इस व्यवस्था का लाभ उठाकर अधिकांश प्रायः सभी के सभी झोपड़ी से उठकर महल तक पहुंच गये और देश की आम जनता टैक्स के भार तले दबती गई। महंगाई रोज पर रोज बढ़ती रही और जनता के चुने जनप्रतिनिधि अपना घर भरते रहे। माफियातंत्र प्रभावित लोकतांत्रिक व्यवस्था में सर्वाधिक लूट को स्थान मिला जिससे देश भर में भ्रष्टाचार बड़े पैमाने पर फैल गया जिसे रोक पाना आज मुश्किल हो रहा है। माफियाओं को अपने साथ रख प्रायः सभी राजनतिक दल भ्रष्टाचार मिटाने की बात तो करते है पर बिल्ली की रखवाली में चुहे कैसे सुरक्षित रह पायेंगे?
कालाघन उगाही करने वाले जब साथ में हो तो देश में ही कालाधन रोक पाना मुश्किल है, फिर विदेशों से कालाधन कैसे वापिस आयेगा ? बात गले नहीं उतरती । आज जो जनप्रतिनिधि जहां भी है , अपने बारे में पहले सोचता है। सभी राजनीतिक दल ऐन - केन प्रकारेण सŸाा हथियाने के लिये बेमेल संगम से लेकर बेमेल सौदेबाजी करने को तैयार बैठे है। खरीद - फरोख्त इस व्यवस्था का प्रमुख भाग बन चुका है। बहुमत पाने के लिये हर प्रकार के हथकंडे अपनाने में कोई किसी से पीछे नहीं। इस अनैतिक व्यवस्था को कायम करने में सभी प्रकार की नैतिकता ताख पर रख दी जाती है। राजनीतिक दल को जो सर्वाधिक चंदा दे सके , चुनाव में सर्वाधिक खर्च करने की क्षमता रखने के साथ - साथ चुनाव में जीत किसी भी प्रकार दर्ज करा सके , ऐसे जनप्रतिनिधि की तलाश प्रायः सभी राजनीतिक दल को रहती है , चाहे उसका आचरण कैसा भी हो, फिर व्यवस्था में किस प्रकार सुधार हो ?
सŸाा बदलती रहती है पर वहीं ढाक के तीन पात जनता के हाथ लगते है। सभी जुमले बाजी करते है, एक दूसरे को गलत ठहराते है , परिवर्तन लाने की बात करते है पर सभी एक जैसे कारनामें करते है। सŸाा पाने के लिये एक जैसी हरकतें करते है। राष्ट्रपति ,राज्यपाल से लेकर लोकसभा अध्यक्ष ,विधान सभा अध्यक्ष, जैसे सर्वोपरि सम्मानित पदों पर अपने चहेतों को बैठाते है जिनसे अपने मनमुताबिक कार्य करवा सके। देश की सरकारें बदलती रही पर यह प्रक्रिया आजतक नहीं बदली। देश का कोई भी राजनीतिक इस परम्परा को तोड़ नहीं पाया।
किसी ने भी यह प्रयास नही किया कि इन सम्मानित पदों पर देश का गैर राजनतिक व्यक्ति बैठे जो निष्पक्ष होकर अपना निर्णय ले सके। देश का कोई भी राजनीतिक दल दलदल में फंसे, अपराधी, हत्या बलात्कार, गबन के मामले में संलग्न, जेल में बंद को अपना प्रतिनिधि न बनाने को तैयार नहीं । इस तरह के उभरे हालात में व्यवस्था में कैसे सुधार हो, विचारणीय पहलू है। वर्तमान केन्द्र की भाजपा सरकार जोर - शोर से आम जनता से पूछ रही है कि कांग्रेस सरकार ने आज तक क्या किया ? भाजपा सरकार खुद ही बतायें कि अपने शासन काल में कांग्रेस नीतियों से अलग हटकर क्या किया ? राष्ट्रपति ,राज्यपाल से लेकर लोकसभा अध्यक्ष ,विधान सभा अध्यक्ष, जैसे सर्वोपरि सम्मानित पदो ंके मामलें में कांग्रेस से अलग हटकर क्या किया ? चुनाव के दौरान सŸाा पाने के लिये कांग्रेस से अलग हटकर कौन से नया गुल खिलाया।
