कर्नाटक में इस सकारात्मक संकेत के साथ महागठबंधन का विस्तार करने के बारे में बिहार से मिल रहे संकेत भी स्वागतयोग्य है। रिपोर्टों से पता चलता है कि पूर्व जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार बेगूसराय निर्वाचन क्षेत्र में मौजूदा भाजपा सदस्य के खिलाफ महागठबंधन के आम उम्मीदवार हो सकते हैं। कुमार सीपीआई की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य हैं और यदि उन्हें उम्मीदवार के रूप में नामित किया गया है, तो इसका मतलब है कि भाजपा विरोधी गठबंधन को इस समय सीपीआई और संभवतः अन्य वाम दलों समेत विस्तारित किया जाएगा। सीपीआई और सीपीआई (एमएल) दोनों का बिहार में आधार रहा है। सीपीआई के पास राज्य में साठ, और सत्तर के दशक में लोकसभा में पांच के आसपास सदस्य हुआ करते थे। 1991 में भी इसके पांच सांसद वहां से निर्वाचित हुए थे।
बिहार राज्य सीपीआई आरजेडी और कांग्रेस के साथ चर्चा कर रही है और सीपीआई और अन्य वाम दलों सहित गठबंधन को बढ़ाने के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए। बीजेपी को 2014 के लोकसभा चुनाव में 40 में से 22 सीटें मिलीं लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान हालात में काफी बदलाव आए और अब उपचुनावों के परिणामों से का संकेत मिलता है कि महागठबंधन बढ़ता जा रहा है। जेडी (यू) के नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही के महीनों में अपनी छवि बहुत हद तक खराब कर ली है। आरजेडी के नेतृत्व में विस्तारित महागठबंधन के पास अगले लोकसभा चुनाव में 40 में से तीस सीटों को हासिल करने का मौका है। महागठबंधन की बिहार में जीत 2019 के चुनाव में बीजेपी की सीटों को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देगी।
कांग्रेस को मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीएसपी के साथ विधानसभा चुनावों में तालमेल बनाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। दोनों पक्षों के पास इस गठबंधन की सफल बनाने में जिम्मेदारी है। सीटों के विभाजन के संबंध में नेतृत्वों को अहंकार नहीं करना चाहिए। अगर लोकसभा चुनाव में बीजेपी को केंद्र से बाहर करना है, तो इन तीनों विधानसभा चुनावों को सेमीफाइनल मानकर कांग्रेस-बसपा गठबंधन को बड़ी जीत हासिल करनी होगी। उस जीत जीत से आगामी लोकसभा के चुनाव अभियान को गति मिलेगी और उसमें भी भाजपा को हराना आसान हो जाएगा।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उभरते हुए भाजपा गठबंधन में अन्य पार्टियों को समायोजित करने की अपनी इच्छा व्यक्त की है और वह कह रहे हैं कि बीजेपी को किसी भी कीमत पर पराजित करना होगा। इससे संकेत मिलता है कि विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में कांग्रेस को भाजपा विरोधी गठबंधन बनाने में और जिम्मेदारी साझा करनी है और देश की सबसे पुरानी पार्टी को यह सुनिश्चित करना है कि छोटे मतभेद भाजपा विरोधी संघर्ष को बाधित न करें।
भाजपा के पूर्व नेता और केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने शनिवार को कहा कि विपक्षी दलों को यह सुनिश्चित करने के लिए वचनबद्ध होना चाहिए कि वे हर निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के खिलाफ एक काॅमन उम्मीदवार दें। यह वांछनीय है लेकिन विभिन्न राज्यों में राजनीतिक रूप से शायद यह संभव नहीं हो। इसकी बजाय पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा वर्णित सूत्र कहीं अधिक व्यावहारिक है। कांग्रेस उन राज्यों में नेता होगी जहां यह भाजपा