दरअसल पूर्व भाजपा नेता और सामाजिक संस्था ‘जन संघर्ष मोर्चा’ के अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने वर्ष 2016 में ही नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की थी, जिसमें कहा गया था कि हरीश रावत के खिलाफ तो सीबीआई जांच तुरंत शुरू करा दी गई किन्तु स्टिंग करने वालों के खिलाफ कोई जांच नहीं हुई जबकि यह स्टिंग व्यक्तिगत और राजनीतिक स्वार्थपूर्ति के लिए किया गया था। याचिकाकर्ता नेगी का कहना था कि जब स्टिंग में इतने सारे लोग थे तो सीबीआई ने केवल हरीश रावत को ही नोटिस क्यों दिया? अन्य लोगों के खिलाफ सीबीआई ने संज्ञान क्यों नहीं लिया? याचिका में इन सभी लोगों की सम्पत्ति की जांच करने की मांग की गई और स्टिंग करने वालों के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाते हुए इन सभी की भी सीबीआई जांच कराने की मांग की गई थी, साथ ही कहा गया था कि इन स्टिंग के कारण राज्य का विकास प्रभावित हुआ।
हाईकोर्ट के कार्यवाहक न्यायाधीश राजीव शर्मा तथा न्यायाधीश मनोज तिवारी ने इसी मामले की सुनवाई के दौरान बीते 28 अगस्त को इस पूरे प्रकरण को बेहद गंभीर बताते हुए कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा था कि उत्तराखण्ड में ईमानदारी नजर नहीं आ रही है, साथ ही हरक सिंह रावत, मदन सिंह बिष्ट तथा उमेश शर्मा को नोटिस भेजकर पूछा है कि क्यों न आप सभी स्टिंग करने वालों की भी सीबीआई जांच करा दी जाए और इस नोटिस की एक प्रति सीबीआई को भी भेजी गई है क्योंकि स्टिंग मामले की जांच सीबीआई द्वारा ही की जा रही है। अदालत की कड़ी टिप्पणी और स्टिंग करने वालों को नोटिस जारी किए जाने के बाद प्रदेश का राजनीतिक तापमान एकाएक काफी बढ़ गया है।
वैसे नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस वी के बिष्ट की खण्डपीठ ने 2016 के उत्तराखण्ड के हाई वोल्टेज राजनीतिक ड्रामे के दौरान कई बार केन्द्र सरकार और राष्ट्रपति तक पर कठोर टिप्पणियां की थी, जिनके चलते केन्द्र की भूमिका पर बार-बार सवालिया निशान लगे थे। जब केन्द्र सरकार द्वारा राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए हरीश रावत के स्टिंग का तर्क दिया गया था तो कोर्ट ने कहा था कि यदि भ्रष्टाचार के मामलों में इसी प्रकार कार्रवाई की जाए तो देश में कोई भी सरकार पांच मिनट से ज्यादा नहीं टिक सकती। राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के केन्द्र के कुछ तर्कों पर कोर्ट यह कहने पर भी विवश हुआ था कि क्या केन्द्र सरकार ऐसा करके राज्य सरकारों से छुटकारा पाना चाहती है? इसी प्रकार राष्ट्रपति के फैसलों की समीक्षा को लेकर केन्द्र के तमाम तर्कों को खारिज करते हुए अदालत ने दो टूक शब्दों में कहा था कि राष्ट्रपति कोई राजा नहीं है, अतः उनके फैसलों की भी समीक्षा हो सकती है।
वर्ष 2016 में 18 मार्च को बजट पास करने के अवसर पर कांग्रेस के 9 विधायकों विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत, उमेश शर्मा काऊ, शैलारानी रावत, सुबोध उनियाल, डा. शैलेन्द्र मोहन सिंघल, प्रणव सिंह चैम्पियन, अमृता रावत और प्रदीप बत्रा ने अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत कर दी और भाजपा विधायकों के साथ रात में ही राजभवन का रूख कर अपनी ही सरकार के अल्पमत में होने का दावा किया तथा स्पीकर व डिप्टी स्पीकर के खिलाफ भी विधानसभा सचिव को अविश्वास प्रस्ताव सौंप दिया गया। हालांकि कांग्रेस अपना बहुमत होने का दावा करती रही किन्तु रातों रात दिल्ली से केन्द्रीय मंत्री महेश शर्मा देहरादून आए और भाजपा विधायकों सहित कांग्रेस के सभी बागी विधायकों को भी चार्टर्ड प्लेन में दिल्ली ले गए। अगले दिन राज्यपाल द्वारा हरीश रावत सरकार को 10 दिन के भीतर सदन में अपना बहुमत साबित करने को कहा गया। 26 मार्च को हरीश रावत का एक स्टिंग सामने आया और उसके अगले ही दिन केन्द्र सरकार ने उत्तराखण्ड में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। दूसरी ओर उसी दिन स्पीकर द्वारा कांग्रेस के सभी 9 बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करने का फैसला सुनाया गया।
