अपने पिताजी की तरह नीतीश कुमार वैद्य तो नहीं हैं, लेकिन जिस क्षेत्र में वे हैं वहां की नस समझना वे बखूबी जानते हैं और कमजोर नस को पकड़कर अपना लाभ उठाते हैं और राजनीति में सफलता भी पाते हैं। इस बार भाजपा की कमजोर नस उनके हाथ में है। पिछले दिनों हुए उपचुनावों में भाजपा की हार हुई। आज वह कमजोर स्थिति में है और अपने राजनैतिक भविष्य को लेकर भी सशांकित है। 2019 में एक बार फिर से सत्ता में आने की जो उसकी उम्मीद थी, वह पहले जैसी मजबूत नहीं है। पहले उसे लगता था कि सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर भी वह सत्ता में आ सकती है, लेकिन जिस तरह से कर्नाटक संकट के बाद विरोधी पार्टियां उसके खिलाफ एकजुट हो रही है, उससे उसकी स्थिति वास्तव में खराब हो गई है और वह अपने सहयोगियों को नाराज करने का खतरा नहीं उठा सकती।

आंध्र के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू पहले ही भाजपा का साथ छोड़ चुके हैं। शिव सेना अभी भी उसके साथ गठबंधन में है, लेकिन उसने घोषणा कर रखी है कि अगला चुनाव वह भाजपा के साथ गठबंधन करके नहीं लड़ेगी। पालघर के उपचुनाव में उसे भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए थे। शिवसेना का उम्मीदवार हार गया और उसके बाद तो शिवसेना और भी उबल रही है। वह महाराष्ट्र की विपक्षी पार्टियों के साथ तालमेल कर चुनाव लड़ने की बात भी कर रही है। यदि ऐसा वहां संभव हो जाता है, तो फिर भाजपा को एक एक सीट जीतने के लिए काफी मशक्कत करनी होगी और भारी पराजय का सामना करना पड़ेगा।

नीतीश कुमार की नजर इन सब राजनैतिक घटनाओं पर है और अब उन्होंने अपनी तरफ से भाजपा के ऊपर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। सबसे पहले तो उन्होंने विशेष राज्य का मुद्दा उठा दिया। उनको पता है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल ही नहीं सकता। यूपीए के शासन काल में भी ऐसा संभव नहीं हो पाया था और एनडीए के काल में भी ऐसा नहीं हो पाएगा। लेकिन सबकुछ जानते हुए इस मुद्दे को उठाकर वह भारतीय जनता पार्टी और खासकर नरेन्द्र मोदी को यह बताना चाहते हैं कि वे उनके सामने लाचार नहीं हैं।

विशेष राज्य का मुद्दा तो उन्होंने उपचुनावों के पहले ही उठा दिया था। कर्नाटक की 55 घंटों की सत्ता से भाजपा जैसे ही हटी, नीतीश कुमार ने विशेष राज्य का मुद्दा उठा दिया था। कहते हैं कि उसी समय कांग्रेस के कुछ नेता उनसे मिले थे और महागठबंधन में वापसी की अपील की थी। नीतीश कुमार को लगा कि शायद महागठबंधन में फिर से वापसी संभव है। इसलिए उन्होंने विशेष राज्य का मसला उठा डाला।

अब उससे आगे बढ़की नीतीश कुमार ने राजग मंे अपने महत्व के सवाल को भी खड़ा कर दिया है। उनके जनता दल (यू) ने एक बैठक कर प्रस्ताव पारित कर दिया कि बिहार में नीतीश कुमार ही राजग का चेहरा होंगे। यदि मुख्यमंत्री होना बिहार में राजग का चेहरा होना है, तो वे तो पहले से ही चेहरा हैं। लोकसभा चुनाव नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए ही राजग लड़ेगा, तो जाहिर है, बिहार सहित देश भर में मोदी की राजग का चेहरा होंगे। तो फिर नीतीश इस तरह की मांग क्यों उठा रहे हैं?

दरअसल नीतीश कुमार भाजपा के साथ अपने भविष्य को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। वे कई बार कह चुके हैं कि लोकसभा और विधानसभा का चुनाव वे एक साथ चाहते हैं। इसके पीछे का मुख्य कारण यह है कि यदि दोनों चुनाव एक साथ हुए, तो टिकट के बंटवारे मे नीतीश की चल जाएगी। यदि सिर्फ लोकसभा का चुनाव हुआ, तो नीतीश के जनता दल को पांच से ज्यादा सीटें नहीं मिल पाएंगी।

बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं, जिनमें से 31 राजग के पास पहले से ही था। जनता दल(यू) के दो सांसदों के साथ राजग ही सदस्य संख्या 33 हो गई है। शेष 7 सीटों पर नीतीश कुमार भाजपा के साथ मोलभाव कर सकते हैं और उनमें से कुछ सीटें ऐसी हैं, जिन्हें भारतीय जनता पार्टी छोड़ सकती। लोकसभा चुनाव के बाद त्रिशंकु सदन की स्थिति में नीतीश कुमार भाजपा का साथ छोड़ भी सकते हैं। इसके कारण भी भाजपा लोकसभा में उनको ज्यादा सीटें देने से परहेज रखेगी।

पर यदि विधानसभा का चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही हुआ, तो नीतीश कुमार लोकसभा में कम सीटें मांगने की एवज में विधानसभा में ज्यादा सीटों की मांग कर सकते हैं। 2010 के हुए चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को भाजपा ने 139 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने दिया था, जबकि खुद वह 103 सीटों पर ही लड़ी थी। नीतीश कुमार चाहेंगे कि उसी फाॅर्मूले के आधार पर आगामी विधानसभा चुनाव में भी टिकट का वितरण हो।

लेकिन यदि लोकसभा का चुनाव पहले हो जाता है और विधानसभा का चुनाव बाद में तब भाजपा को दबाव में लाना नीतीश के लिए कठिन हो जाएगा। लोकसभा की ज्यादा सीटों पर लड़ने की ख्वाहिश में भाजपा विधानसभा की ज्यादा सीटें नीतीश के लिए छोड़ सकती है, लेकिन यदि विधानसभा चुनाव बाद में हुए, तो भारतीय जनता पार्टी अपनी ताकत और जनाघार के आधार पर ज्यादा सीटों पर खुद चुनाव लड़ना चाहेगी। यह कारण है कि नीतीश कुमार अभी ही सबकुछ स्पष्ट कर देना चाहते हैं। (संवाद)