भ्रष्ट आचरण वाले जनप्रतिनिधियों के बीच भ्रष्टाचार मुक्त भारत कैसे बन सकता है ? इस प्रश्न का जबाब क्या वर्तमान भाजपा सरकार के पास है जो कांग्रेस मुक्त भारत का सपना मन में सजोये बैठी है। जो विदेशों से कालाधन वापिस लाने की बात कर रही है। इस तरह के जुमलेबाजी से आज जनता परेशान हो चुकी है। देश की आवाम समस्याओं से निदान चाहती है। महंगाई पर नियंत्रण चाहती है। टैक्स के बढ़ते दर से निजात चाहती है। देश के युवा वर्ग को कर्ज नहीं रोजगार के लिये उपयुक्त संसाधन चाहिए । किसानों को कर्ज नहीं अपने फसलों का उचित दाम चाहिए। बाजार से बिचैलियों की भूमिका से आम जन निजात पाना चाहता है ।
इसीलिये देश की आवाम सŸाा बदलती रहती है। बड़ी उम्मीदों के साथ देश की आवाम ने केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृृत्व में भारी बहुमत देकर भाजपा की सरकार गठित की पर उसे अतंतः निराशा ही हुई। आम जन को न तो बाजार की बढ़ती महंगाई से राहत मिली न देश के युवाओं को रोजगार के लिये नये उद्योग । सकरकार की कौशल रोजगार योजना बैंक से कर्ज देने के सिवाय देश में कितना रोजगार सृृजित कर पाई। सरकार की जीएसटी से जीवन रक्षक दवाईयों से लेकर आम जनजीवन की उपयोग में आने वाली हर बस्तुएं महंगी हो गई। नोटबंदी योजना के दौरान कालाधन से होने वाली काली कमाई एवं छोटी - छोटी बचत कर बचाने वाले आम जनजीवन को अपने ही रकम के लिये उभरी परेशानियों के दृृश्य अभी तक आंखों से ओझल नहीं हो पाये फिर भी वर्तमान सरकार अच्छे दिन आने की वकालत कर रही है।
देश का कोई भी राजनीतिक दल भ्रष्ट आचरण वाले जनप्रतिनिधियों को अपने बीच से अलग नहीं करना चाहता । फिर इस तरह के उभरते परिवेश में भ्रष्टाचार मुक्त भारत कैसे बन सकता । यह विचारने योग्य पहलू है। (संवाद)
भ्रष्टाचार मुक्त कैसे बने भारत
जो सत्ता में आते हैं, वही भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं
डाॅ. भरत मिश्र प्राची - 2018-06-25 08:54
देश जब से आजाद हुआ तब से लोकतंत्र की बागडोर सुविधाभोगी लोगों के हाथ आ गई, जहां राष्ट्रहित से स्वहित सर्वोपरि होता गया। दिन पर दिन चुनाव महंगे होते गये। सŸाा पाने के लिये हर तरह के अनैतिक हथकंडे प्रायः सभी राजनीतिक दलों द्वारा अपनाये जाने लगे। जिससे लोकतंत्र पर माफियाओं का सम्राज्य घीरे - घीरे स्थापित होने लगा । अर्थबल एवं बाहुबल प्रभावित राजनीतिक प्रक्रिया ने भारतीय लोकतंत्र की दशा एवं दिशा ही बदल दी जहां लूटतंत्र का सम्राज्य स्थापित हो गया। पंचायती राज्य से लेकर विधायिका एवं कार्यपालिका तक शामिल सभी अपने - अपने तरीके से देश के माफियाओं के संग मिलकर देश को लुटने लगे, जिससे देश में अनेक प्रकार के घोटालें उजागर हुए ।