हरीश रावत सरकार ने राष्ट्रपति शासन के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद 29 मार्च को नैनीताल हाईकोर्ट की एकल पीठ ने हरीश रावत को 31 मार्च को सदन में बहुमत साबित करने का फैसला सुनाया लेकिन 30 मार्च को हाईकोर्ट की डबल बेंच ने एकल पीठ के फैसले पर रोक लगा दी। 1 अप्रैल को कांग्रेस के 31 विधायकों ने हाईकोर्ट में राष्ट्रपति शासन के खिलाफ याचिका दायर की और अदालत ने 7 अप्रैल को शक्ति परीक्षण पर 19 अप्रैल तक के लिए रोक लगा दी और इस मामले से जुड़ी सभी याचिकाओं की सुनवाई के लिए 18 अप्रैल की तारीख तय की। 21 अप्रैल को अदालत ने राष्ट्रपति शासन को रद्द करते हुए कांग्रेस सरकार को बहाल कर दिया किन्तु केन्द्र सरकार की याचिका पर अगले ही दिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को 27 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दिया और फिर स्थगन को 9 मई तक के लिए बढ़ा दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने 3 मई को केन्द्र से पूछा कि क्या कोर्ट की देखरेख में राज्य में फ्लोर टेस्ट संभव है और आखिरकार शीर्ष अदालत द्वारा 10 मई को फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया गया लेकिन कांग्रेस के 9 बागी विधायकों को वोटिंग का अधिकार नहीं दिया गया। अंततः 10 मई को अदालत के आदेश पर दो घंटे के लिए राष्ट्रपति शासन हटाकर फ्लोर टेस्ट कराया गया, जिसमें कांग्रेस को 33 और भाजपा को महज 28 मत मिले और राज्य में 54 दिनों तक चले राजनीतिक ड्रामे के बाद 11 मई को हरीश रावत सरकार पुनः सत्तारूढ़ हुई।
जहां तक हरीश रावत के स्टिंग की बात है तो किसी भी प्रकार अपनी सरकार बचा लेने के लिए प्रयासरत तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत का 26 मार्च 2016 को देहरादून के जौली ग्रांट एयरपोर्ट पर स्टिंग किया गया था, जिसमें उन्हें कांग्रेस के बागी विधायकों को किसी भी तरह मना लेने की बात करते दिखाया गया था। 29 अप्रैल 2016 को सीबीआई ने इस स्टिंग मामले की जांच शुरू की थी तथा फोरेंसिक जांच में 4 मई 2016 को इस टेप के सही पाए जाने की घोषणा की गई थी। विधानसभा में फ्लोर टेस्ट से ठीक दो दिन पहले 8 मई को द्वाराहाट के तत्कालीन बागी कांग्रेस विधायक मदन बिष्ट का भी एक स्टिंग टीवी चैनलों पर प्रसारित किया गया ताकि किसी भी प्रकार कांग्रेस को पुनः सत्तासीन होने से रोका जा सके। स्टिंग मामलों का संज्ञान लेते हुए सीबीआई ने हरीश रावत से पूछताछ शुरू की और उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया किन्तु बाद में आरोप लगते रहे कि प्रदेश में भाजपा के सत्तारूढ़ होने के बाद सीबीआई जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
याचिकाकर्ता रघुनाथ सिंह नेगी का कहना है कि स्टिंग को अंजाम देने वाले पत्रकार उमेश शर्मा की पृष्ठभूमि संदिग्ध है, जिस पर ब्लैकमेलिंग, फर्जीवाड़े और अन्य संगीन अपराधों में पहले से ही एक दर्जन से अधिक संगीन धाराओं में मुकद्दमे दर्ज हैं और उनके द्वारा अपने स्वार्थ के लिए हरीश रावत का स्टिंग किया गया। फिलहाल हरीश रावत स्टिंग प्रकरण की सीबीआई द्वारा जांच चल रही है, इसीलिए अदालत से मांग की गई थी कि जांच के दायरे में स्टिंगबाजों को भी लाया जाए और अब अदालत द्वारा इस दिशा में जिस प्रकार की कड़ी टिप्पणियां की गई हैं और स्टिंग करने वालों को भी नोटिस जारी किए गए हैं, उससे स्टिंग मामले को लेकर दो साल बाद सियासत फिर गर्मा गई है। (संवाद)
हरीश रावत स्टिंग मामला
दो साल बाद फिर गरमायी सियासत
योगेश कुमार गोयल - 2018-09-07 12:25
विधायकों की खरीद-फरोख्त संबंधी उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के करीब ढ़ाई साल पुराने स्टिंग का जिन्न फिर बोतल से बाहर निकल आया है। उल्लेखनीय है कि 26 मार्च 2016 में प्रदेश में हरीश रावत का एक स्टिंग सामने आया था, जिसमें एक न्यूज चैनल ‘समाचार प्लस’ के मालिक उमेश शर्मा और रावत को विधायकों की खरीद फरोख्त पर चर्चा करते दिखाया गया था। इसके दो माह बाद 8 मई 2016 में एक और स्टिंग सामने आया था, जिसमें वर्तमान और तत्कालीन कैबिनेट मंत्री डा. हरक सिंह बिष्ट तथा द्वाराहाट के तत्कालीन विधायक मदन सिंह बिष्ट के बीच विधायकों की खरीद फरोख्त को लेकर बातचीत हो रही थी। फिलहाल इन स्टिंग की जांच सीबीआई द्वारा की जा रही है लेकिन इन स्टिंग मामलों में अब एकाएक नया मोड़ आ गया है। एक जनहित याचिका का संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने राज्य व केन्द्र सरकार को पक्षकार बनाते हुए कैबिनेट मंत्री हरक सिंह, मदन बिष्ट और पत्रकार उमेश शर्मा को नोटिस भेजा है और चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा गया है।