हम याद करें , मंगल पांडे की कहानी जिसने निःस्वार्थ भाव से अंग्रेजों के विरूद्ध अलख जगा कर आजादी की जंग छेड़ दी। राम प्रसाद विस्मिल, भगत सिंह, आजाद आदि के त्याग एवं बलिदान की कहानी को इतना जल्दी कैसे भूल गये ? हम कैसे भूल गये सुभाष चंद्र को जिसने देश से बाहर आजाद हिन्द फौज का गठन कर आजादी की लड़ाई में अहम्् भूमिका निभाई । साथ ही बिहार प्रदेश की राजधानी पटना में अंकित उन अमर शहीदों को भी हम भूल बैठे जिन्होंने आजादी के झंडे को अंतिम सांस तक झूकने नहीं दिया। आज गांधी, बाल गंगाधर तिलक, के साथ - साथ देश की आजादी की जंग में सक्रिय भूमिका निभाने वाले अनेक गुमनाम शहीद हर भारतीय से पूछ रहे है , क्या भारत के इसी स्वरूप के लिये हम सब ने बलिदान दिया ? निश्चित रुप से आज यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है, जिसका हल हम सभी को ढ़ूढ़ना होगा ।
आज देश के हालात जो सामने है, किसी से अनभिज्ञ नहीं है। सत्ता बदलती रही पर देश की सुरक्षा, अस्मिता, दिन पर दिन खतरे में पड़ती जा रही है। देश के सर्वोच्य पद एवं घर की गरिमा दिन पर दिन धूमिल होती जा रही है। स्वतंत्रता उपरान्त स्वयंभू की प्रवृृत्ति आज इतनी बढ़ चली है कि राष्ट्रहित से स्वहित सर्वोपरि साफ -साफ दिखने लगा है। जबकि स्वतंत्रता पूर्व देश की आजादी की लड़ाई में सभी के दिल में राष्ट्रहित की भावना सर्वोपरि बनी हुई थी। फिर आज यह क्या हो गया ? आजादी मिलते ही हम इतने स्वार्थी हो गये कि आजाद कराने वालें अनेक गुमनाम शहीदों की कुर्बानियों को भूलकर उनके आदर्श सपनों को मटियामेट करते हुए देश की अस्मिता को भी दांव पर लगाते जा रहे है। भ्रष्टाचार, लूट - खसोट, आतंकवाद, महंगाई, बेईमानी एवं धोखाघड़ी आदि की घटनाएं दिन पर दिन बेहिसाब बढ़ती जा रही है, जिस पर कोई लगाम नहीं। जन सेवा का संकल्प लिये लोकतंत्र के आज जनप्रतिनिधि वेतनभोगी हो गये है जो अपनी सेवा का वेतन देश के अन्य वेतनभोगियों की तरह लेने लगे है।
हत्या, लूट, अपराध में लिप्त लोग हमारे जनप्रतिनिधि बनकर आज लोकतंत्र के पवित्र आंगन को अपने अलोकतांत्रिक आचरण से अपवित्र किये जा रहे है और हम इनका विरोध करने के वजाय अभिनंदन करते जा रहे है। देश के सम्मानित एवं सर्वोच्य परिसर के जो हालात है, वह सभी के सामने है। आज कोई संसद पर हमला कर रहा है तो कोई हमलावार को बचाने की कोशिश कर रहा है, तो कोई संसद में बाहुबल का खुला प्रयोग कर संविधान की धज्जियां उड़ा रहा है। आज देश फिर से फरेबियों के जाल में फंसता जा रहा है। जाली नोटों का गोरखधंधा इस तरह अपना पग पसार चुका है जिससे आज रिजर्व बैंक भी अछूता नहीं रहा। नकली सामानों एवं नकली दवाइयों की तो चारों ओर भरमार है। उद्योग धंधे तो बंद होते जा रहे है, रोजगार के नाम हर जगह लूट - खसोट की राजनीति पनाह ले रही है। न्याय की तलाश में आज भी लोग भटक रहे है जहां अंग्रेजों की ही नीतियां कायम है। अंग्रेज तो चले गये पर आज भी अंग्रेजियत हावी है जिसका खुला नजारा हर सरकारी कार्यालयों एवं हर संसदीय कार्यवाही में देखने को मिल सकता है। आज इसी कारण देश की संसद ही नहीं अनेक जगहों का स्वरुप भी विदेशी सा दिखाई देता है।
