदियों की सफाई, देश के प्रमुख शहरों के बीच बुलेट ट्रेन का परिचालन, जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 का खात्मा, कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी, आतंकवाद के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति, सुरक्षा बलों को आतंकवादी और माओवादी हिंसा से निबटने के लिए पूरी तरह छूट, सेना की कार्य स्थितियों में सुधार, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, समान नागरिक संहिता, गुलाबी क्रांति यानी गोकशी और गोमांस के निर्यात पर प्रतिबंध, देश में सौ शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में तैयार करना आदि प्रमुख वायदे थे, जो पिछले चार साल के दौरान सिर्फ छलावा ही साबित हुए हैं। इनमें से कई वायदे तो ऐसे हैं जिनका जिक्र तक सरकार की ओर से पिछले चार सालों के दौरान नहीं किया गया है।
कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के दस साल में खासकर आखिरी के दो-ढाई सालों में छाए घोटालों और भ्रष्टाचार के घटाटोप और महंगाई की मार से त्रस्त हर वर्ग के लोगों के मन में भाजपा के उपरोक्त वायदों ने एक उम्मीद जगाई थी। प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे नरेंद्र मोदी आजाद भारत के सबसे खर्चीले अपने चुनाव अभियान के दौरान अपनी वाक्पटुता और मीडिया के अभूतपूर्व प्रायोजित समर्थन से लोगों के मन में यह बात बैठाने में कामयाब हो गए थे कि उन्होंने मुख्यमंत्री तौर पर अपने बारह वर्षीय कार्यकाल में गुजरात को नंदनवन में तब्दील कर दिया है। उनका दावा था कि गुजरात मॉडल के जरिए ही वे देश की भी तस्वीर और तकदीर बदल देंगे। लोगों ने उनके दावों और वायदों पर यकीन करते हुए भाजपा को स्पष्ट बहुमत दिया। लगभग तीन दशक बाद केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी।
इन चार वर्षों के दौरान मोदी सरकार ने जो भी काम किए वे या तो अपने घोषणा पत्र से परे हैं या फिर ठीक उसके उलट। उसने कई ऐसे कामों को भी जोर-शोर से आगे बढाया है जो यूपीए सरकार ने शुरू किए थे और विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने उनका तीव्र विरोध किया था। मनरेगा के बजट में बढोतरी, आधार कार्ड की हर जगह अनिवार्यता, जीएसटी के रूप में नई कर व्यवस्था पर अमल, विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी आदि ऐसे ही कामों में शुमार हैं।
रुपए की गिरती कीमत पिछले लोकसभा चुनाव में एक बडा मुद्दा था। नरेंद्र मोदी हर चुनावी सभा में रुपए की गिरती कीमत की तुलना सरकार की साख और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की उम्र से करते हुए मजाक उडाया करते थे। लेकिन मोदी के सत्ता में आने के बाद से अब तक रुपया संभला नहीं है और इस समय तो वह डॉलर के मुकाबले अपने सबसे निम्न स्तर पर है। पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस और खाद्यान्न समेत रोजमर्रा के उपयोग की सभी आवश्यक चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं।
विमुद्रीकरण यानी बडे नोटों का चलन बंद कर नए नोट जारी करने को सरकार अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर अपनी सबसे बडी कामयाबी के तौर पर प्रचारित कर रही है लेकिन वास्तविकता यह है कि विमुद्रीकरण से न तो काला धन बाहर आ पाया है, न जाली मुद्रा चलन से बाहर हुई है और न ही आतंकवादी-नक्सलवादी हिंसा की घटनाओं में कमी आई है, जैसा कि विमुद्रीकरण का औचित्य प्रतिपादित करते हुए सरकार की ओर से दावा किया गया था।
विमुद्रीकरण के बाद न सिर्फ औद्योगिक उत्पादन के बल्कि कृषि क्षेत्र में उत्पादन के आंकडे भी निराश करने वाले हैं। निर्यात के क्षेत्र में गिरावट का सिलसिला लगातार जारी है। प्रधानमंत्री दुनियाभर में घूम-घूम कर विदेशी निवेशकों को लुभावने वायदों के साथ भारत आने का न्योता दे चुके हैं लेकिन विदेशी निवेश की स्थिति कहीं से भी उत्साह पैदा करने वाली नहीं है। उलटे शेयर बाजार में लगी विदेशी पूंजी का भी बडे पैमाने पर तेजी से पलायन हो रहा है। बडे कारपोरेट घरानों की बेईमानी और बदनीयती के चलते सार्वजनिक क्षेत्र के कई बैंक दिवालिया होने की कगार पर हैं। कृषि क्षेत्र की स्थिति पहले से बदतर हुई है। किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने के लिए कोई ठोस नीति बनाने में सरकार अभी तक नाकाम रही है। किसानों के आत्महत्या करने का सिलसिला न सिर्फ जारी है बल्कि उसमें पहले से तेजी आई है।
विदेश नीति के मोर्चे पर भी सरकार के खाते में प्रधानमंत्री की चमक-दमक भरी विदेश यात्राओं के अलावा कुछ खास दिखाने को नहीं है। जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान को लेकर भी सरकार बुरी तरह दिशाहीनता की शिकार रही है। बिना निमंत्रण के प्रधानमंत्री की औचक पाकिस्तान यात्रा और जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ सरकार बनाने के भी लगातार नकारात्मक नतीजे ही सामने आ रहे हैं। नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम के उल्लंघन की घटनाओं में पिछले चार सालों में रिकार्ड बढोतरी हुई है। नक्सली हिंसा में मरने वाले सुरक्षा बलों के जवानों और आम नागरिकों की संख्या में भी मोदी सरकार के पिछले 48 महीनों में बढोतरी हुई है।
भाजपा के घोषणा पत्र में वादा किया गया था कि सत्ता में आने पर वह हर साल दो करोड लोगों के रोजगार का सृजन करेगी, लेकिन वास्तविकता यह है कि इस मोर्चे पर मोदी सरकार बुरी तरह नाकाम रही है। रोजगार के नए अवसर पैदा करने की दर पिछले नौ सालों के न्यूनतम स्तर पर है। यानी पूर्ववतीह्म यूपीए सरकार से वह बहुत पीछे है। जहां एक तरफ केंद्र सरकार नई नौकरियां तैयार नहीं कर पा रही है वहीं देश में बहुत बड़े वर्ग को रोजगार देने वाले आईटी सेक्टर में हजारों युवाओं की छंटनी हो रही है। आईटी सेक्टर पर नजर रखने वाली संस्थाओं के अनुसार भारत के आईटी सेक्टर मे सुधार की निकट भविष्य में कोई संभावना नहीं दिख रही है।(संवाद)
वादाखिलाफी और नाकामी के चार साल
घोषणा पत्र की तो अब चर्चा भी नहीं की जाती है
अनिल जैन - 2018-05-28 11:22
भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में जारी अपने घोषणा पत्र को अपना संकल्प पत्र बताते हुए वादा किया था कि सत्ता में आने पर वह अपने इस संकल्प पत्र पर अमल के जरिए देश की तकदीर और तस्वीर बदल देगी। अब जबकि केंद्र में भाजपा की सरकार के चार साल पूरे हो चुके हैं तो लाजिमी है कि घोषणा पत्र के बरअक्स उसके कामकाज की समीक्षा हो। भाजपा के घोषणापत्र का सूत्र वाक्य था- ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ और रास्ता होगा- ‘सबका साथ-सबका विकास।’