राज्य में निषेध कानून के कुछ सबसे कड़े प्रावधानों को हटाने का निर्णय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ एक बैठक में सिर्फ एक दिन पहले घोषित किया था। हालांकि नीतीश ने स्पष्ट किया कि सरकार केवल लोगों की उस शिकायत को दूर करने के लिए कानून में संशोधन कर रही है कि अधिकारी 2016 अधिनियम का दुरुपयोग कर रहे थे।
एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के कहने यह प्रावधान कानून में किया गया कि शराब के साथ पकड़े गए व्यक्ति के परिवार के सभी सदस्यों की गिरफ्तारी हो और उन पर मुकदमा चले। जबकि नीतीश ने प्रचार हासिल करने के लिए यह कदम उठाया और दूसरी ओर पुलिसकर्मियों ने इसका इस्तेमाल पैसे कमाने के लिए किया। खासकर गरीबों से पैसे कमाये गये। कानून के तहत गिरफ्तार लोगों पर एक नजर डालें तो यह स्पष्ट होगा कि कोई भी पैसा वाला व्यक्ति इस कानून के तहत गिरफ्तार नहीं किया गया। यहां तक कि मध्यम वर्ग के लोगों को भी इस कानून के तहत गिरफ्तार नहीं किया गया। संदेश स्पष्ट है कि पैसे वालों को पैसे लेकर छोड़ दिए गए और जो पैसे नहीं दे सकते थे, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
पुलिस छापे और गिरफ्तारी कर रही थी। लेकिन यह सिर्फ दिखाने को था। अगर पुलिस वास्तव में शराबखोरी रोकने के लिए उत्सुक थी, तो उन्होंने बिहार में शराब आयात करने की अनुमति नहीं दी होती। दिलचस्प बात यह है कि, नशाबंदी के बाद राज्य में प्रतिदिन बड़ी मात्रा में दारू जब्त किए गए।
अधिनियम 5 अप्रैल, 2016 को जारी किया गया था और कानून के प्रावधानों के तहत लगभग 1.56 लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया था। यह आपातकाल के वर्षों के दौरान गिरफ्तार 1.1 लाख लोगों की तुलना में काफी अधिक है। पुलिस ने लगभग एक लाख प्राथमिकी दायर की है। इस बड़ी संख्या में बंदियों में से, अब तक सरकार ने केवल 30 लोगों को दोषी ठहराने में सफलता हासिल की है। सरकार शेष मामलों को संभालने के लिए लगभग 50 अभियोजकों को किराए पर लेने पर विचार कर रही है।
अपराध पीडित बिहार में नीतीश को बड़ी संख्या में नए अपराधियों को जोड़ने का श्रेय दिया जाना चाहिए। वास्तव में उन्होंने अपराधियों की एक नई नस्ल बनाई है। न केवल बिहार के लोग बल्कि नौकरशाहों का एक प्रमुख वर्ग इस कानून को तालिबानी कानून के रूप में वर्णित करता है। जब 2005 में पहली बार नीतीश सत्ता में आए, तो उन्होंने उदारता से शराब लाइसेंस दिया था और हजारों शराब की दुकानें खोली गई थीं। उसके बाद उन्होंने अपनी कार्रवाई को उचित ठहराया था कि लड़कियों के लिए साइकिल, स्कूल की पोशाक और किताबें खरीदने का खर्च शराब से प्राप्त राजस्व से उठाया गया था।
अचानक उन्हें अपनी खराब राजनीतिक छवि का एहसास हुआ और शराब पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव के साथ बाहर आया। संयोग से उस कानून के पहले पीड़ित जहानाबाद के दो दैनिक मजदूर भाई थे। उन्हें 5 साल के लिए जेल की अवधि से सम्मानित किया गया और उन्हंे 1 लाख रुपये का जुर्माना भरने को कहा गया। इस कानून के तहत गिरफ्तार किए गए लगभग 99 प्रतिशत लोग कमजोर वर्गों से संबंधित थे। कानून ने पुलिस को उस व्यक्ति के घर और वाहन को जब्त करने का अधिकार दिया, जहां शराब मिली थी। हाल ही में पटना उच्च न्यायालय ने राज्य पुलिस की वाहनों को जब्त करने के लिए खिंचाई की, जिसमें शराब मिली, और कहा कि अधिनियम के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इससे पहले, उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार से संबंधित बस जब्त करने के लिए पुलिस को फटकारा था। उसमें एक व्यक्ति शराब ले रहा था।
पटना समेत कम से कम छह जिलों में, अपराधी अनुसूचित जाति समुदाय (मुशहर और पासी) से संबंधित थे। यहां तक कि नीतीश के पार्टी के पुरुषों ने कहा कि राज्य में शराब की बिक्री और खपत पर प्रतिबंध ने सरकार को महादलित जातियों के बीच अलोकप्रिय बना दिया है, खासतौर पर उन लोगों में जो देशी शराब बेचकर अपनी आजीविका कमाने के लिए इस्तेमाल करते थे। नीतीश को विपक्षी और नागरिक अधिकार समूहों से बहुत आलोचना का सामना करना पड़ा था, जिन्होंने दलील दी थी कि इस कानून के तहत गिरफ्तार अधिकांश लोग बिहार के सबसे गरीबों में से थे और मामलों से बाहर निकलने में असमर्थ थे।
नीतीश ने अपने दुरुपयोग के फीडबैक का हवाला देते हुए कानून पर नरम होने की अपनी नवीनतम कार्रवाई को उचित ठहराया है। अपने आप वे ऐसा नहीं कर सकते थे, लेकिन शीर्ष भाजपा नेतृत्व ने पार्टी की राज्य इकाई के कहने पर इस मामले को उठाते हुए नीतीश को ऐसा करने के लिए बाध्य कर दिया। (संवाद)
भाजपा को खुश करने के लिए नशाबंदी पर नीतीश का यूटर्न
कमजोर वर्गों के लोगों को इस कानून से सबसे ज्यादा नुकसान
अरुण श्रीवास्तव - 2018-07-19 17:05
नशाबंदी कानून को कमजोर करने का निर्णय मंगलवार को कैबिनेट की बैठक में लिया गया था, लेकिन कुछ महीने पहले एक राष्ट्रीय नेता के निवास पर कुछ वरिष्ठ भाजपा नेताओं के साथ मिलकर इसका फैसला किया गया था। उस बैठक में भाग लेने वाले बीजेपी नेताओं ने मांग की कि सरकार निषेध कानून के प्रावधानों को कमजोर करे। उनकी धारणा थी कि वह कानून उनकी पार्टी के हित के लिए हानिकारक है।