आजादी के उपरान्त देश में अपहरण, भ्रष्टाचार, बलात्कार, अनैतिकता के अनेक कदम दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। आतंकवाद से देश को चुनौतियां मिलने लगी हैं। देश के विकास स्तम्भ सरकारी, अर्द्धसरकारी संस्थायें सफेद हाथी बन चुके हैं। जो जहां है, वहीं अपने-अपने तरीके से देश को लूट रहा है । आजादी से पूर्व इस देश को विदेशियों ने लूटा। आजादी के बाद देश वाले लूट रहे हैं। फिर देशी-विदेशी, आजादी-गुलामी की परिभाषा इस संदर्भ में किस तरह परिभाषित हो पायेगी, विचार किया जाना चाहिए। जहां इस तरह के जनप्रतिनिधियों की संख्या लोकतंत्र में बढ़ती जा रही है। जहां आज आम जनता पर विभिन्न तरह के टैक्स के बोझ का दायरा बढ़ता जा रहा है। सुरसा की तरह बढ़ती जा रही महंगाई अनियंत्रित होती जा रही है वही अनेक लोग राजनीतिक छांव में अवैध रूप से धन बटोरने एवं राजनीतिज्ञों को सुख सुविधा के तमाम संसाधन जुटाने में तत्पर हैं। देश का सर्वोच्च पद भी स्वार्थ से प्रेरित अनैतिक राजनीति का शिकार बन चुका है। लोकतंत्र के इस सर्वोच्च पद पर भी राजनीतिक शिकंजा कसता नजर आ रहा है। हत्या, अपहरण, अवैध गतिविधियों में लिप्त आज लोकतंत्र का सम्मानित सांसद, विधायक है। जेल में बंद है, फिर भी सांसद है। जो जंगल में घूम रहे हैं, वे संसद में दिख रहे हैं। आखिर आजादी के बाद उभरे इस तरह के परिदृश्य के लिये कोैन जिम्मेवार है?
आजादी के बाद ही यह देश मुद््दों के बीच उलझता गया जहां सत्ता से जुड़ी राजनीति समा गई। जिसनें शहीदों के सपनों के भारत की काया ही बदल दी। जहां झांसे के बीच समाई राजनीति आमजनों को घोखा ही दे रही है। अब प्रश्न यह उभरता है,क्या देश की इन्हीं हालातों के लिये लाखों लोगों ने कुर्बानियां दी ? (संवाद)
शहीदों के सपनों के भारत की काया आज बदल गई है
आज राजनीति सिर्फ सत्ता हथियाने की राह बन गई है
भरत मिश्र प्राची - 2018-08-14 13:27
सन् 1857 से लेकर आजादी तक छिड़ी आजादी के जंग पर एक नजर डालें जहां देश की आजादी के लिये अनोखी जंग छिड़ गई थी। एक तरफ अंग्रेजों को छक्के छुड़ाने वाली प्रथम भारतीय नारी लक्ष्मी बाई तो दुसरी ओर जीवन के अंतिम पड़ाव पर पड़े बूढ़े शेर बाबू कुंवर सिंह की बाजुओं की ताकत के आगे निढ़ाल पड़े अंग्रेजी हुकूमत । साथ ही साथ देशभक्ति में सराबोर हुए आजादी के दिवानों का जत्था जिनकी कुर्बानियों के आगे अंग्रेजी हुकूमत को यहां से बिदा होना पड़ा।