केन्द्र में भी वर्तमान में भाजपा की ही सरकार सŸाा में है। इन राज्यो में सŸाा से दूर रही कांग्रेस फिर से सत्ता तक पहुंचने का भरपूर प्रयास कर रही है। भापजा विरोधी महौल उसके लिये इन राज्यों में लाभप्रद तो हो सकता है पर लोकसभा चुनाव में गठबंधन की राजनीति को प्रश्रय देने की भूमिका निभाने में अग्रणी रहने वाले राजनीतिक दल कांग्रेस का लोकसभा चुनाव से पूर्व होने वाले विधानसभा चुनाव में अन्य विपक्षी दलों से गठबंधन न हो पाने के कारण उत्पन्न विरोधी परिस्थितियां नुकसान पहुंचा सकती है जिससे उसे स्पष्ट बहुमत न मिल पाये।

इसी तरह के विरोध भाजपा खेमें में भी है जहां आमजन मानस के बीच उभरे सत्ता विरोधी लहर के साथ - साथ अपने लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। राजस्थान में भाजपा के पुराने दिग्गज राजनेता घनश्याम तिवारी का विरोध जो भारत वाहिनी का गठन कर चर्चित युवा विधायक बेनीवाल से मिलकर संयुक्त मोर्चा बनाकर चुनाव में कांग्रेस एवं भाजपा को टक्कर देने की मानसिकता बना चुके है, जिन्हें सपा एवं राष्ट्रीय लोकदल के पदाधिकारियों के साथ का भी भरोसा है। इसके अलावे राजस्थान में एक तरफ आम आदमी पार्टी 62 सीटों पर एवं बसपा 200 सीटों पर अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी में लगी हुई है तो दूसरी ओर राजस्थान लोकतांत्रिक मोर्चा के बैनर तले सीपीआइ एम, सीपीआइ एमएल ,सीपीआइ यू, , जनता दल एस एवं समाजवादी पार्टी मिलकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे है, जिनकी ओर से प्रस्तावित मुख्यमंत्री कामरेड अमराराम के नाम की भी घोषणा हो चुकी है।

मध्यप्रदेश में बसपा का अलग होकर चुनाव लड़ना कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकता है। छत्तीसगढ़ में बसपा एवं अजीत जोगी का गठबंधन भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकता है उसी तरह मिजोरम में तीन पाटियों का गठजोड़ जो चुनाव में अपने ऐजेेंडे में स्थानीय मुद््दों को शामिल कर कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लडने जा रहा है कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकता है जब कि कांग्रेस कार्यकाल में रहे मिजोरम के वर्तमान मुख्यमंत्री अपने कामकाज से आमजन में काफी लोकप्रिय रहे है जिसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है।

इस तरह के हालात राजनीतिक अस्थिरिता को उभार सकते है , जहां किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत मिलते नजर नहीं आ रहा हे। इस बार चुनाव में किसी के प्रति बहती लहर नजर नहीं आ रही है। भाजपा के सामने सŸाा विरोधी लहर है तो कांग्रेस के सामने नेतृृत्व की उभरती असमंजस की स्थिति । दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों को इस चुनाव में अपने विरोधियों से ज्यादा सामना अपनों का करना पड़ सकता है जिसमें कुछ तो अभी सामने नजर आ रहे है तो कुछ टिकट बंटवारे के बाद उभरे असंतोष से उभरे अपने ही लोग । इस बार के चुनाव में दोनों राजनीतिक दलों की ओर से दिग्गज राजनेताओं के क्षेत्र बदले जाने की भी चर्चाएं जोर - शोर से चल रही है, जिसका प्रभाव आकडों पर पड़ सकता है। बदले आज के हालात फिलहाल किसी भी राजनीतिक दल को सŸाा तक पहुंचने के स्पष्ट जनादेश के संकेत नहीं दे पा रहे हेै।

फिर भी सत्ता तक पहुंचने के प्रयास में अपने - अपने तरीके से दोनों राजनीतिक दल लगे हुये है। जहां भाजपा लाभार्थियों को पहुंचाये लाभ के आधार आमजनमानस को अपनी ओर खंचने के साथ - साथ तीन तलाक के मुद्दों को उठाकर महिला मुस्लीम मतदाताओं को भरमाकर अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रही है तो कांग्रेस भाजपा शासनकाल में जनविरोधी नीतियों को उजागर कर उसकी विफलताओं के माध्यम से आमजनमानस को अपने पक्ष में लाने के प्रयास में सक्रिय दिखाई दे रही है।

राजस्थान मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा तो साफ है जहां वर्तमान मुख्यमंत्री के ही नेतृृत्व में चुनाव लड़ा जा रहा है पर कांग्रेस इस मामले में अपना पत्ता दबाये बैठी है, जिससे कांग्रेस की ओर से कौन मुख्यमंत्री होगा, आम जनमानस के बीच भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। राजस्थान में कांग्रेस की ओर से संभावित मुख्यमंत्री में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की चर्चा के साथ - साथ युवा नेता के रूप में उभरे वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की जहां संभावना की जा रही है वहीं जाट मुख्यमंत्री बनाये जाने की भी वकालत दबे स्वर में होने लगी है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ की चर्चा इस पद के लिये जोरों पर है तो छत्तीसगढ़ इस मामले में मौन दिखाई दे रहा है। कांग्रेस का मुख्यमंत्री कौन होगा? यह अभी रहस्य बना हुआ है। इस तरह की परिस्थितियां चुनाव उपरान्त आये आकड़े पर निर्भर करती है। यदि चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिल जाता है तो मुख्यमंत्री का फैसला केन्द्रीय नेतृृत्व के हाथ हो सकता है जहां से युवा पृृष्ठभूमि उभर सकती है पर स्पष्ट बहुमत के आसपास खडी कांग्रेस नेतृृत्व की बागडोर उसके हाथ सौंप सकती जो राजनतिक तालमेल बिठाने में माहिर हो। इस दिशा में पुराने एवं सुलझे राजनेता कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री हो सकते है। इस तरह की विशेष परिस्थितियां केवल कांगेस में ही फिलहाल नजर आ रही है। इस तरह इस बार त्रिकोणीय चुनाव का प्रभाव चुनाव पर हावी रहेगा। (संवाद)