की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पार्टी के रूप में लड़ रही है। इसमें छोटी पार्टियों के साथ समायोजन होगा लेकिन आखिरकार जिम्मेदारी कांग्रेस के नेता की होगी। लेकिन उन राज्यों में जहां क्षेत्रीय दल शासक हैं, स्वाभाविक रूप से भाजपा विरोधी गठबंधन के नाम पर कांग्रेस के लिए जगह नहीं छोड़ेंगे। क्षेत्रीय पार्टियों के साथ वहां कांग्रेस का टकराव हो सकता है, लेकिन चुनाव के बाद कांग्रेस से गठबंधन करने के बारे में अभी से समझ बनाई जा सकती है, ताकि भारतीय जनता पार्टी 2019 में सत्ता में न आ सके।
यहां तक कि इस दो ट्रैक दृष्टिकोण के तहत 543 सीटों में से लगभग लगभग 400 सीटों पर आम विपक्षी उम्मीदवार की संभावना है। यदि 400 सीटों में बीजेपी के खिलाफ विपक्षी पार्टियों की कुल एकता संभव हो गई, तो इस बात पर विश्वास करने का हर कारण है कि विपक्षी इस 400 आंकड़े से 272 सीटों पर जीत हासिल कर सकते हैं। अन्य 140 सीटों सीटों को त्रिकोणीय संघर्ष हो सकते हैं। उनमें भी भाजपा विरोधी खेमे को सीटें मिलेंगी। जैसा कि शौरी ने समझाया कि विपक्ष को याद रखना चाहिए कि 31 प्रतिशत वोट मोदी ने 2014 में अपनी लोकप्रियता की ऊंचाई पर पाया था और आज उससे बहुत कम लोकप्रिय हैं। यदि विपक्ष केवल तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में मिलकर लड़े तो बीजेपी शासन का अंत हो जाएगा।
अभी तक, रुझान बताते हैं कि बीजेपी ओडिशा में कुछ सीटें और उत्तर पूर्व में कुछ और हासिल कर सकती है। बंगाल में, इसकी संख्या एक या दो अधिक हो जाएगी। लेकिन इन पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों से 87 सांसद आते हैं जबकि उन राज्यों में जहां बीजेपी ने 2014 के चुनाव में भारी जीत दर्ज की, उसे नुकसान भी उतना ही भारी होगा। वैसे यह इस बात पर भी निर्भर करता हैं कि कैसे भगवा नेतृत्व हिंदी भाषी राज्यों में एकजुट विपक्ष की चुनौती का सामना सकता है। दक्षिणी राज्यों में कर्नाटक के अलावा बीजेपी की अन्य राज्यों में ज्यादा ताकत नहीं है। केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में लोकसभा सीटों की कुल संख्या 102 है। 2014 के चुनाव में बीजेपी ने वहां चार सीटें जीती जिनमें से दो सीटें आंध्र प्रदेश में हैं, जहां तेलुगू देशम पार्टी के साथ उसका गठबंधन था, जो अब टूट चुका है। अब वह वहां दोनों सीटें खो सकती हैं।
राहुल के अलावा, नेतृत्व की प्रथम पंक्ति में ममता, स्टालिन, अखिलेश और मायावती को समान रूप से जगह दी जानी चाहिए। यदि परिस्थ्तिि की मांग होती है कि क्षेत्रीय दलों और एनडीए में शामिल क्षेत्रीय दलों से भी बात हो तो इसमें ममता प्रमुख भूमिका निभा सकती हैं। वामपंथी सीचराम येचुरी और रेड्डी हमेशा काॅमन मिनिमम प्रोग्राम की सामग्री के संदर्भ में सलाह देने के लिए उपलब्ध होंगे। (संवाद)
2019 लोकसभा चुनाव में विपक्ष बीजेपी से बेहतर स्थिति में
कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों को एक होने के लिए अपने- अपने अहम त्यागने होंगे
नित्य चक्रवर्ती - 2018-09-05 12:54
तीन सितंबर को घोषित कर्नाटक में स्थानीय निकायों के चुनावों के नतीजे बताते हैं कि कांग्रेस राज्य के अर्ध शहरी इलाकों में बीजेपी के खिलाफ मजबूत स्थिति में है और लोकसभा चुनाव में वह जेडी (एस) गठबंधन के साथ भाजपा को करारी शिकस्त दे सकती है। कर्नाटक में भाजपा को 2014 के लोकसभा चुनावों में 28 में से 17 सीटें मिलीं थीं। प्राप्त रुझानों और मिल रहे संकेतों के अनुसार कांग्रेस-जेडी(एस) गठबंधन आगामी लोकसभा चुनाव में 27 में से कम से कम 20 सीटें पाने की स्थिति में है।