प्रधान न्यायधीश न्यायमूर्ति मिश्र ने जिस तरह से काम किया, उस पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को एतराज था। इसका अर्थ है कि विपक्ष की नजर में उन्होंने बीजेपी की अगुआई वाली सरकार का पक्ष लिया था। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि ‘‘न्यायपालिका लोकतंत्र के सबसे मजबूत स्तंभों में से एक है और हमें इसे अस्थिर करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। मैं यह कहने के लिए पर्याप्त योग्य नहीं हूं कि दीपक मिश्रा सत्तारूढ़ बीजेपी का पक्ष ले रहे है या नहीं। मुझे केवल एक बात पता है कि वह हमारे प्रधान न्यायाधीश है और हम भारतीयों को उस पद का सम्मान करना चाहिए। फिर भी, उन्होंने ने कुछ फैसले दिए हैं जो विपक्षी दलों के पक्ष में नहीं गए हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह प्राकृतिक न्याय प्रणाली का पालन नहीं कर रहे हैं। मुख्य विपक्ष सर्वोच्च न्यायालय पर दबाव डालना चाहता है ताकि 2019 के चुनाव से पहले अयोध्या मसले पर कोई फैसला न हो। वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की थी कि वे 2019 के चुनाव से पहले अयोध्या मुद्दे पर अंतिम फैसला न दें।’’

यह अच्छी तरह से जाना जाता है कि दीपक मिश्रा ओडिशा से कांग्रेस के नेताओं के एक के परिवार से आते हैं। आजादी से पहले ओडिशा सरकार में उनके दादा गोदाबारिश मिश्रा मंत्री थे। उनके चाचा, लोकनाथ मिश्रा राज्यसभा के पूर्व सदस्य थे। तथाकथित बौद्धिक वर्ग के साथ समस्या यह है कि वे किसी अन्य राय को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। वे सोचते हैं यह मेरा रास्ता या राजमार्ग है। आपराधिक याकूब मेमन की दया याचिका की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 3 बजे की गई तब उन्हें अच्छा लगा, लेकिन जब अदालत ट्रिपल तालक पर फैसला देती है, तो वे ही लोग उस पर आपत्ति करते हैं। । बीजेपी के उस वरिष्ठ नेता का कहना है कि तथाकथित सिविल सोसाइटी नाराज हो जाती है जब कोई फैसला उसके हक में नहीं आता।

इस साल 12 जनवरी को न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और उनके तीन सहयोगियों - जस्टिस चेलेश्वर (अब सेवानिवृत्त), मदन बी लोकुर और कुरियन जोसेफ ने सुप्रीम कोर्ट में बेंच के गठन के मामलों के आवंटन पर सवाल उठाने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाया था। जनवरी के उस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद से अटकलें थीं कि क्या न्यायमूर्ति गोगोई का नाम प्रधान न्यायाधीश के पद के लिए आगे किया जाएगा। क्योंकि सेवाविृत हो रहे प्रधान न्यायायधीश ही अपने उत्तराधिकारी के नाम की अनुशंसा करते हैं और यह परंपरा रही है कि वे अपने बाद के वरिष्ठतक जज को नाम इस पद के लिए अनुशंसित करते हैं। तमाम आशंकाओं को झुठलाते हुए प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने उच्च पद के लिए उनके बाद वरिष्ठतम न्यायाधीश की सिफारिश करने की परंपरा का पालन किया।

अगले प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई एक कर्मवीर आदमी है। वह कम बोलते हैं, लेकिन काम ज्यादा करते हैं। उन्हें दक्षिण दिल्ली में सरकारी आउटलेट से अपनी मछली खरीदते हुए देखा गया। मछली खरीद रहे अन्य लोगों के लिए यह देखना अजीब था कि एक न्यायाधीश अपने डिनर के लिए अपनी मछली पसंद कर रहा है। वे एक उत्सुक पाठक के रूप में जाने जाते हैं।

न्यायमूर्ति गोगोई ने फरवरी 2001 में गौहाटी उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में अपना करियर शुरू किया। उन्हें 2010 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया। वह 23 अप्रैल, 2012 को एक न्यायाधीश के रूप में सुप्रीम कोर्ट आए। उत्तर पूर्व से भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश बनें।

न्यायमूर्ति गोगोई के पास कार नहीं है और हाल ही में उनकी मां, शांति गोगोई, जो एक सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता हैं, ने कामरूप जिले में अपना पुराना उनके घर नाम कर दिया। न्यायमूर्ति गोगोई ढिब्रूगढ़ में बड़े हुए और जो लोग उन्हें न्यायाधीश के रूप में जानते हैंे, उनका कहना है कि उनके पास बड़ा दिल है और वे दिमाग से सोचते हैं। (संवाद)